तितली को उड़ते देख आपके भीतर क्या भाव होता है ... अगर उसे पकड़ने का तो ख्याल कीजिये स्पर्श उसके लिये सुखद नहीँ , हम तितली को नहीँ उड़ने देते प्रियालाल के विहार के लिये कहाँ योग्य ??? सुन्दर सुगन्धित पुष्प को देख कर हमारे भीतर प्रथम क्या भाव उठता है ... उसे तोड़ने का , अगर पुष्प के सहज जीवन को क्षणिक भोगार्थ हम खण्डित कर सकते है , तो अति सुकोमल युगल के प्रति कैसे निर्मल भाव होगा ... ??? ( अब यहाँ बहुत से मनस्वी कहेंगे पुष्प को प्रभु के लिये तोड़े है । तो हम निवेदन करें वह जहाँ खिल रहा है उनके ही निमित्त उनके ही सुवास से प्रकट हुआ है । उनकी ही सौंदर्य प्रभा को लताओं ने गहनता से अनुभूत किया है कि परिणाम इतना सुंदर । वासनाओं का निरोध हो । और प्रभु सेवा के लिये पुष्प , उनके ही निमित्त लगाने पर तोड़े वह भी सविनय । ) प्रकृति से सहज संगीत प्रकट होता है ... जैसे बारिश की आवाज । पत्तो के हिलने की आवाज़ आदि । क्या यह सब आपको आकर्षित करते है क्योंकि सहज संगीत से ही गहन राग रागिनियों के प्रति आसक्ति होगी जिससे परिणामतः नित्य रस में अनुभूति होगी । गहनतम रागिनियों को जो नहीँ सुन सकते वह नित्य विहा...
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