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जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज एवं/अथवा श्रीराधा-कृष्ण के समस्त सत्संगी, प्रेमी, श्रद्धालु साधकों/भक्तजनों को सप्रेम राधे राधे

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज  एवं/अथवा  श्रीराधा-कृष्ण के समस्त सत्संगी, प्रेमी, श्रद्धालु साधकों/भक्तजनों को  सप्रेम राधे राधे कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।  गाइ  राम  गुन गन  बिमल भव तर  बिनहिं प्रयास॥ भगवान् की भक्ति करके भगवद्प्राप्ति करने के लिए कलियुग को सर्वश्रेष्ठ युग बताया गया है!  क्यों?  क्योंकि एक तो कलियुग में अन्य कोई साधन करना सम्भव ही नहीं,  इसलिए किसी भी साधन का अपेक्षित फल नहीं मिल पाता।  दूसरे, कलियुग में भगवान् का नाम और उनके गुणों का कीर्तन मात्र करने से ही सर्वोच्च फल की प्राप्ति सम्भव है। अतएव, अन्य कोई साधन करने की आवश्यकता भी नहीं है।  सौभाग्य से हम लोग भी कलियुग में मानव देह प्राप्त करके भारत जैसी पुण्य भूमि में जन्में हैं।  हमें केवल राम का गुणगान करना है  और इस चौरासी लाख प्रकार की भयानक अँधेरी कोठरियों वाले विचित्र पागलखाने से मुक्त होकर  अपने उस नित्य घर में पहुँचना है,  जहाँ अनन्त काल से सर्वतः आनन्द ही आनन्द है, ...

【सिद्धान्त-रिवाईजेशन # 8】'श्रीराधारानी प्राकट्योत्सव विशेष - 1/7'

♻ प्रेम की सर्वोच्च कक्षा कौन सी है और वहाँ कौन विराजमान हैं : माधुर्य भाव में समर्था रति का प्रेम सर्वोच्च होता है. इसमें प्रेम की उच्चतम कक्षा महाभाव भक्ति जीव को प्राप्त होती है. इस महाभाव भक्ति की भी 2 कक्षाएं हैं - मोदन और मादन. मोदन महाभाव श्रीकृष्ण और जीवों तक की पहुँच की सीट है, इसके आगे और अंतिम क्लास है मादन या मादनाख्य महाभाव, यहाँ केवल श्रीकिशोरी राधा जी विराजमान हैं. ♻ श्रीराधा रानी जी की 8 प्रधान अष्टमहासखियाँ कौन-कौन हैं : ललिता, विशाखा, चित्रा, चम्पकलता, सुदेवी, रँगदेवी, तुंगविद्या और इंदुलेखा. ♻ कई छवियों में कृष्ण श्रीराधिका के चरण दबाते हुए दिखाई पड़ते हैं, इसका क्या रहस्य है : श्रीराधिका प्रेम की साक्षात् स्वरुपा हैं, श्रीकृष्ण की आल्हादिनी शक्ति हैं. वे श्रीकृष्ण को नित्य आनंदमय बनाये रखती हैं. भगवान् से भी बड़ा प्रेम है, जो भगवान् को भी अपना दास बना लेती है. उसी प्रेमस्वरुपा कृपालु श्रीराधिका के श्रीकृष्ण भी दास हैं. ♻ श्रीराधा रानी के भोलेपन और सहज कृपालु स्वरूप का कोई उदाहरण प्रस्तुत करें : वे वन में विहार करने वाली अहीर जात की स्त्रियों (गोपियों) को भी ...

प्रेम और रूप भाग 2 ...

श्री ध्रुवदास ने कहा है कि प्रेम और सौन्‍दर्य की एक रस स्थिति वृन्‍दावन की सघन कुंजो को छोड़कर तीनों लोकों में कहीं नहीं है- ढूंढि फिरै त्रैलोक में बसत कहूँ ध्रुव नाहिं।  प्रेम रूप दोड एक रस बतस निकुजनि माहिं।। वास्‍तव में हम, लोक में और लोक-संबंधित काव्‍य में, प्रेम और सौन्‍दर्य की एक-रस स्थिति की कल्‍पना नहीं कर सकते। यहां इनका एक साथ व्‍यंजित हो जाना ही, बड़ी उपलब्धि है। प्रेम-स्‍वरूप वृन्‍दावन की सघन कुंजों में प्रेम की यह दो सहज अभिव्‍यक्तियां-प्रेम और सौन्‍दर्य-प्रेम के ही मधुर बंधन में बँधती हैं और परस्‍पर एक भाव, एक स्‍वाद एक रूचि रहकर प्रेम-सौन्‍दर्य रस का पान करती हैं।सौन्‍दर्य का फूल-अत्‍यन्त उन्‍नत और उज्‍ज्‍वल रूप श्री राधा हैं और प्रेम का फूल श्‍यामसुन्‍दर हैं। यह दोनों अनुराग के बाग में खिल रहे हैा और दोनों में राग का रूचिकारी रंग बढ़ा हुआ हैं- रूप कौ फल रँगीली बिहारिनि, प्रेम कौ फूल रसीलौ बिहारी। फूलि रहे अनुराग के बाग में, राग कौ रंग बढ्यौ रूचिकारी।। भोक्‍ता-भोग्‍य के अपने पृथक रूपों में स्थित रहते हुए प्रेम और सौन्‍दर्य, यहां, एक दूसरे में ...

चाह

युगल प्रेम युगल प्रीति युगल सेवा ॥ हम तो चाहें बस युगल सेवा ॥क्या है वास्तव में युगल सेवा ॥ सामान्यतः श्री राधामाधव को एक स्त्री पुरुष मान उनकी सेवा को ही युगल सेवा समझा जा रहा है ॥ युगल सेवा कृष्ण प्रेम की अतयंत उच्च अवस्था है ॥ हमारे प्यारे युगल कोई नर नारी नहीं हैं वरन उनका स्वरूप क्या है संबंध क्या है परस्पर से यह बिना कृष्ण प्रेम प्राप्त हुये अर्थात श्री राधिका की कृपा बिना उजागर होता ही नहीं ॥ उससे पूर्व उनके संबंध में जो भी कल्पनायें की जातीं हैं वे केवल कल्पनायें ही मात्र होतीं हैं ॥ श्रीकृष्ण सहज आकर्षण हैं प्राणी मात्र का ॥ सो उनकी तरफ आत्मा का खिंचाव निश्चित और परम कल्याणकारी है ॥ जीव मात्र अनन्त काल से उन्हीं के अनुसंधान में पृवृत्त है चाहें इसे समझे या नहीं ॥ इन्हीं श्रीकृष्ण के प्रति जब ये खिचाव इतना प्रबल हो जाता है कि माया के समस्त संबध, चाहें वे स्वयं से होवें या अन्यों से टूट जाते हैं तब वे प्रेमस्वरूप स्व का दान करते हैं ॥ उनका स्व क्या .....॥ उनका स्व हैं श्री राधा .....श्री राधा अर्थात् कृष्णप्रेम ॥ बात बहुत सूक्ष्म है ॥ उनके स्व को पा कर ही उन्हें जाना जा सक...

🌹🌹 गुरू महिमा 🌹🌹

एक बार एक सत्संगी सेवा करने के लिए आया हुआ था, दस दिन की सेवा ख़तम होने के बाद वो घर जाने वाला था कि एक दिन पहले उसकी टांग टूट गयी,  . वह काफी दुखी हुआ और उसके मन में ख्याल आया कि दस दिन सेवा की और उसके बदले में टांग टूट गयी.. मालिक तो सब जानते हैं,  . जब महाराज जी संगत को दर्शन देने के बाद अपनी कोठी जा रहे थे तो रस्ते में उस भाई से मिले, और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि आज रात को भजन पर जरूर बैठना . जब वह रात को भजन करने के लिए बैठा तो महाराज जी उसकी सुरत ऊपर के मंडलों में ले गए और उसको दिखाया कि जिस बस में उसने वापिस जाना था उसका एक्सीडेंट हो गया था,  . और उस एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गयी थी, महाराज जी ने उसकी सुरत को उसकी deadbody भी दिखाई, क्योंकि वह सतगुरु की शरण में आया हुआ था इसलिए महाराजजी ने उसके कर्म काटकर उसकी सिर्फ टांग ही टूटने दी  . जब उसकी सुरत नीचे सिमटी तो उसका रो रो कर बुरा हाल हुआ और उसने मालिक से अरदास की कि मालिक बक्श दो – बक्श दो . सार – सतगुरु पर हमें पूरा विश्वास होना चाहिए, वो हमारा बाल भी बांका नहीं होने देते, और...

भगवान जीव से कैसे आनंद प्राप्त करतें हैं - एक काम की बात सुनो मन

भगवान जीव से कैसे आनंद प्राप्त करतें हैं - एक काम की बात सुनो मन -  जीस प्रकार जीव माया के अण्डर में है उसी प्रकार भगवान योगमाया के अण्डर में हैं । यह योगमाया उनकी प्रर्सनल पावर हैं जिसे स्वरूप शक्ति भी कहतें हैं , सीधी सीधी समझिये गधे की अकल से । तो  वो योगमाया क्या करती है ? भगवान् की सर्वज्ञता को समाप्त कर देती है । अगर भगवान् ये याद रखें कि मैं भगवान् हूंँ तो फिर वो हमारे काम का नहीं , बेकार हो गया वो ।  हाँ, जैसे संसारी स्त्री , संसारी पति के लिए व्याकुल हो रही है और पति परवाह नहीं कर रहा है तो वो स्त्री कहेगी , नमस्कार, ऐसे पति से, और कहीं व्याह कर लेंगें । तो उसी प्रकार अगर हम भगवान् से प्यार करें और भगवान् आत्माराम बने रहें, अजी गधों तुम्हारी हमको क्या आवश्यकता है ? मैं तो ब्रह्मा , शंकर की भी आवश्यकता नहीं महसूस करता । तुम कूड़ा-कबाड़ा जीवों से हमारा क्या लेना-देना। ना, जितनी मात्रा में हम भगवान् से प्यार करेंगें उसी प्रकार प्रेम करना पड़ेगा भगवान को । करते हैं । तो कैसे करतें हैं ? वही योगमाया, जो स्वरूपशक्ति है भगवान को मोहित कर देती है और अपने क...

चरणामृत का क्या महत्व है?

अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है. क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की. कि चरणामृतका क्या महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।। "अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप- व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है। जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है. जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया. वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पा...

*सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया*।।।

देसी मंच। desimanch.com  *सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता हैसेंधा नमक* आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं !!एक होता है समुद्री नमक दूसरा होता है सेंधा नमक (rock slat) !!सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है !! पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है ! जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है !! वहाँ से ये नमक आता है ! मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। _तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले ! काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे !!_ क्यूंकि ये प्रकर्ति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है !! और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता !! आयोडीन के नाम पर हम जो नम...