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#जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से: _*विषय :- निराशा*_

*निराशा हमको आती क्यों है ? उसका क्या कारण है ? उसका इलाज करो । जो प्राप्त वस्तु है उसका अनादर करने से निराशा आती है । सोचो , हमको मानव देह मिला , भारत में जन्म मिला, महापुरुष मिला , तत्वज्ञान मिला उसके द्वारा दिया हुआ , तो सात अरब आदमियों में कितने आदमी हमारे बराबर है जिनको ये सब सौभाग्य प्राप्त है । कितने हजार आदमी है , कितने लाख आदमी है जिनको इतनी भगवत्कृपा मिली है जितनी हमको मिली हैं । तो तुम्हारे दिमाग में ये आएगा कि ऐसे तो बहुत कम लोग है । बार - बार सोचो , कितनी बड़ी भगवत्कृपा मेरे ऊपर है अगर मृत्यु के एक सेकण्ड पहले भी आपको यह बोध हो गया कि कितना सौभाग्यशाली हूँ कितनी भगवत्कृपायें मेरे ऊपर हुई है । देव - दुर्लभ मानव देह अनन्त जीवों में किसी - किसी भाग्यशाली को ही मिलता है , फिर मेरे जैसा सौभाग्यशाली कौन होगा जिसको ऐसा गुरु मिला जो केवल कृपा ही करता है । जब उनका अनुग्रह प्राप्त है तो निराशा की क्या बात है । धिक्कार है मेरे जीवन को । अपनी बुद्धि को उनके श्रीचरणों में डाल दो तो निराशा हट जायेगी । और अगर हट गई और मृत्यु हो गई ,तो अगले जन्म में फिर आपको आशावाद के अनुसार ही फल मिलेगा ।*
*२) प्राप्त कृपाओं का बार - बार चिन्तन करना ही निराशा से बचने का इलाज है ।*
*३) निराशा आने का मतलब ये है कि उसने सारी भगवत्कृपाओं पर लात मार दिया । जितनी भगवत्कृपा उसके ऊपर हुई , महापुरुष कृपा हुई , उसका बार - बार चिन्तन नहीं किया । निराशा आते ही बुद्धि को फटकारना चाहिए फिर तुमने अपराध किया , क्या कृपा बाकी है जो तुम्हारे ऊपर नहीं हुई । प्रतिकूल चिन्तन की धारा चलने न पावे , चिन्तन शुरु होते ही तुरन्त समाप्त करो ।*
*४) जब ये ज्ञान है कि निराशा हानिकारक चीज़ है और वो आने लगी , होशियार क्यों नहीं हो गये , धिक्कारा क्यों नहीं ,अपने आपको ? तुरन्त सही चिन्तन शुरू क्यों नहीं किया ? जब जानते हो कि चिन्तन में अनन्त शक्ति है , राक्षस बना दे , महापुरुष बना दे । सारा काम चिन्तन का है और कुछ है ही नहीं , विश्व में । अधिक चिन्तन जिस चीज का करोगे वैसे ही बन जाओगे । अच्छाई का चिन्तन करो अच्छे बन जाओगे , बुराई का चिन्तन कुछ दिन करो , कितना भी अच्छा हो , बुरे बन जाओगे ।*
*चिन्तन की लिंक के अनुसार उत्थान - पतन दोनों संभव है । इसलिए मन को खाली नहीं रखो , गलत संग में नही डालो , गलत व्यक्तियों से बात न सुनो , न करो और कही कान में पड़ जाये तो उसको ऐसे फेंक दो जैसे कंकड़ को खाना खाते समय फेंक देते हैं ।*

*५) हर जगह , हर बात में तुमसे आगे लोग हैं अब भी हैं । बुद्धि में आगे हैं , सुन्दरता में आगे हैं , बल में आगे हैं तो क्या कोई आदमी जहर खा लेगा , इसके पीछे । क्यों पागल हुये जा रहे हो ? स्कूल प्रिंसिपल हमेशा ऊपर बैठती है , वो तुम्हारी हेड है । अरे ! हेड है तो क्यों मरी जा रही हो । अरे ! वो हेड तो रहेगी ही । तुम प्रिंसिपल हो जाओगे , तो तुम्हारे ऊपर एक और रहेगा कोई । कोई न कोई तो आगे रहेगा ही । तो इन सब बातो को सोचना चाहिए , विवेक से और निराशा की बीमारी को पैदा न होने दें , पैदा हो जाये तो बढ़ने न दें ।*
*६) गुरु कृपा का बार - बार चिन्तन करो निराशा अपने - आप चली जायेगी ।*
विषय :- #निराशा
पुस्तक :- #गुरु_कृपा
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज

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