प्रश्न : एक साधक ने प्रश्न किया है कि भगवान् और महापुरुष के चरण धोकर के जो चरणामृत लिया जाता है, उसका क्या महत्व है ?
उत्तर : शास्त्रो में कहा गया है कि शुद्ध पर्सनैलिटी माने भगवान् और महापुरुष, इनका शरीर अलौकिक होता है, देखने में प्राकृत लगता है महापुरुष का सम्बन्ध भगवान् से रहता है और इनकी इंद्रियां, इनका मन, इनकी बुद्धि सब भगवान से संबद्ध होती हैं इसलिये इनका शरीर दिव्य होता है, इनके कर्म भी दिव्य होते हैँ । भले ही हम देख रहे है अर्जुन मर्डर कर रहा है, हनुमान जी लंका जला रहे हैं । ये क्रिया हम देखते हैं उल्टी-सीधी लेकिन उनका शरीर सदा अलौकिक और उनके कर्म भी अलौकिक केवल जन्म प्राकृत हैं । किन्तु जो अवतारी महापुरुष होते हैं उनका जन्म भी दिव्य होता है । अवतारी महापुरुषों का जन्म कर्म दोनों दिव्य होता है जैसे भगवान् का ऐसे ही जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत: ऐसे ही । और जो मायाबद्ध अवस्था में संसार में आते हैँ और यहाँ आकर भगवत्पाप्ति करते है तो जिस क्षण से उन्होंने भगवतप्राप्ति की उस क्षण से उनका शरीर दिव्य हुआ और उनके कर्म भी दिव्य होते हैं । महापुरुष के चरण के धोने का जो फ़ल है वही भगवान के चरण का है । तस्मिस्तन्जने भैदाभावात्। उसमें ...