*जय श्री कृष्ण*
छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।
सुनो दिल जानी, मेरे दिल की कहानी तुम,
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूं भुलानी,
तजे कलमा-कुरान साड़े गुननि गहूंगी मैं।।
नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै,
हूं तो मुगलानी, हिंदुआनी बन रहूंगी मैं।।
ताज बीबी के इस ललित छंद की जितनी भी व्याख्या की जाये, वह अधूरी ही होगी | अकबर की हिन्दू पत्नी जोधाबाई को तो बहुत लोग जानते हैं, किन्तु उनकी यह मुस्लिम पत्नी भी भगवान कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हुईं | अकबर की इस पत्नी का नाम ताज बीबी था |
इनकी समाधि आज भी ब्रजभूमि की रमन रेती से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है और कृष्ण भक्ति की गाथा कह रही है |
इनके विषय में कथा है कि एक बार ताज बीबी यात्रा पर चल पड़ीं | मार्ग में एक पड़ाव ब्रज में पड़ा | घंटे की अवाज सुनकर ताज बीबी ने लोगों से पूछा कि यह क्या है | दीवान ने कहा यहां कुछ लोगों का छोटा खुदा रहता है | ताज ने आग्रह किया कि वह छोटा खुदा से मिलकर ही आगे चलेंगी | किन्तु मंदिर में प्रवेश करना चाहा तो पंडों ने उन्हें रोक दिया | इस पर ताज वहीं बैठकर गाने लगीं | कहते हैं ताज की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने इन्हें साक्षात दर्शन देकर कृतार्थ किया |
ताज बीबी गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका बन गईं |
इन्होंने कृष्ण की भक्ति में कविताएं, छंद और धमार लिखे जो आज भी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में गाए जाते हैं | पुरातत्व विभाग की उपेक्षाओं के कारण इनकी समाधि आज विराने में कांटों के वन से घिरा हुआ गुमनाम पड़ा है | जब आप ब्रजभूमि की यात्रा पर जाएं तो कृष्ण की भक्त ताज बीबी की समाधि के भी दर्शन करें, ताकि कृष्ण की यह भक्त गुमनामी में खो न जाएं |
मुल्लाओं ने शरअ की दुहाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया –
अब शरअ नहीं मेरे कुछ काम की,
श्याम मेरे हैं, मैं मेरे श्याम की |
बृज में अब धूनी रमा ली जायेगी,
जब लगन हरि से लगा ली जायेगी |
और आगे वे कहती हैं –
अल्ला बिस्मिल्ला रहमान औ रहीमी छोड़,
पुर वो शहीदों की चर्चा चलाऊँगी |
सूथना उतार, पहन घाघरा घुमावदार,
फ़रिया को फार शीश चुनरी चढ़ाऊंगी ||
कहत है ताज कृष्ण सों पैजकर,
वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाउंगी |
बांदी बनूंगी महारानी राधा जू की,
तुर्कनी बहाय नाम गोपिका कहाउंगी ||
सारे पुरुषार्थों के सार, प्रेम मूर्ति आनंदघन नन्द के फरजंद को पाकर अलमस्ती और बेफिक्री से सराबोर हो गई थीं ताज बीबी | वे बार बार अपने विरोधियों से कहती हैं –
क्यों सताते हो मुझे पछताओगे |
दिलजलों की आह से जल जाओगे | जय श्री राधे
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