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आदि गुरु श्रीशंकराचार्य जी द्वारा भगवान श्री कृष्ण की स्तुति

" यमुनानिकटतटस्थितवृन्दावनकानने महारम्ये |
कल्पद्रुमतलभूमौ चरणं चरणोपरिस्थाप्य ||
तिष्ठतं घननीलं स्वतेजसा भासयन्तमिह विश्वम् |
पीताम्बरपरिधानं      चन्दनकर्पूरलिप्तसर्वांगम् ||
आकर्णपूर्णनेत्रं  कुण्डलयुगमंडितश्रवणम् |
मंदस्मितमुखकमलं सकौस्तुभोदारमणिहारम् ||
वलयांगुलीयकाधानुज्ज्वलयन्तं स्वलंकारान् |
गलविलुलितवनमालं स्वतेजसापास्तकलिकालम् ||
गुंजारवालिकलितमं गुंजापुंजान्विते शिरसि |
भुंजानं सह गोपै:  कुंजांतर्वर्तिनं  नमत ||
मन्दारपुष्पवासित मंदानिलसेवित परानन्दम् |
मन्दाकिनीयुतपदं नमत महानन्ददं महापुरुषम् ||
सुरभीकृतदिग्वलयं सुरभिशतैरावृत: परित: |
सुरभीतिक्षपणमहासुरभीमं यादवं नमत ||

 By प्रथम मूल आदि जगद्गुरू श्री शंकराचार्य जी  ,

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 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

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