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भगवान की प्राप्ति

।।श्रीहरिः।।
श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार
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भगवान्
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1. भगवान् की प्राप्ति इच्छा से होती है।
2. भगवान् प्राप्त होनेपर कभी बिछुड़ते नहीं।
3. भगवान् की प्राप्ति जब होती है, पूरी होती है।
4. भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा होते ही पापों का नाश होने लगता है।
5. भगवान् को प्राप्त करने की साधनामें शान्ति मिलती है।
6. भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला सुख-शान्ति पूर्वक मरता है
7. भगवान् का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है।

भोग
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1. भोगोंकी प्राप्ति कर्म से होती है, इच्छा से नहीं होती।
2. भोग बिना बिछुड़े कभी रहते नहीं।
3. भोगों की प्राप्ति सदा अधूरी ही रहती है।
4. भोगों को प्राप्त करनेकी इच्छा होते ही पाप होने लगते हैं।
5. भोगों को प्राप्त करने की साधना में अशान्ति बढ़ती है।
6. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला अशान्ति और दुःखपूर्वक मरता है।
7. भोगों का स्मरण करते हुए मरनेवाला निश्चय ही नरकों में जाता है।

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