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*वैज्ञानिकों के सिद्धांतों का खंडन कर सत सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज*

दिव्य ग्रन्थ: #प्रेम_रस_सिद्धान्त अध्याय: १ ¨जीव का चरम लक्ष्य¨ पेज: २३-२४
अब उनका अंतिम उत्तर सुनिये । वे कहते हैं परिस्थितिवश हड्डी बन गयी । परिस्थिति का उत्तर तो घोर पागलपन का है । क्योंकि देखिये एक ही परिस्थिति में भाई-बहिन पैदा हुए किन्तु बहिन की दाढ़ी मूँछ नहीं होती । हाथी एवं हथिनी एक परिस्थिति मे हुए लेकिन हथिनी के बड़े दाँत नहीं होते । मोर एवं मयूरी एक ही परिस्थिति में हुए किन्तु मयूरी की लम्बी पूँछ नहीं होती । मुर्गा-मुर्गी एक ही परिस्थिति में हुए किन्तु मुर्गी के सिर पर कलगी नहीं होती । इतना ही नहीं, विकासवाद के अनुसार क्रमिक विकास में प्राणियों के दाँतों में कोई भी मेल जोल नहीं हैं । देखिये गाय भैंस के ऊपरी दाँत नहीं होते किन्तु घोड़े के नीचे ऊपर दोनों दाँत होते हैं । पुन: कुत्ते को देखिये, उसके दूध के दाँत नहीं गिरते और देखिये घोड़े के स्तन नहीं होते, बैल के स्तन अण्डकोष के पास होते हैं । बच्चा पैदा होते समय घोड़ी की जीभ बाहर गिर जाती है ।
पुन: देखिये क्रमिक विकास का खोखला तर्क । स्याही के दस स्तन होते हैं, उससे उन्नत होकर चुहिया बनी उसके आठ ही स्तन रह गये । पुन: उन्नत होकर बिल्ली बनी उसके तो ६ स्तन ही रह गये । पुन: उन्नत होकर गाय भैंस बनी उसके चार स्तन ही रह गये । सबसे उन्नत मनुष्य के दो ही रह गये । क्या बढ़िया विकास है ।
और भी देखिये । गाय-भैंस आदि के बाल आजन्म एक रंग के होते हैं किन्तु मनुष्य के बाल लड़कपन में सुनहरे रंग के, युवावस्था में काले रंग के, वृद्धावस्था में सफेद रंग के, अति वृद्धावस्था में पिंगल रंग के हो जाते हैं । पुन: पशु को तैरने आदि की स्वाभाविक योग्यता होती है किन्तु उससे विकसित मनुष्य को यह सब सीखना पड़ता है । और देखिये, पशु आड़े शरीर के होते है, वृक्ष उल्टे शरीर के होते हैं, मनुष्य सीधे शरीर के होते हैं । यह कौन सा क्रमिक विकास है ? वृक्ष दूषित खुराक, गन्दी चीजें ग्रहण करते हैं एवं उससे पुष्ट होते हैं किन्तु अच्छी वायु फेंकते हैं, अच्छे फल फूलादि देते हैं । विकास में विपरीत हो गया कि मनुष्य अच्छी खुराक, अच्छी वायु आदि से पुष्ट होते हैं किन्तु गन्दी वायु आदि फेंकते हैं ।
पुन: आयु का क्रमिक विकास देखिये । कछुए की आयु १५० वर्ष, सर्प की १२० वर्ष, उससे विकास होने पर कबूतर की आयु ८ वर्ष की रह गयी । एक हँसी की बात और सुनिए की ८० मन की छिपकली मानी गयी है, उसकी हड्डी लन्दन के म्युज़ियम में रखी है । जब अस्थिपंजर ८० मन का है तो उसका वजन २०० मन होगा । जब छिपकली २०० मन की है तब मनुष्य को कम से कम ८००० मन का होना चाहिए । दूसरी बात यह की डार्विन के मत में पेड़ इतने बड़े माने गये हैं की जंगल के जलने पर कोयले की खान बन गयी तब तो आदमी को ५० मंज़िले से भी बड़ा होना चाहिये ।
अब थोड़ा पृथ्वी की आयु पर विभिन्न वैज्ञानिकों के विचार सुन लीजिये । प्रथम रसायन शास्त्री लोग सृष्टि के मूल तत्त्व ९२ मानते थे, अब एक ही मानते हैं । हेकल आदि डार्विन के अनुयाइयों का कहना था की संसार को बने ८ लाख २० हजार वर्ष हुए हैं जबकि भूगर्भ-शास्त्री लोग कहते हैं की १० करोड़ वर्ष हुए । प्रो. पेरी ने रेडियम की खोज द्वारा यह बताया है की पृथ्वी की आयु १० करोड़ वर्ष से भी अधिक है । अब सोचिये इसमें क्या सही है ? और यदि हम प्रत्यक्षवाद से सिद्ध करें तो आप चकित रह जायेंगे । अभी कुछ दिन पूर्व नेवादा में मिस्टर जान टी. रोड ने खुदाई में एक जूते की आयु ६० लाख वर्ष घोषित की है जिसकी सिलाई बहुत अच्छी है अर्थात ६० लाख वर्ष पूर्व मनुष्य पूर्ण विकसित था । अब सोचिये उस पूर्ण विकास में भी तो कम से कम ५० लाख वर्ष लगे होंगे । क्रमश: ........ .........
---------#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज-----------
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*एक बार प्रेम रस सिद्धांत ग्रंथ  अवश्य पढ़ें*

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