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रूपध्यान

ध्यान करो तुम्हारे सामने श्यामा - श्याम खड़े है । समस्त श्रृंगारों से युक्त है , मुस्करा रहे है , तुम्हारी ही ओर देख रहे है , फिर ध्यान करो वे श्यामसुन्दर तुम्हारे आलिंगन के लिए हाथ उठा रहे है । फिर ध्यान करो वे कुछ कह रहे है । क्या ........ सुनाई नहीं पड़ता , क्योकि तुम्हारे काँन प्राकृत है । अच्छा रोकर , उनसे दिव्य शक्ति माँगो ताकि वे शब्द सुनाई पड़े । अच्छा तो हम बताते है - वे कह रहे है तू केवल मुझे ही अपना सर्वस्व क्यों नहीं मान लेता । सुना - विश्वास करो ।
पुनः ध्यान करो वे तुम्हें इस शरीर से निकाल कर दिव्य शरीर देकर अपने गोलोक ले जा रहे है । अब देखो गोलोक , यहाँ सब कुछ स्वयं श्रीकृष्ण ही बने हैं । सब जड़ - चेतन स्वयं श्यामसुन्दर ही बने हैं । सूंघो , दिव्य सुगन्ध ! देखो , दिव्य रूप !
अब देखो ! उनके परिकर तुम्हारे स्वागत के लिए आये है । तुम्हें अपनी मंडली में सखा लोग एवं सखी लोग घसीटे लिए जाते है । वे कहते है हमारे मंडल का है । तुम भी तो कुछ कहो , लेकिन तुम तो विभोर हो । क्या कहोगे ? अच्छा , खुसी के मारे नाचो ।
आँख खोलकर ध्यान करो । आपके सामने किसी स्थान पर वे खड़े है । अब वहाँ से दूसरी जगह पर आ रहे हैं फिर तुम्हारी ओर आ रहे हैं ।
फिर ध्यान करो वे तुम्हारे हृदय में चले गये किन्तु तुम तो देखना चाहते हो । हाय प्रियतम ! बाहर आ जावो न । अब बालवत् रोओ ।
फिर ध्यान करो - वे बाहर आ गये । किन्तु वे तुम्हारा स्पर्श नहीं करते , कहते है तुम्हारे हृदय में अभी और भी कामनायें हैं । अतएव तुम अशुद्ध हो । अच्छा , रोकर अभी सब कामनायें निकाल दो और कहो - अच्छा , प्राण - धन लो , अब तुम्हीं तुम हो । बस वे आ गये पास , बिल्कुल पास , विभोर हो जाओ ।
उपरोक्त प्रकार से ध्यान करो ।
प्रत्येक क्षण काम में लो । मन को खाली न रहने दो । ऐसा कुछ दिन करने पर ज्ञात हो जायेगा कि तुम कहा हो ।
मै सदा तुम्हारा सहायक हूं।
: कृपालु

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