एक बार एक सरदार जी ट्रक लेकर बरसाना आये कुछ सामान मँगवाया गया था। महाराज जी अपनी चलने वाली चेयर से घूम रहे थे। उसने ट्रक में बैठे ही बैठे दर्शन किया। उसने महाराज जी के बारे में बहुत सुन रखा था कि ये बहुत बडे सन्त है। उसने मन ही मन सोचा कि यदि ये सचमुच ही बडे सन्त हैं तो मेरे ट्रक में मेरे पास आकर बैठें। उसका इतना सोचना था कि महाराज जी चेयर से उठे और उसके पास वाली सीट पर बैठ गये वो इतना खुश हुआ और बोला धन्य है प्रभु सोचा और हो गया।
एक बार एक सत्संगी मनगढ़ गयीं बहुत पूजा पाठ और व्रत रखती थीं करवाचौथ वृहस्पतिवार, बरमावस, अमावस्या वगैरह। श्री महाराज जी को जब पता चला तो महाराज जी ने कहा अरे जब तुझे सागर मिल गया तो छोटी-छोटी नदियों से क्या करना।
महाराज जी जब कहीं जाने को तैयार होते थे तो बहुत पहले पुराने समय में महाराज जी गाडी में जब बैठते थे तो गाय महाराज जी को चारों तरफ से घेर लेती थी कोई गाडी के आगे खडी होती, कोई खिडकी में से मुंह डालकर चाटती थी, कोई आँसू बहाती थी। तो महाराज जी जब उनके ऊपर हाथ फिराते और कहते कि रास्ता छोडो जल्दी आयेंगे तो वो रास्ता छोडती। ऐसे हैं श्री महाराज जी जिन्होंने लता पता को पशु पक्षी सभी को अपना बना लिया।
हमारे प्यारे प्रभु की कृपा अनन्त हैं उनकी लीलाएं अनन्त हैं
गिरधर तो है प्राण हमारे
गुरूवर मेरे प्राण पियारे
अलबेली सरकार की जय
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राधे राधे ।