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!!आकर्षण मर्धन घर्षण !!

एक अद्भुत आकर्षण भरा रहता सदा वृंदावन की कुंज निकुंजों में।सुबह सकारे माँ यशुमति जब लाड़ले श्यामसुंदर जु के लिए नवनीत बनाती हैं तो उनकी मथानी मंथन में एक अद्भुत घर्षण भरा रहता है।मईया के आभूषणों की झन्कार और मथानी से घट के घर्र घर्र स्वर का संगीत संगम और इस पर भी मईया के नेत्रों में भरे कान्हा की भावलहरियों से उद्गम होता मुख से सुंदर गुणगान जिसे मईया सहज ही गा पातीं हैं।उनका लाल सोया हुआ है यह जान मईया मंद स्वर से गातीं रहतीं हैं जैसे सहज ही बसंत में पुष्प पत्रावली नीलवर्णा यमुना जु का सुनहरा श्रृंगार कर रही हो।वहीं गोप-गोपांग्नाओं का भवन में आगमन उनके पद कुण्डल व पाजेब की मधुर ध्वनियाँ।भोर में ही श्यामसुंदर की दर्शन लालसा से बहकी गईयों का रम्भाना और बछड़ों की सखाओं संग शंख वाद्यों से ताल मिलाती मधुर रम् रम् झन्कार।सखियों का घुंघरू बंधे कलशों को उठा जल भरने जाना और गगरिया की आपसी टकराहट से ठन ठन करती मधुर प्रीति भरी झन्कार।संगिनी सहेलियों की राधे संग स्नान करते हंसी ठिठोली भरी मस्ती की मंत्रमुग्ध करने वाली फुहारें और सेवारत सखियों का चंदन उबटन महावर घिसने से घर्षण की झन्कार।सच !!सब प्रियाप्रियतम जु के प्रेम में भीगे रसभीने मधुर गहन स्वर जो वृंदा देवी का ही दैहिक श्रृंगार करते हैं जैसे कोई अर्धनिमलित नृत्यांगना के अंगड़ाई लेने से उसके पदनूपुर स्वतः ही झन्कृत हो उठे।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे यह मधुर झन्कार कर दो
घर्र घर्र ठन ठन छम छम झर्र झर्र
अगर तुम जो कह दो तो
मधुर स्वर"र"होकर
मयूर सी इठलाती 
पवन संग राग अनुराग गाती
झाँझर सी झन्कार बन
कुंज निकुंजों में इतराती फिरूँ !!

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