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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवान की प्राप्ति

।।श्रीहरिः।। श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार ------------------------------------------- भगवान् ------------------------------------------- 1. भगवान् की प्राप्ति इच्छा से होती है। 2. भगवान् प्राप्त होनेपर कभी बिछुड़ते नहीं। 3. भगवान् की प्राप्ति जब होती है, पूरी होती है। 4. भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा होते ही पापों का नाश होने लगता है। 5. भगवान् को प्राप्त करने की साधनामें शान्ति मिलती है। 6. भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला सुख-शान्ति पूर्वक मरता है 7. भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है। भोग ------------------------------------------- 1. भोगोंकी प्राप्ति कर्म से होती है, इच्छा से नहीं होती। 2. भोग बिना बिछुड़े कभी रहते नहीं। 3. भोगों की प्राप्ति सदा अधूरी ही रहती है। 4. भोगों को प्राप्त करनेकी इच्छा होते ही पाप होने लगते हैं। 5. भोगों को प्राप्त करने की साधना में अशान्ति बढ़ती है। 6. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला अशान्ति और दुःखपूर्वक मरता है। 7. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही नरकों में जाता है।

उद्धव का कृष्ण से प्रश्न

उद्धव ने कृष्ण से पूछा, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी, तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया! लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं ? उसे एक आदमी घसीटकर भरी सभा में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है! एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया? अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है? बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा? क्या यही धर्म है?" इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं! उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए। भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले- "प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है। उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं। यही कारण रह...

भक्ति में जीव का अधिकार

श्रीराधाभावमयी भक्ति में जीव का अधिकार नहीं है। श्रीराधा तो महाभाव स्वरूपा श्री कृष्ण की ह्लादिनी शक्ति हैं । फिर तटस्था शक्ति जीव किस प्रकार की भक्ति का अधिकारी है?  उसे श्रीराधाभाव की अनुगत्यमयी सेवा का अधिकार प्राप्त है । जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है। दास का कभी स्वतंत्र सेवा में अधिकार नहीं हो सकता । श्रीराधा एवं ब्रजगोपीगण की श्रीकृष्ण सेवा स्वातंत्र्यमयी है । उनकी भाँति श्रीकृष्ण की स्वातंत्र्यमयी  सेवा में जीव का अधिकार कदापि नहीं है । वह तो बस इनकी अनुगता दासी रूप में इनकी श्रीकृष्ण प्रीति विधानोपयोगी लीला में अनुकूलता हेतु तत्पर रहकर श्रीकृष्ण सेवा कर सकता है ।  इस अनुगत्यमयी सेवा में जो सुख है, वह अतुलनीय है। रहस्य की बात यह है कि श्री ब्रजसुंदरीगण श्रीकृष्ण मिलन में जो सुख प्राप्त करती है, उससे भी कई गुनाधिक सुख आनुगत्यमयी सेवा में प्राप्त होता है । इस प्रेमा भक्ति की एक विशेषता यह भी है कि इसमें ऐश्वर्यज्ञान का सर्वथा अभाव पाया जाता है ।  चूंँकि ऐश्वर्यज्ञान से प्रीति शिथिल हो जाती है, अंत: ब्रजसुंदरीगण की रागात्मिका भक्ति में ऐश्वर्यज्ञान...

गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर!

राम चरित मानस के उत्तरकाण्ड में – ज्ञान की बौछार है उस ज्ञान की बौछार में से निम्न ज्ञानमयी बारिश की बौछार प्रश्नों उतरी के रूप में आप के समक्ष उपस्थित है। सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है? सबसे बड़ा दुःख कौन है ? सबसे बड़ा सुख कौन है ? संत और असंत का अन्तर क्या है ? सबसे महान्‌ पुण्य कौन सा है ? सबसे महान्‌ भयंकर पाप कौन है ? मानस रोगों कौन कौन से है ? * पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥। नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥ भावार्थ:-पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए॥ * प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा॥ बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी॥ भावार्थ:-हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए॥ * संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर...

प्यार तीन प्रकार का होता है ।

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