1 - अपना स्वरूप :-- मैं ईश्वर का अंश हूँ, देहादि नहीं हूँ।
2 - ध्येय का स्वरूप :- मेरे इष्टदेव ( श्री राधा कृष्ण ) सच्चिदानन्दस्वरूप हैं।
3 - साधन का फल :-- इष्टदेव के प्रति आत्यंतिक अनुराग ही साधन का प्रधान फल है।
4 - साधन का विघ्न :- इष्टदेव के सिवा और सम्पूर्ण प्रपञ्च ही विघ्न है।
संसार में सुख नहीं है। यदि कोई कहीं सुखी दिखाई भी पड़ता है तो वह भी भ्रान्तिमात्र है, क्योंकि सांसारिक सुख अनित्य, सीमित एवं परिणामी होता है। अतः साधक को सांसारिक सुखों का त्याग करना चाहिए।
~~~ जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ।
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राधे राधे ।