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फ़रवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

-- संत उच्छिष्ट - भाग 2 -

राजस्थान की घटना है एक राज पुरोहित विप्र परिवार में जन्मे एक बालक स्वामी श्री खेता राम जी महाराज जिन्होंने आसोतरा में ब्रम्हा जी का मंदिर बनवाया ब्रम्ह पीठ की स्थापना की और सम्पूर्ण परिवार को गौ सेवा में लगवाया वे महापुरुष उनकी भी घटना यही है ,बचपन में कोई सिद्ध संत आये अवधूत कोटि के उन्होंने भिक्षा मंगाई और भिक्षा पात्र में पाकर और फिर उसको उगल दिया और बोले पी जाओ सब बच्चे तो भाग गए पर खेता राम जी की संत स्वरूप में इतनी श्रद्धा थी की वो पी गए और पीते ही सिद्ध हो गए  #जयश्रीसीताराम

!!आकर्षण मर्धन घर्षण !!

एक अद्भुत आकर्षण भरा रहता सदा वृंदावन की कुंज निकुंजों में।सुबह सकारे माँ यशुमति जब लाड़ले श्यामसुंदर जु के लिए नवनीत बनाती हैं तो उनकी मथानी मंथन में एक अद्भुत घर्षण भरा रहता है।मईया के आभूषणों की झन्कार और मथानी से घट के घर्र घर्र स्वर का संगीत संगम और इस पर भी मईया के नेत्रों में भरे कान्हा की भावलहरियों से उद्गम होता मुख से सुंदर गुणगान जिसे मईया सहज ही गा पातीं हैं।उनका लाल सोया हुआ है यह जान मईया मंद स्वर से गातीं रहतीं हैं जैसे सहज ही बसंत में पुष्प पत्रावली नीलवर्णा यमुना जु का सुनहरा श्रृंगार कर रही हो।वहीं गोप-गोपांग्नाओं का भवन में आगमन उनके पद कुण्डल व पाजेब की मधुर ध्वनियाँ।भोर में ही श्यामसुंदर की दर्शन लालसा से बहकी गईयों का रम्भाना और बछड़ों की सखाओं संग शंख वाद्यों से ताल मिलाती मधुर रम् रम् झन्कार।सखियों का घुंघरू बंधे कलशों को उठा जल भरने जाना और गगरिया की आपसी टकराहट से ठन ठन करती मधुर प्रीति भरी झन्कार।संगिनी सहेलियों की राधे संग स्नान करते हंसी ठिठोली भरी मस्ती की मंत्रमुग्ध करने वाली फुहारें और सेवारत सखियों का चंदन उबटन महावर घिसने से घर्षण की झन्कार।सच !!सब...

करुणामई श्री राधा महाभाव

श्री राधा जी के लिये कहा गया है- देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता। सर्वलक्ष्मीमयी सर्वकान्तिः सम्मोहिनी परा।। श्रीकृष्ण की सेवारूपा क्रीड़ा की नित्य निवासस्थली होने के कारण या श्रीकृष्णनेत्रों को अनन्त आनन्द देने वाली द्युति से समन्वित परमा सुन्दरी होने के कारण श्रीराधा ‘ देवी ’ हैं। जहाँ-कहीं भी दृष्टि जाती है या राधा का मन जाता है , वहीं राधा जी को श्रीकृष्ण दिखते हैं। इनकी इन्द्रियाँ सदा-सर्वदा श्रीकृष्ण का संस्पर्श प्राप्त करती रहती हैं। अतः ये कृष्णमयी हैं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक इच्छापूर्ति करने के रूप में राधा जी तन , मन तथा वचन से उनकी आराधना में अपने को व्यस्त रखती हैं , अतः ये ‘ राधिका ’ हैं। सभी देव , ऋषि-मुनियों की पूजनीय , सभी का पालन-पोषण करने वाली और अनन्त ब्रह्माण्डों की होने के कारण ‘ श्रीराधा जी ’ परदेवता हैं। श्रीकृष्ण की प्राणस्वरूपा मूलरूपा होने के कारण जननी ये ‘ सर्वलक्ष्मीमयी ’ हैं। सर्वशोभासौन्दर्य की अनन्त खान , समस्त शोभाधिष्ठात्री देवियों की मूल उद्भवरूप एवं नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण जी की समस्त इच्छाओं की साक्षात मूर्ति होने के कारण ये ‘ ...

(((((((((( विष्णु भक्त प्रह्लाद ))))))))))

योग विद्या के बहुत बड़े जानकार और तमाम तरह की सिद्धियां रखने वाले विष्णु भक्त ब्राह्मण शिव शर्मा द्वारका में रहते थे. शिव शर्मा के पांच बेटे थे. यज्ञ, वेद, धर्म, विष्णु और सोम. सभी एक से बढ कर एक पितृ भक्त थे. . शिव शर्मा ने अपने बेटों के पितृ प्रेम की परीक्षा लेनी का निश्चय किया. शिव शर्मा सिद्ध थे इस लिए माया रचना उनके लिए कोई कठिन बात नहीं थी. उन्होंने माया फैलाई. अगले दिन पांचों पुत्रों की माता बहुत बीमार हो गईं. उनको बहुत तेज बुखार हुआ. . बेटों ने बहुत दौड़ धूप की. वैद्य को दिखाया पर कोई लाभ न हुआ. उनकी माता का देहांत हो गया. बेटों ने पिता से पूछा अब आगे क्या आदेश है. शिव शर्मा को तो बेटों की परीक्षा ही लेनी थी. सो उन्होंने सबसे बड़े बेटे यज्ञ को बुलाया. . उन्होंने यज्ञ से कहा- तुम किसी तेज़ हथियार से अपनी मां के मृत शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के इधर उधर फेंक दो. यज्ञ शर्मा ने एक बार भी न तो इसका कारण पूछा न ही कोई सवाल किया. पिता के आदेश का पालन कर आया. . अब शिव शर्मा ने दूसरे बेटे को बुला कर कहा- बेटे वेद तुम्हारी मां तो अब रही नहीं. मैंने एक बहुत रूपवती दूसरी स्त्री देखी है...

((( श्रीहरि ने सुधारी देवेंद्र की बुद्धि )))

इंद्र ने एक बार घमंड में भरकर ऐसा सभागार बनवाने का निर्णय लिया जैसा कभी किसी ने न बनवाया हो. तुरंत विश्वकर्मा को काम में लगा दिया गया. सभागार बनने लगा. . विश्वकर्मा काम पूरा कर इंद्र को निरीक्षण के लिए बुलाते तो इंद्र कुछ न कुछ मीन मेख निकाल देते और फिर नए सिरे से काम करने का आदेश दे देते. इस कारण विश्वकर्मा का काम लगातार सौ साल तक चला लेकिन भवन पूरा ही न हो सका. . भगवान विश्वकर्मा को इन सौ सालों से एक भी छुट्टी नहीं मिल सकी. विश्वकर्मा जी परेशान होकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और परेशानी बताई. विश्वकर्मा की यह दुर्गति देख ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु से इसका समाधान निकालने को कहा. . विष्णुजी ने सारी बात सुनने के बाद तय किया कि इंद्र का घमंड नष्ट किए बिना बात नहीं बनेगी. भगवान ने बटुक यानी छोटे ब्राह्मण बालक जो शिक्षा ग्रहण के लिए गुरूकुल जाते हैं. बटुक बनकर श्रीहरि इंद्र के पास गए. . उन्होंने इंद्र से पूछा- मैं आपके अद्भुत भवन निर्माण की दूर-दूर तक फैली प्रशंसा सुनकर आया हूं. यह भवन कुल कितने विश्वकर्मा मिलकर तैयार कर रहे हैं और यह पूरी तरह बनकर कब तक तैयार हो जायेगा ? . इंद्र...

श्री राधाचरण रेणु --

" सद्योवशीकरण चूर्णमनन्त शक्तिम् " श्यामा जु के पदकमल की धूलि श्यामसुन्दर को वश में करने वाली है । ऐसी धूलि कौनसी है , ब्रजरज । और भाव राज्य में नित्य धाम रज जिसे दृश्य जगत में ब्रज में ही प्राप्त किया जा सकता है । ब्रजरज में अन्तरंग और बहिरंग से भेद है । जैसे वहां करील के वृक्ष पर काँटे है । जल भी खारा है , जल की बात सब करते पर पीते फिल्टर ही , आश्रमों में भी फिल्टर ही पिया जाने लगा है क्योंकि बाहर का रूप भिन्न है । गर्मी में भयंकर गर्मी अनुभव होती है यह सब बाहरी रूप है । ब्रज की आंतरिक स्थिति कुछ और है ... ! किसी ने प्रियाजी को कहा इस शिखर पर चढ़ सको तो तुम्हें श्यामसुन्दर के दर्शन हो सकेंगे । दोपहर का समय , गर्मी के दिन । पक्की गर्मी दोपहर की , बारह से एक बजे के बीच जब बाहर होना अर्थात लू की चपेट में होना । लेकिन प्रेम में गर्मी कहाँ प्रतीत होती है , प्रियाजी प्राणनाथ मदनमोहन दर्शन के लिये बिना किसी विकल्प और बिना आवरण पद कमलों से चढ़ गयी । कमल से कोटि गुणा सुकोमल उनके चरणारविन्द , कमल की पन्खुड़ियाँ तो चुभ जाती है उन्हें । पंकज पराग बहुत कोमल होता है वह भी जिनके चरणो...

रसीलौ जुगल जौरी

रसीलौ जुगल जौरी रसभरौ निकुंज मा बैठ्यौ है।लालजु के हाथन मा एकौ सुर्ख कछु अधिक ही खिलौ गुलाब है।जा सौ लालजु लाडलीजु के कपोलन,अधरन कू गुदगुदाय रह्यौ। या ऐसौ कह लिजौ मनुहार कियै रह्यै-लाडली जु नेक नैनन मा निहार ल्यै दैओ। लाडली जु पलकन कू उठाय या कै दायँ बायँ देखै,किंतु नैन नाय मिलावै,या सौई लाल कौ आतुरता ओरि जोर सौ बढाय रह्यी। लालजु कौ धीर कौ बाँध टूटवै कौ ह्यै रह्यौ,लाडली जु मानै ही नाय...अबकि बैर तौ लालजु बहौतहि अधीर ह्यै गयै,या नै जौर सौ लाडली जु कौ खैच ल्यी,दौनो हाथन मा लली कौ मुख लैके जबरन वा कै अधर चूम ल्यै।अली नैनन मा नैन मिलाय कै रस लूटवै लगौ,गुलाब छाड कै कमलनी पकर लयी.... रसीलौ!नैनन बतियावै। मनुहार कियै लली नैक निहारौ,लली गुलाब सौ सहलावै। दैखे इत्त उत्त दैखे ना नैनन,अतिहि लाल कू तरसावै। टूट्यौ बाँध करि लाल जौरि,खैच अधर धरि जावै। छाड गुलाब दयौ री प्यारी,कर कमलनि कौ पावै।