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मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

((((( जगन्नाथ प्रभु जी के हाथ माँ को अर्पित )))))

लगभग एक हजार वर्ष पूर्व झांसी उत्तर प्रदेश में श्री रामशाह प्रतिष्ठित तेल व्यापारी थे| वे एक समाज सुधारक, दयालु, धर्मात्मा एवं परोपकारी व्यक्ति थे| . उनकी पत्नी को शुभ नक्षत्र, मे चैत्र माह के क्रष्ण-पक्ष की एकादशी को संवत 1073 विक्रम में एक कन्या का जन्म हुआ| विद्धान पण्डितो दूारा कन्या की जन्मपत्री बनाई गई| . पण्डितो ने ग्रह, नक्षत्र का शोधन करके कहा- राम शाह तुम बहुत ही भाग्यवान हो जो ऐसी गुणवान कन्या ने तुम्हारे यहां जन्म लिया है| वह भगवान् की उपासक बनेगी| . शास्त्रानुसार पुत्री का नाम कर्माबाई रखा गया| बाल्यावस्था से ही कर्मा जी को धार्मिक कहानिया सुनने की अधिक रुचि हो गई थी| यह भक्ति भाव मन्द-मन्द गति से बढता गया| . कर्मा जी के विवाह योग्य हो जाने पर उसका सम्बंध नरवर ग्राम के प्रतिष्ठित व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया गया| . पति सेवा के पश्चात कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था वह समय भगवान् श्री कृष्ण के भजन-पूजन ध्यान आदि में लगाती थी| उनके पति पूजा, पाठ, आदि को केवल धार्मिक अंधविश्वास ही कहते थे| . एक दिन संध्या को भगवान कृष्ण जी की मूर्ति के पास ...

परमपुरुष श्री कृष्ण

श्री  राधे : श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! जब पृथ्वी देखती है कि ये राजा लोग मुझे जीतना चाहते हैं, मुझ पर राज करना चाहते हैं, तो वह हँसती है। राजा जब एक द्वीप पर विजय पा लेता है तो वह दूसरे द्वीप पर विजय पाने के लिए अधिक शक्ति और उत्साह के साथ आक्रमण करता है। सोचता है, धीरे-धीरे क्रम से यह सारी पृथ्वी मेरे हो जाएगी, मैं उस पर राज करूँगा। उन्हें यह ध्यान नही रहता कि सिर पर काल सवार है। परीक्षित, पृथ्वी कहती है कि ये बड़े-बड़े वीर मुझे ज्यों की त्यों छोड़ कर, जहाँ से आए थे, खाली हाथ वहीँ लौट गए, मुझे साथ न ले जा सके। ये मूर्ख राजा जब यह जान लेते हैं की यह पृथ्वी मेरी है, तो उनके राज में "मेरे लिए" उनके भाई, बंधु, पिता, पुत्र सब आपस में लड़ने लगते हैं और कहते हैं- मेरी है, मेरी है। लड़ते हुए मर जाते हैं। परीक्षित, लोक में अपने यश का विस्तार करना चाहिए। तुममें ज्ञान पूर्ण वैराग्य आए, इसलिए यह कथा सुनाई है। यह वाणी विलास है। भगवान् श्री कृष्ण का गुणानुवाद और उनके चरणों में अनन्य प्रेम ही सत्य है। परीक्षित श्री शुकदेव जी से पूछते हैं- भगवन! कलियुग तो दोषों का खजाना है, लो...

मृत्युभोज

मृत्युभोज से ऊर्जा नष्ट होती है महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि ..... मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों और तन, मन, धन से सहयोग करें  लेकिन......बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें। महाभारत का युद्ध होने को था,  अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया । दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े,  तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि  ’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’ अर्थात् "जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो,  तभी भोजन करना चाहिए।  लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।"  हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है,  जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अ...