बात वर्ष 1950 के आस पास की है। श्री महाराज जी राजकोट (गुजरात) गये थे। वहाँ पर श्री महाराज जी तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री यादव जी मोदी के घर ठहरे हुए थे। उन दिनों इंग्लैंड के डाक्टरों की एक टीम वहाँ आयी हुई थी। उन्होंने किसी दिन श्री महाराज जी का प्रातःकाल से लेकर रात्रि शयन तक के बीच के सारे कार्यक्रम को देखा और श्री यादव जी मोदी से कहा। ये महात्मा अपना एनर्जी का अत्यधिक व्यय क्यों करते हैं। यदि महात्मा जी इसी प्रकार अपने जीवन की एनर्जी खर्च करते रहे तो उनका जीवन थोड़ा हो जायेगा। श्री मोदी जी ने प्रेम वश श्री महाराज जी से इतना अधिक परिश्रम न करने को कहा, साथ ही यह भी बता दिया कि इस बारे में डाक्टरो की क्या राय है।
सारी बात सुनकर महाराज जी ने अगले दिन उन डॉक्टरों को बुलाकर पूछा, कि क्या उनके पास एनर्जी नापने की मशीन है। उनके हाँ में उत्तर देने पर श्री महाराज जी ने वह मशीन मँगवाई और उन लोगों से कहा, आप लोग जब चाहे मेरी एनर्जी नाप लें। उसके बाद मैं लगातार 8, 10 घण्टे तक अपना श्रम करूँगा। बाद में आप मेरी एनर्जी पुनः माप लेना, अगर हमारी एनर्जी कम हो जायेगी तो हम कीर्तन भजन करना बन्द कर देंगे। किन्तु यदि एनर्जी कम न हुई तो तुम लोगों को हमारे बताये अनुसार साधना करनी होगी।
डॉक्टर लोग पहले से ही आश्वस्त थे, अतः उन्होंने महाराज जी की शर्त स्वीकार कर ली। अगले दिन प्रातःकाल महाराज जी का चेकअप कर उनकी एनर्जी का पैमाना नोट कर लिया गया। उसके बाद महाराज जी दिन भर कीर्तन सत्संग करते रहे, रात्रि के समय फिर एनर्जी टेस्ट हुआ। ऐसा टेस्ट 8 दिन तक लगातार होता रहा, दोनों समय सुबह और शाम की महाराज जी की एनर्जी नोट की जाती रही, लेकिन उसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता था, न ही कोई कमी दिखाई पड़ी। डाक्टरों की टीम आश्चर्य में थी कि ऐसा कैसे हो रहा है। अंत तक डाॅक्टर कुछ भी नहीं समझ पाये। क्योंकि कुछ अन्य लोगों की भी एनर्जी उसी दौरान मापी गयी थी, उनकी एनर्जी में कमी मिली थी लेकिन महाराज जी की एनर्जी बढी ही थी। डाक्टरों ने एक प्रकार से निरुत्तर हो गये थे। अब उन्होंने श्री महाराज जी से दीक्षा देने की प्रार्थना की। तब महाराज जी ने उन्हें एक एक माला देकर हरिनाम जपने का परामर्श दिया। तथा अपने हाथों से उन लोगों को माला पहनायी।
#जयश्रीसीताराम
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राधे राधे ।