*समोहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योस्ति न प्रिय:।*
एक तो यह स्वरूप है भगवान का। न मेरा कोई प्रिय है, न मेरा कोई शत्रु है। जो जैसा कर्म करता है उसके अनुसार मैं उसको फल देता हूं। न्यायाधीश हूं, मुन्सिब।
ये भगवान तो न्यायी हैं। जब सृष्टि होती है और सब जीव शरीर धारण करके आ जाते हैं तो उन्हीं के साथ-साथ हरेक जीव के शरीर में भगवान भी आकर बैठ जाते हैं और उसके प्रत्येक क्षण के प्रत्येक आइडियाज नोट करते हैं। वो क्या सोच रहा है? वो क्या कर रहा है ये नोट नहीं करते। क्या सोच रहा है, मन का कर्म नोट करते हैं। और तमाम जन्मों के हमारे जो संचित कर्म हैं, उनसे निकालकर कुछ अंश प्रारब्ध कर्म के रूप में भुगवाते हैं। बहुत सारे काम करते हैं, हृदय में बैठकर के अलग अलग-अलग। इन का नाम है परमात्मा।
ये केवल न्याय करते हैं।
ये कर्म नहीं करते। आप अच्छा कर रहे हैं, बुरा कर रहे हैं, कुछ नहीं बोलते।
*द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।*
*तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥*
वेद कहता है। यानि प्रत्येक शरीरधारी के अंतःकरण में दो पक्षी रहते हैं। पेड़ एक है शरीर, उसमें घोंसला है अंतःकरण, उसमें दो पक्षी रहते हैं, एक जीवात्मा और एक परमात्मा।
तो जीवात्मा तो कर्म करता है और कर्मफल भोगता है और परमात्मा केवल दृष्टा बनकर निरीक्षण करता है और कर्मफल देता है।
संसार में कोई बलवान किसी कमजोर को बहुत कष्ट देता है तो कमजोर यही कहता है, हमारा तुम्हारा फैसला भगवान के यहां होगा। क्योंकि वह न्यायाधीश निष्पक्ष है।
जिससे किसी का कुछ स्वार्थ होता है, वहां पक्षपात होता है।
जिससे किसी के स्वार्थ की हानि होती है, वहां पक्षपात होता है। लेकिन झा कोई शत्रुता नहीं, मित्रता नहीं, भगवान को कुछ पाना नहीं संसार से, तो इसलिए वो न्याय करते हैं। फिर वो सर्वज्ञ हैं, सर्वांतर्यामी हैं, इसलिए उन्होंने तो कर्म नोट किया है। वो न्याय सही सही करेंगे। वो किसी की रियायत नहीं करते। सगा बेटा हो, ब्रह्मा हो, शंकर हो, कोई हो।
देखो उत्तरा अभिमन्यु की स्त्री उसके, अभिमन्यु के बाप अर्जुन गीताज्ञानी महापुरुष और अभिमन्यु के मामा श्री कृष्ण, और अभिमन्यु मारा गया। निरपराध, धोखा देकर, और श्री कृष्ण चुपचाप देखते रहे।
और हमारे संसार में लोग मृत्युंजय का जाप करते हैं। वेद मंत्र है, उसको जपते हैं पंडित लोग। कि हमारा बेटा बहुत सीरियस है, मरे न।
अरे! जब अर्जुन और श्री कृष्ण भगवान ने नहीं बचाया अभिमन्यु को, तो ये गधे पण्डित क्या बचाएंगे।
हां!
*ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म।* *उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्।।*
ये मंत्र है।
तो वो भगवान कुछ गड़बड़ नहीं करते बीच में। वो केवल न्याय करते हैं। आपका टाईम हो गया, आपको जाना होगा, वो चाहे भगवान का बाप हो। दशरथ जी को भी जाना होगा। बाप हो चाहे जो हो। जिसका समय हो गया उसको जाना होगा। मैं न्यायाधीश हूं, न्याय करता हूं।
जगतगुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का अंश।
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राधे राधे ।