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भागवत 10/21/5

।।श्रीमते रामानुजाय नमः।। शुक-मनमोहक  श्लोक --------------------------- बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कणिकारं विभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्। रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै- र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः।।                  भाग0 10/21/5 "परमानन्दकन्द भगवान श्रीकृष्णचन्द्र  नटवर-वपु को धारण किये, बर्हमय आपीड को धारण किये, वैजन्तीमाला को पहने, कानों में कर्णिकार धारण किए, पीताम्बरधर  पहने, अधर-सुधा से वेणु को परिपूरित करते हुए, गोपवृन्दों के संग विलसित होते हुए श्रीमद् वृन्दावन धाम में पधारे।" श्लोक का भाव  ------------------- श्रीकृष्ण ग्वालबालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे हैं, उन्होंने मस्तक पर मोर-पंख धारण किया हुआ है, कानों पर पीले-पीले कनेर के पुष्प, शरीर पर सुन्दर मनोहारी पीताम्बर शोभायमान हो रहा है तथा गले में सुन्दर सुगन्धित पुष्पों की वैजयन्तीमाला धारण किये हैं। रंगमंच पर अभिनय करनेवाले नटों से भी सुन्दर और मोहक वेष धारण किये हैं श्यामसुन्दर...

ब्रह्मा का एक दिन मानें

ब्रह्मा का एक दिन मानें चार युग होता है - सतयुग १७,२८,००० वर्ष, त्रेता १२,९६,००० वर्ष , द्वापर ८,६४,००० वर्ष एवं कलियुग ४,३२,००० वर्ष का होता है । तो चारों को मिला कर हुए ४३,२०,००० वर्ष जिसको चार युग कहा जाता है । ये ७१ बार बीतने पर एक मनवंतर होता है ।ऐसे चौदह मनवंतर बीतने पर ब्रह्मा का एक दिन यानी ४३,२०,००० से ७१ को गुणा करने से ३०६७२०००० वर्ष और इसमें १४ से गुणा करने से  ४,२९,४०,८०,००० वर्ष । और इतने वर्षों की एक रात होती है ।  ब्रह्मा के एक दिन में १४ मन्वन्तर होतें हैं जैसे स्वयंभुव , उत्तम , तामस , रैवत, वैवस्वत, सावर्णि, दक्ष सावर्णि , ब्रह्म सावर्णि , धर्म सावर्णि , रुद्र सावर्णि , देव सावर्णि , इन्द्र सावर्णि इत्यादि । वर्तमान, जो मन्वन्तर चल रहा है , वह है सातवाँ मन्वन्तर , जिसका नाम है वैवस्वत । इस वैवस्वत मन्वन्तर में २७ बार चार युग बीत जाने पर जब २८ वें चतुर्युग में द्वापर के शेष में स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण गोलोक से सीधा अपने धाम , परिकरों सहित इस पृथ्वी पर अवतरित होते हैं , जो आज से ५१२८ वर्ष पूर्व घट चुका है । यह स्वयं श्रीकृष्ण ब्रह्मा के एक दिन म...