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दीक्षा

दीक्षा देने और लेने की अनेक विधियां शास्त्र में प्रचलित है ।

गौड़ीय परंपरा के अनुसार पहले नाम दीक्षा दी जाती है, जिसमें हरे कृष्ण महामंत्र साधक को दिया जाता है ।

वह महामंत्र का जप करता है । जप करते करते उसके चि्त्त की शुद्धि और उसके अंदर योग्यता प्राप्त होती है । उसके बाद उसको मंत्रदीक्षा जिसमें गोपाल मंत्र दिया जाता है ।

बिना किसी ऐसे संत या वैष्णव से सुने हुए यदि हम नाम करते भी हैं तो उसको कच्चा चावल कहा गया है ।

कच्चा चावल नहीं खा सकते हैं । 2। 4 ।10 दाने खा लेंगे, लेकिन भरपेट नहीं खाया जाता है

जो वैष्णव, जो साधक स्वयं निष्ठापूर्वक महामंत्र करता है । संख्या पूर्वक नाम का आश्रय लेता है वह एक प्रकार से चावल को पकाता है ।

उसके पास जो चावल होता है, जो मंत्र होता है वह पके हुए उबले हुए चावल की तरह से होता है उसके द्वारा कान में महामंत्र को सुनने के बाद जब महामंत्र का जप किया जाता है, उसका फल तीव्र होता है ।

मन्त्रदीक्षा एक परंपरा से जोड़ने का क्रम है । नाम दीक्षा किसी भी वैष्णव संत से ली जा सकती है । उसी वैष्णव संत को महामंत्र की नाम दीक्षा देनी चाहिए जो स्वयं नाम में निष्ठा रखता हो ।

फिर उन्हीं संत, वैष्णव से ही मंत्र दीक्षा लेनी चाहिए । फिर भी ऐसा भी होता है । हो सकता है कि नाम दीक्षा आप अपने शिक्षा गुरु से भी ले सकते हैं । किसी भी संत से ले सकते हैं ।

उसके बाद परिस्थिति यदि अनुकूल न हो तो मंत्र दीक्षा किसी अन्य संत वैष्णव से भी ली जा सकती है ।

यह नाम दीक्षा ऐसे ही है जैसे प्री मेडिकल  की कोचिंग होती है । नाम द्वारा एक वैष्णव आपको दीक्षा के योग्य बना देता है ।

चाहे वह फिर स्वयं दीक्षा दे । अथवा कोई वैष्णव अन्य संत दीक्षा दे दे ।

इसलिए यदि आप अपने आप ही नाम महामंत्र कर रहे हैं बहुत अच्छा है । लेकिन किसी नाम निष्ठ महामंत्र सेवी से यदि नाम ले ले तो उसके प्रभाव और उसकी प्रगति में निश्चित ही अंतर महसूस होगा । दीक्षा किसी अन्य वैष्णव । संत । गोस्वामी । आचार्य से बाद में ले सकते हैं ।

अपनी यजमानी या शिष्य संख्या बढ़ाने वाले धन, यश लोलुप तथाकथित संत, आचार्य तुरंत ही बिना जांचे परखे भी दीक्षा देने लगे हैं ।

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई

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