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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*श्रीप्रिया हृदय निधि श्रीवृन्दावन*

श्री वृंदावन श्री वृंदावन श्री वृंदावन आहा........। श्री किशोरी जू का हृदय साकार प्रफुल्लित रससिक्त रसार्णव रससार आह्लाद का श्रृंगार महोदधि श्री वृंदावन ......। श्री रसिकों का उद्घोष श्री प्रिया जू का ही हृदय दर्शन है श्रीवृंदावन ...विलसते अनन्त सुख श्रृंगार । महाभाविनि का सेवार्थ निज प्रेम हेतु सुखालय ... अनन्त सरस उत्सवों के धर्ता-भर्ता श्रीविपिन राज और श्रीप्रिया हृदय प्रेम के अनन्त महाभावों का मूल उद्गम है ...अभिसारिणी श्रीप्रिया का श्रृंगारात्मक अभिसार ... अनन्त रस विलास निकुंजों से सुसज्जित श्रीविपिन ।  श्रीवृंदावन का रस मति का नहीं वरन केवल हृदय का विषय है सो मात्र हृदय में ही हृदयंगम होवे  यह भावराज्य , हृदय में श्रीयुगल स्वरूप को उनके सरस उत्सवों सँग कोई विराजने को उन्मादित हो उठे तो वह भीगे होते है श्रीविपिन के डाल-पात और फूल-फूल से गूँथते सुखों को भरने में । श्रीवृंदावन प्राकृत स्थान या भूमि भर का नाम ना है , यह तो श्री प्रिया के अनन्त प्रेम भावों का प्रकट श्रृंगारमय रसमय दर्शन है । भेद की सत्ता इस मायिक जगत में है , श्रीविपिन को दिया सुख श्रीप्रिया की ह...

कृपालु की प्रतिज्ञा

अरे! मैं तो तैयार बैठा हूँ प्रेम देने के लिए, कोई लेने वाला तो हो .......! अनाधिकारी को भी अधिकारी मैं बना दूंगा , कोई बात तो माने मेरी......! किसी को परवाह ही नहीं अपनी , तो मैं क्या कर लूँगा ? क्षण क्षण अपना, साधना तथा सेवा में व्यतीत करो । आज का दिन फ़िर मिले ना मिले !!  दोबारा मानव देह फिर मिले ना मिले !! इस समय तो मानव देह भी मिला है और गुरु भी मिल गया है । फिर लापरवाही क्यों ? इससे अच्छा अवसर फ़िर आसानी से नहीं मिलने वाला......। बार - बार सोचो !!!  " तुम्हारा कृपालु "

प्रश्न : #पंचकोष क्या है?

#उत्तर : कोष 'मन' की अवस्थाओं के नाम हैं। वे पाँच हैं - #अन्नमय, #प्राणमय, #मनोमय, #विज्ञानमय और #आनन्दमय। अन्नमय और प्राणमय कोष के आधीन जब मन रहता है तो वह अत्यन्त निम्न स्थिति है। इसको काटना बहुत मुश्किल है। गुरु को भी इसको काटने में बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। #अन्नमय_कोष जब कट जाता है तब अन्न की विभिन्नता का मन पर कोई असर नहीं होता। #प्राणमय_कोष में पंच प्राण होते हैं, जिनमें मन में प्रमाद आदि अनेक दोष उत्पन्न होकर मन को साधना से विरत कर देते हैं। इसके कट जाने पर वह विरत न कर पाएँगे। योगीजन अनेक प्रयत्नों से इनको वश में कर पाते हैं लेकिन प्रेम से अपनेआप ही दोनों कोष कट जाते हैं। #मनोमय_कोष से साधक को अनेक अनुभव होने लगते हैं और साधक को आनन्द आने लगता है। इसका कट जाना तब जानना चाहिए कि स्त्री की गोद में बैठे हैं और उसके अनेक प्रयत्न करने पर भी मन में विकार नहीं उत्पन्न हो रहा है। #विज्ञानमय_कोष अहंकार का कोष है। अपनी स्थिति का सूक्ष्म अहंकार साधक को आगे नहीं बढ़ने देता है। #आनन्दमय_कोष माया की अन्तिम सीढ़ी है। इसमें आने पर संसार की कोई बाधा अस...

आदि गुरु श्रीशंकराचार्य जी द्वारा भगवान श्री कृष्ण की स्तुति

" यमुनानिकटतटस्थितवृन्दावनकानने महारम्ये | कल्पद्रुमतलभूमौ चरणं चरणोपरिस्थाप्य || तिष्ठतं घननीलं स्वतेजसा भासयन्तमिह विश्वम् | पीताम्बरपरिधानं      चन्दनकर्पूरलिप्तसर्वांगम् || आकर्णपूर्णनेत्रं  कुण्डलयुगमंडितश्रवणम् | मंदस्मितमुखकमलं सकौस्तुभोदारमणिहारम् || वलयांगुलीयकाधानुज्ज्वलयन्तं स्वलंकारान् | गलविलुलितवनमालं स्वतेजसापास्तकलिकालम् || गुंजारवालिकलितमं गुंजापुंजान्विते शिरसि | भुंजानं सह गोपै:  कुंजांतर्वर्तिनं  नमत || मन्दारपुष्पवासित मंदानिलसेवित परानन्दम् | मन्दाकिनीयुतपदं नमत महानन्ददं महापुरुषम् || सुरभीकृतदिग्वलयं सुरभिशतैरावृत: परित: | सुरभीतिक्षपणमहासुरभीमं यादवं नमत ||  By प्रथम मूल आदि जगद्गुरू श्री शंकराचार्य जी  ,

*विन्यक्त पुष्प से केश विन्यास*

ये लीला शृंगार वट की जहाँ पर श्याम सुंदर श्री राधा रानी जी का केश विन्यासः लीला कर रहे है.. . एक बार श्री राधा रानी श्याम सुंदर से मिलने वृन्दावन आयी.. . श्री राधा रानी जी एक दिव्य भाव है स्वाधीन भर्तिका . जब श्री राधा रानी मान धारण करती है और उनका मान भंग करने के लिए श्याम सुंदर अनुनय विनय करते है.. . बहुत अनुनय विनय करने पर मान भंग होता है.. . श्री राधा रानी कहती है मान तभी त्यागू करुँगी जब विन्यक्त पुष्प से ( विन्यक्त पुष्प का अर्थ वो पुष्प जिन्हें भोरे ने छुआ न हो ) मेरे केश विन्यासः करोगो.. . श्री राधा रानी जी एक दिव्य भाव है स्वाधीन भर्तिका . नायक स्वाधीन भर्तृका नायिका के पूर्ण अधीन रहता है, उसकी इच्छा को आज्ञा मानकर शृंगार करता है.. . श्याम सुंदर वन जा का बड़ी ही चतुरता से विन्यक्त पुष्प का चयन करते है वो पुष्प जिन्हें भोरों भी नही छुआ हो.. . श्याम सुंदर स्वर्ण कंघी से श्री राधारानी के मेघमाला जैसे घुंघराले केशों को सुलझा रहे है.. . श्याम सुंदर के लिए श्री राधारानी की एक एक लट मानो कोटि कोटि प्राणों के तुल्य है . श्याम सुंदर की इस प्रीति पूर्व सेवा को देखकर लगता है मानो यमुना का...

इस अति महत्त्वपुर्ण पोस्ट को जरूर पुरा पढ़ें ।

प्रश्न:- तत्त्व ज्ञान  समझ आते हुए भी हमारे व्यवहार में क्यों नहीं आ पाते ? हम सब कुछ जानते , समझते हुए भी गलतियां करते हैं ।  उत्तर - मैं समझा दूंगा , फिर तुम सैद्धांतिक रूप से समझ लोगे, फिर व्यवहार में नहीं आएंगी , क्योंकि सैद्धांतिक समझ कोई समझ हीं नहीं है । समझ वही है जो व्यवहार में आ जाए, नहीं तो समझ का धोखा है । मैं जो शब्द बोल रहा हूं , सीधे-साधे हैं , ये आपलोगों के समझ में आ जातें हैं , मगर शब्दों के भीतर जो छिपा है, वह शब्दों से बहुत बड़ा है, वहां चूक हो जाता है । आप शब्दों की खोल तो इकट्ठी कर लेते हैं परंतु अर्थों को चूक जातें हैं । फिर उस खोल से क्या होगा ! और आपके मन में यह भी सवाल है कि थ्योरिटिकल रूप से जो बातें समझ में आ गया तो व्यवहार में कैसे लाऊं ?  सच यह है कि जब समझ में लाना नहीं  होता , व्यवहार में लाना पड़े तो भी मैं आपसे कहुंगा कि समझ में कुछ नहीं आया।  दरअसल समझ में न आने वाले को हीं व्यवहार में लाने की चेष्टा करनी परती हैं । जिसको समझ में आ गया , बात वहीं खत्म हो गई, व्यवहार में लाने की चेष्टा का सवाल हीं नहीं है । अगर आपको जिस क्षण समझ ...