1) सतर्क होकर साधना करने के लिए बेठो। यदि आलस्य आने लगे तो अपने आप खड़े तो जाओ। लेकिन शर्त यह है,की चिंतन श्यामसुंदर का ही हो।
2) अपने इष्टदेव का गुणगान करो। ध्यान रखो,किसी का मन किसी के गन पर ही रीझता है। जैसे संसार में कोई किसी के गुण पर ही रीझता है।(सुंदर रूप भी एक गुण है), इसी प्रकार अधम-उधारनहार,पतित-पावन,भक्त-वत्सल आदि ठाकुर जी के अनंत गुण है। इन गुणो का निरन्तर चिंतन करे।
3) केवल गुणगान करने से भी काम नही चलेगा। गान तो गवैये भी करते है,लेकिन उनको भगवत्प्राप्ति नही होती। अतएव गुणगान करते समय तदनुसार भाव भी लाओ। जैसे,हम वस्तुतः अधम है,पतित है,अनन्त जन्मों के लिए अनन्त पापो की गठरी सिर पर लिए है और वे अकारण करुण,भक्त-वत्सल,पतित-पावन,अधम-उधारनहार आदि है।
4) हमे कीर्तन में नींद क्यों आती है? क्योकि हम अपने इष्टदेव का रूपध्यान नही करते,श्यामसुन्दर को प्यार नही करते। प्यार नही है,इसलिए गुणगान करते समय ह्रदय नही पिघलता व हम ऊँघने लगते है।
5) नेत्र बन्द करके रूपध्यान करो,क्योकि प्राथमिक अवश्था में आँखे खोलकर कीर्तन करने से दूसरे लोग आते जाते दिखाई देते है,श्यामसुन्दर नही।रूपध्यान की अत्यंत आवश्यकता है। रूपध्यान नही करेगे तो शारीरिक क्रिया का कोई फल नही मिलेगा।
6) ठाकुर जी का जैसा भी चाहे,रूपध्यान बना ले। बाल्यावस्था का,किशोर का,युवावस्था का। ठाकुर जी उसी रूप में मिल जाएँगे। लेकिन भगवान को पहले देखकर फिर रूपध्यान करने वाले नास्तिक बन जाएँगे,क्योकि हमारी प्राकृत आँखे 'प्राकृत राम' को देखेगी,भगवान राम को नही। "चिदानंदमय देह तुम्हारी,विगत विकार जान अधिकारी"। अतः अधिकारी बनने के पूर्व देखने की बात न करो।
7) रूपध्यान करते हुए प्रिया प्रियतम के साथ जिस लीला में जाना चाहो,चले जाओ तथा उनके दिव्य मिलन व दर्शन के लिए अत्यंत तड़पन पैदा करो। लाख आँसू बहाओ,लेकिन किसी भी आँसू को तब तक सच्चा न मानो,जब तक स्वयं श्यामसुन्दर आकर उसे अपने पीताम्बर से न पोछ लें।
8) इतनी व्याकुलता पैदा करो की नेत्र और प्राणों में बाजी लग जाये।एक-एक पल युग के समान लगने लगे। लेकिन यदि प्राणवल्लभ न आये तो निराशा न आने पाये,प्रेमास्पद में दोष बुद्धि न आने पाये।
9) पूर्ण लाभ लेने हेतु साधना के अतिरिक्त समय में गुरु एवं ईश्वर को साक्षी व अन्तयार्मी रूप में नित्य अपने साथ अनुभव करते हुए,मौन नियम का पूर्ण पालन करो।
10) में सदा तुम्हारे साथ हूँ तुम जो साधना करते करते रुक जाते हो यह न करो। लगातार बढ़ते चलो। गुरु जी ने बीच में छोड़ दिया ऐसा नही होता। हरि-गुरु तो हमेशा ही साथ रहता है यह मान लो बस।
'तुम्हारा कृपालु'
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राधे राधे ।