पंचवटी आश्रम में एक बार लक्ष्मण जी प्रभुश्रीरामजी के चरणसेवा कर रहे थे। लक्ष्मण जी ने पूछा है प्रभु हमे बताएं कि माया ओर ब्रह्म क्या है? प्रभुश्रीराम ने जो बताया उसे आप भी सुनें। * ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ। जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥ भावार्थ:-हे प्रभो! ईश्वर और जीव का भेद भी सब समझाकर कहिए, जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो और शोक, मोह तथा भ्रम नष्ट हो जाएँ॥ * थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥ मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥ भावार्थ:-(श्री रामजी ने कहा-) हे तात! मैं थोड़े ही में सब समझाकर कहे देता हूँ। तुम मन, चित्त और बुद्धि लगाकर सुनो! मैं और मेरा, तू और तेरा- यही माया है, जिसने समस्त जीवों को वश में कर रखा है॥ * गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई॥ तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ॥ भावार्थ:-इंद्रियों के विषयों को और जहाँ तक मन जाता है, हे भाई! उन सबको माया जानना। उसके भी एक विद्या और दूसरी अविद्या, इन दोनों भेदों को तुम सुनो-॥ * एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस ज...
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