ये लीला शृंगार वट की जहाँ पर श्याम सुंदर श्री राधा रानी जी का केश विन्यासः लीला कर रहे है..
.
एक बार श्री राधा रानी श्याम सुंदर से मिलने वृन्दावन आयी..
.
श्री राधा रानी जी एक दिव्य भाव है स्वाधीन भर्तिका
.
जब श्री राधा रानी मान धारण करती है और उनका मान भंग करने के लिए श्याम सुंदर अनुनय विनय करते है..
.
बहुत अनुनय विनय करने पर मान भंग होता है..
.
श्री राधा रानी कहती है मान तभी त्यागू करुँगी जब विन्यक्त पुष्प से ( विन्यक्त पुष्प का अर्थ वो पुष्प जिन्हें भोरे ने छुआ न हो ) मेरे केश विन्यासः करोगो..
.
श्री राधा रानी जी एक दिव्य भाव है स्वाधीन भर्तिका
.
नायक स्वाधीन भर्तृका नायिका के पूर्ण अधीन रहता है, उसकी इच्छा को आज्ञा मानकर शृंगार करता है..
.
श्याम सुंदर वन जा का बड़ी ही चतुरता से विन्यक्त पुष्प का चयन करते है वो पुष्प जिन्हें भोरों भी नही छुआ हो..
.
श्याम सुंदर स्वर्ण कंघी से श्री राधारानी के मेघमाला जैसे घुंघराले केशों को सुलझा रहे है..
.
श्याम सुंदर के लिए श्री राधारानी की एक एक लट मानो कोटि कोटि प्राणों के तुल्य है
.
श्याम सुंदर की इस प्रीति पूर्व सेवा को देखकर लगता है मानो यमुना का जलप्रवाह स्वर्णजाल में बंध गया हो..
.
मंजरी श्याम सुंदर को धीरे धीरे कंघी करने को बोलती है क्योंकि राधारानी को अपने केश बहुत प्रिय है...
.
क्योंकि.. मानो श्री राधा के मनोवृत्ति रूपी लता -अंकुर श्रीकृष्ण के चिंतन से कृष्ण वर्ण प्राप्त कर प्रेम से सिंचित होकर लंबे केश के बहाने बाहर निकल आये हो..
.
स्वामिनी का मेघ जैसा कृष्णवर्ण, घन कुंचित, विपुल केशपाश है ( खूब घुंघराले )
.
हरि उनके पीछे बैठे धीरे धीरे कंघी से संस्कार कर रहे है..
.
एक एक केश को ऐसे सुलझा रहे मानो कोटि प्राणों का समान हैं.
.
राधारानी केश सेवा में श्रीहरि ने प्राण उड़ेल दिया है..
.
प्रिय वस्तु की सेवा पाकर आनंद की सीमा नही..
.
आनंद पुलक से भरकर कांपते हाथों से केश संस्कार कर रहे है..
.
प्रियतम का स्पर्श पाकर राधारानी का अंग भी पुलकित है..
.
मंजरी कहती है.. "हे श्याम सुंदर ! आप प्रेम विवर्त विलास में ( प्रेम विवर्त विलाश में श्याम सुंदर खुद को राधारानी समझते है ) और राधारानी को श्याम सुंदर ) कही स्वामिनी की वेणी के जगह जूड़ा मत बांध देना..
.
श्याम सुंदर बोले मुझे व्यथा हो रही होगी प्यारी कोमलांगी है। मुझे केश संस्कार आता नही'- ऐसा सोचकर श्याम सुंदर पीछे से स्वामिनी के कंधे के पास मुख लाकर उनको देख रहे..
.
राधारानी हँसकर कहतीं है- "क्यों व्याकुल हो रहे, नही लगी" ..
.
सुनकर नागर राज का चेहरा खिल जाता है..
.
अपने लाए पुष्पों के साथ मिलाकर नागर ने पुष्प गुछों, गुंजाफ़ल और म्यूरपुच्छ से अद्भुत श्रृंगार किया..
.
केश रचना की परिपाटी देख प्रधान मंजरियां भी आनंद से आत्म हारा हो रही..
.
मंजरियों को लगता है मानो सारा आनंद इस समय उनके नेत्रों में समा गया है..
.
साक्षात श्रृंगार रस ने मूर्तिमान होकर महभाव की सेवा की है..
.
राधारानी भी केश रचना से अति प्रसन्न है।पूछती है, "नागर..! तुम्हे क्या उपहार दूँ ?"
.
तब श्याम सुंदर कहते हैं, "प्यारी ! मान त्याग दो। मुझे आलिंगन रूप पुरस्कार दे दो यदि मेरी सेवा से तुम प्रसन्न हुई हो..
.
स्वामिनी हँसकर हाथ के लीला कमल से उनकी ताड़ना करती है..
.
श्याम सुंदर मुस्कुराकर स्वामिनी का आलिंगन कर लेते हैं
~~~~~~~~~~~~~~~~~
*((((((( जय जय श्री राधे )))))))*
~~~~~~~~~~~~~~~~~
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
राधे राधे ।