नैनभर देख,अब भानु तनया, कलि पियसों करे,भ्रमर तबही परे; श्रम-जल भरत,आनंद मनया ।।१।। चलत टेढि होई,लेत पियकों मोहि, इन बिना,रहत नहीं एक छनया: " रसिक " प्रीतम रास,करत श्रीयमुनाजी पास, मानों निर्धनकी,हे जु धनया।।२।। *भावार्थ* ☘श्रीहरिरायजी आज्ञा करते है कि हे भक्त ! श्रीयमुनाजी से प्रेम हुआ,अब प्रेमभरी द्रष्टिसे श्रीयमुनाजी के दर्शन कर् । ये जलमें दिखाई देते वमल ( लहर ),सामान्य लहरें नहीं है,। श्रीयमुनाजी आधिदैविक स्वरुप से,श्रीठाकोरजी साथ विहार करती है तब ऐसे वमल ( लहर) दिखाई देते है। आपश्री के यह विहार समये जो स्मर-श्रम-जल प्रकट होता है-येही आपका जलप्रवाह है -ईसलिये आपके जल दर्शन से ही ह्रदय आनंद से छलोछल होता है।।।१।। आप टेढि-टेढि रिति से बह रहे हो,ऐसी ललित और मंद गतिसे श्रीठाकोरजीको ऐसे मुग्ध करदिया है कि,श्रीयमुनाजी बिना ऐक क्षण भी रह नहीं सकते। जब श्रीयमुनाजी ,श्रीठाकुरजी की साथ रास करते है तब निर्धन भक्तो के धनरूप श्रीयमुनाजी ही बनते है।।२।।। ...