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♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

दोपहर 12 बजे श्री महाराज जी साधना हाल में संकीर्तन के माध्यम से ब्रजरस की वर्षा कर रहे थे कि अचानक आपकी दृष्टि अपने बचपन के सहपाठी बाल सखा श्री रमाशंकर शुक्ल, गढगढा, मनगढ़ पर पडी जो घायलावस्था में आपके दर्शन के लिए आ रहे थे। आप तुरन्त मंच से उतरकर अपने मित्र के पास गये और उन्हें हृदय से लगाते हुए करूण स्वर में पूछा कि अरे ये क्या हो गया, कैसे हो गया? उन्होंने बताया कि अभी दो दिन पूर्व एक्सीडेंट हो गया था। उन्हें स्वयं ही बडे प्यार से पकड कर लाये और अपने पास कुर्सी पर बैठाया, उन्हें आप बडी करूणा एवं अपनत्व से निहारते रहे। यह दृश्य इतना हृदय स्पर्शी था कि सभी साधकों की आँखों से आँसू बहने लगे कि आज हम साक्षात् कृष्ण सुदामा की जोडी के दर्शन कर रहे हैं। आपने तुरन्त अपने ड्राइवर को बुलाया और उससे कहा कि इन्हें हमारी कार से घर छोडकर आना और अपने सखा से कहा कि अब तुम इस उम्र में साइकिल मत चलाया करो।
इसी संदर्भ में उल्लेखनीय है, श्री रमाशंकर शुक्ल जिन्हें बाल्यावस्था में ही श्री महाराज जी ने अपनी दिव्य भगवत्ता के अनेक बार साक्षात् अनुभव कराये हैं और हृदय से आप ये मानते रहे हैं कि मेरा सहपाठी साधारण नहीं ये भगवान् है। एक बार, पुरानी बात है कि श्री महाराज जी कृष्ण कुँज में बैठे थे। आपने श्री महाराज जी से कई महत्वपूर्ण प्रश्न किये और श्री महाराज जी ने बडे ही सहज भाव से आपके प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि हमें रूपध्यान पूर्वक राधाकृष्ण की भक्ति करनी है, कोरे कर्म काण्ड से और शुष्क ज्ञान से कुछ नहीं मिलेगा। इस प्रकार श्री महाराज जी ने तत्वज्ञान कराया, बस उसी समय आपने श्री महाराज जी के चरण पकड लिये और भाव विभोर होकर कहा कि आज से आप मेरे गुरू है और मैं आपका शिष्य हूं। तब से आप श्री महाराज जी को अपना गुरू मानकर उनके श्री चरणों में नित्य प्रणाम करते हैं।

                   कृपावतार श्री कृपालु महाप्रभु की जय।
                           प्यारे प्यारे महाराज जी की जय।

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