देखो, भगवान् का एक लॉ है—
तं भ्रंशयामि संपद्भयो यस्य चेच्छाम्यनुग्रहम्॥
(१०-८७-१६)
हम पूछते हैं, जितने हमारे संसार में भगवान् को, ख़ुदा को, गॉड को मानने वाले, भक्ति करने वाले हैं, इसमें कितने आदमी ऐसे हैं, जो भगवान् के इस कानून को मानते हैं हृदय से।
क्या कानून है?
मैं जिस पर कृपा करता हूँ, उसका संसार छीन लेता हूँ।
यानी माँ को मार दो, बाप को मार दो, बीबी को मार दो, पति को मार दो, धन को छीन लो, उसको बदनाम कर दो। जिसको संसार में लोग कहते हैं, हम तो बर्बाद हो गए। ये कृपा है भगवान् की।
इसको मानने वाले कितने लोग हैं?
अरे! राम राम राम राम।
लाखों में नहीं मिलेगा कोई। जो भगवत्प्राप्ति कर चुके हैं, उनको छोड़ दो कृपा करके। बाकी सब कहेंगे, भई! ये बात तो हम नहीं मान सकते।
हम लोग तो कहते हैं, उन बाबाजी के पास गए, उन मन्दिर के भगवान् के पास गए, वैष्णो देवी गए, तो साहब! जब लौट के आये, लॉटरी खुल गई। हम तो करोड़पति हो गए। हम तो अब हर छः महीने में जाते हैं वैष्णो देवी।
हाँ, हम तो उल्टा समझते हैं। भगवान् जिसको कृपा करते हैं, संसार खूब दे देते हैं, ताकि वह हमको बिल्कुल भूल जाये।
वाह रे कृपा!
अरे! संसार जितना मिलेगा, उतना ही भगवान् से वो दूर होगा न?
कुन्ती ने वर माँगा था—
विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्॥
जन्मैश्वर्यश्रुतश्रीभिरेधमानमदः पुमान्।
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वां अकिञ्चनगोचरम्॥
(भागवत, १-८-२५, १-८-२६)
महाराज! हमारा संसार छीन लो, ताकि मैं आपका स्मरण करूँ। निराधार, अकिंचन बन जाऊँ।
कोई नहीं है मेरा।
#निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य_जगद्गुरुत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
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राधे राधे ।