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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई।*

जय श्री राम *हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई।*              कुछ लोग कहते हैं की हिन्दू शब्द फारसियों की देन है । क्यूंकि इसका उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है। मेरे सनातनी हिन्दू भाईयों, इन जैसे लोगों का मुंह   बंद करने के लिये आपके सन्मुख हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में लिखित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित बता रहा हूँ । आप सब सेव करके रख लें, और मुझसे या आप से यह सवाल करने वाले को मेरा जवाब भी देख लें ! *1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!* *"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।* *तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।* *(अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं)* *2- सिर्फ वेद ही नहीं.... बल्कि.. मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....* *"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"* *(अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)* *3- ...

Precautions during Roopdyan.〰❄〰❄〰❄〰❄〰❄<<साधक हेतु कतिपय स्मरण निर्देश>>

1) सतर्क होकर साधना करने के लिए बेठो। यदि आलस्य आने लगे तो अपने आप खड़े तो जाओ। लेकिन शर्त यह है,की चिंतन श्यामसुंदर का ही हो। 2) अपने इष्टदेव का गुणगान करो। ध्यान रखो,किसी का मन किसी के गन पर ही रीझता है। जैसे संसार में कोई किसी के गुण पर ही रीझता है।(सुंदर रूप  भी एक गुण है), इसी प्रकार अधम-उधारनहार,पतित-पावन,भक्त-वत्सल आदि ठाकुर जी के अनंत गुण है। इन गुणो का निरन्तर चिंतन करे। 3) केवल गुणगान करने से भी काम नही चलेगा। गान तो गवैये भी करते है,लेकिन उनको भगवत्प्राप्ति नही होती। अतएव गुणगान करते समय तदनुसार भाव भी लाओ। जैसे,हम वस्तुतः अधम है,पतित है,अनन्त जन्मों के लिए अनन्त पापो की गठरी सिर पर लिए है और वे अकारण करुण,भक्त-वत्सल,पतित-पावन,अधम-उधारनहार आदि है। 4) हमे कीर्तन में नींद क्यों आती है? क्योकि हम अपने इष्टदेव का रूपध्यान नही करते,श्यामसुन्दर को प्यार नही करते। प्यार नही है,इसलिए गुणगान करते समय ह्रदय नही पिघलता व हम ऊँघने लगते है। 5) नेत्र बन्द करके रूपध्यान करो,क्योकि प्राथमिक अवश्था में आँखे खोलकर कीर्तन करने से दूसरे लोग आते जाते दिखाई देते है,श्याम...

🌺🌻🌹गोपीगीत💮🌸🌷

गोपी गीत' श्रीमदभागवत महापुराण के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का ३१ वां अध्याय है। इसमें १९ श्लोक हैं । रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है । भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं । उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं । वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है । इसमें प्रेम के अश्रु,मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है । भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल,सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है। गोप्य ऊचुः (गोपियाँ विरहावेश में गाने लगीं) जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥ (हे प्यारे ! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोकों से भी व्रज की महिमा बढ गयी है। तभी तो सौन्दर्य और मृदुलता की देवी लक्ष्मीजी अपना निवास स्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य निरंतर निवास करने लगी है , इसकी सेवा करने लगी है। परन्तु हे प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं , वन वन ...

🌹🌺🌻कृष्ण 🌼🌷💮

कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।’  आठ का अंक : कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है। *कृष्ण के नाम : नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि। *कृष्ण के माता-पिता : कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा औ...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...