श्यामल रस घन को समेटते सजल अथाह पिपासा की मधुर उर्मियों को पिए हुए श्री प्रिया के नयन युगल की सहचरियाँ है यह पलकें ... रस घन की लावण्यता और उनके अधर नयन का संयुक्त दर्शन करते ही नयनों की लज्जा को तत्क्षण बता कर पुनः व्यथित पिपासु नयनोँ का पट है यह पलकें ... पिय स्मरण के स्पंदन से सजल नयन के रस झारी को समेटने के लिये गिरती यह नीलिमा समेटी चद्दर जैसे प्रियतम के सौंदर्य को भीतर ही उतारना चाहती हो ... नित्य मिलन की विश्राम भूमि है यह पलकें ... नागर की सौरभ से तिलमिलाए अंग को ना समेट पाने से संचालन खो कर बारबार गिरती और उठती कुछ कह कर भी न कहती श्रीप्रिया के उन्माद की तरँग को किसी परिभाषा से परे करते हुए काँपते हुए सागर की तलाश बन जाती है यह पलकें ... नागर जु की दृष्टि से चोरी करती हुई प्रिया के नैनो में सिमटी नवल अधर रस पिपासिनी की लज्जा जो नैनों के आवरण को भंग करने की यथेष्ठ कामना बन गई हो यह पलकें ... लज्जित नेत्रों में समेटे माधुर्य में नागर उपस्थिति का लाभ उठाने को सजल नयनों की अनसुनी कर उन्हें अनवरत नागर सौरभ पान के लिये उन्मादित करती भाग गई नयनों की एक सखी है यह पलकें ....
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