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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*☘️आयुर्वेद दोहे☘️*

* पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात! सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!! *धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!* दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!! *ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!* कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!! *प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!* बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!! *ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!* करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!! *भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!* चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!! *प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!* सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!! *प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!*  तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!! *भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार!* डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !! *घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!* एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!! *अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!* पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!! *रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!* सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!! *सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!* भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सु...

क्या वास्तव में मक्का मदीना में कोई शिवलिंग स्थापित है? आप भी जानिए :-

[नोट - इस पोस्ट का उद्देश्य केवल पाठकों को उन बिन्दुओं पर तर्क वितर्क करने के लिए किया जा रहा है जो अभी भी इन बातों से अनभिज्ञ हैं। प्रस्तुत लेख का आधार विभिन्न माध्यमों और सामग्रियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार दिया जा रहा है किसी व्यक्ति विशेष एवं समुदाय को ठेस पहुंचाना का कोई उद्देश्य नहीं है] इस्लाम के आने से पहले, अरब शब्द संस्कृत के अर्व का अपभ्रंश है जो पहले अरव फिर और फिर अरब हो गया अर्व का मतलब घोड़ा होता है सर्वविदित है कि अरब के घोड़े प्रसिद्ध हैं अरब में जिस देवता की पूजा की जाती थी, उसका नाम था हुबल। यहाँ आपको गौर करना पड़ेगा, कि हुबल के सर पर चंद्रमा है, जो हिंदुओं के आराध्य देवो के देव महादेव के सर पर भी विराजमान है। 600 AD से पूर्व वहाँ 3 देवियों की भी पूजा की जाती थी, जिनको वहाँ की लोकल भाषा में अल अज़ा, अल लत, और मीनत कहा जाता था। इन 3 देवियों के हाथ आशीर्वाद मुद्रा में उठे हुए हैं...  और शेर नीचे विद्यमान है।  अब जरा हमारी सनातनी देवियों को देखिए। आपने गौर किया होगा, कि मेक्का, जहाँ काबा स्थित है, वहाँ दुनिया भर के मुसलमा...

आपके सोने का तरीका, पूरा विज्ञान और आपकी जिंदगी जाने सरल शब्दों में ।

*सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।* सोने की मुद्रा:  उल्टा सोये भोगी, सीधा सोये योगी, डाबा सोये निरोगी, जीमना सोये रोगी। शास्त्रीय विधान भी है। आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की बात आती हैं, बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखे बिगडती है। सोते समय कितने गायत्री मंन्त्र /नवकार मंन्त्र गिने जाए  "सूतां सात, उठता आठ”सोते वक्त सात भय को दूर करने के लिए सात मंन्त्र गिनें और उठते वक्त आठ कर्मो को दूर करने के लिए आठ मंन्त्र गिनें। "सात भय:-" इहलोक,परलोक,आदान, अकस्मात ,वेदना,मरण , अश्लोक (भय) दिशा घ्यान 〰🌼〰 दक्षिणदिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं । यम और दुष्टदेवों का निवास है ।कान में हवा भरती है । मस्तिष्क  में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश,मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है। यह बात वैज्ञानिकों ने एवं वास्तुविदों ने भी जाहिर की है। 1:- पूर्व ( E ) दिशा में मस्तक रखकर सोने से विद्या की प्राप्ति होती है। 2:-दक्षिण ( S ...

मानव देह की महत्वता को समझो

सात प्रश्न किये गये हैं रामायण में। आप लोगों ने सुने होंगे। तो पहला प्रश्न यही था- *प्रथमहि कहहु नाथ मतिधीरा सबते दुर्लभ कवन सरीरा।* इसका उत्तर दिया गया- *नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर याचत जेही॥* *न मानुषाच्छेष्ठतरं हि किञ्चित्॥* (महाभारत) देवता लोग चाहते हैं- *दुर्लभं मानुषं जन्म।* (नारद पुराण)  ये दुर्लभ है। स्वयम्भू मनु के पुत्र प्रियव्रत उनके पुत्र आग्नीध्र, उनके पुत्र नाभि उनके पुत्र ऋषभ- भगवान् के अवतार, उनके सौ पुत्र। ऋषभ के सौ पुत्र। उनमें एक तो भरत हैं जिनके नाम से ये भारत बना है। आप सुनते हैं नाम अपने देश का। ये ऋषभ के बड़े पुत्र के नाम से भारत नाम पड़ा है। पहले इसका नाम था अजनाभवर्ष। फिर भरत के कारण भारतवर्ष नाम पड़ा। और ८१ पुत्र कर्मकाण्डी हो गये और नौ पुत्र राजा हो गये- और नौ योगीश्वर हुये। *कविर्हररिरन्तरिक्षः प्रबुद्धः पिप्पलायन:।*   *आविर्होत्रोऽथ द्रुमिलश्चमसः करभाजनः॥*  (भाग. ११-२-२१)  ये नौ योगीश्वर हैं। ये सदा परमहंस, मायातीत। नंगे रहते थे और त्रैलोक्य में कहीं भी जा सकते थे आकाश मार्ग से। तो एक बार एक निमि विदेह थे राजा। वह यज्ञ करा र...

#जगदगुरूत्तम_श्री_कृपालु_महाप्रभु_के_श्रीमुख_से:

हम हार गये आप लोगों से...! हमारा जो परपज(Purpose) है कि तुम लोग भगवान् की ओर चलो, गन्दी भावनायें अन्तःकरण में न लाओ ये हम आशा करते हैं। हमने अपना सारा जीवन तुम लोगों के लिये अर्पित किया है इसलिए कि तुम लोग एक आदर्श शिष्य बनो,जो भी देखे बाहर वाला या तुम्हारे घर वाला कोई देखे माँ, बाप, कोई अरे कितना बदल गया ये, कितनी नम्रता है इसमें, हाथ जोड़ कर बात करता है, हर एक से मीठा बोलता है, क्रोध नहीं करता है। अगर क्रोध आ भी जाय तो भीतर उसको समाप्त कर दो। बाहर से वाक्य न बोलो तो वो बात आगे नहीं बढ़ेगी। फिर एक बात तो ये मुझे कहनी है, कि आप लोग अपना सुधार करें और हमको भी सुख दें। माया से छुटकारा मिल जाय ये सब उद्देश्य आप लोगों का घर से रहा होगा, और न रहा हो तो ये होना चाहिए। मनुष्य देह पाये, भारत में जन्म हो, और गुरु भी मिल जाय, और वो गुरु समझ में आ जाय, सब बात बन जाय और फिर भी हम अपना कल्याण न करें, तो इससे गुरु को दुःख होता है, ये सेवा नहीं है । सेवा का मतलब स्वामी को सुख देना । किसी भी बाप को उसी सन्तान से सुख मिलेगा, जो सन्तान अच्छे आचरण वाली हो, जिसका स्वभाव सरल हो, दीन हो, नम्र हो,...

#सेंधा_नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया, शरीर के लिए Best Alkalizer है :-

आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते है कि नमक मुख्यत: कितने प्रकार का होता है। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt) । सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है । वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़ते हैं। अतः: आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले। काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे, क्यूंकि ये प्रकृति का बनाया है । भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीयां भारत में नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भाली जनता को आयोडिन मिलाकर सम...

संसार को सुधारने का ठेका आपका नही है।

दुनिया के सुधार और उद्धार की चिंता छोड़कर पहले अपना सुधार और उद्धार करो। तुम्हारा सुधार हो गया तो समझो कि दुनिया के एक आवश्यक अंग का सुधार हो गया। यदि ऐसा न हुआ, तुम्हारे हृदय में उच्च भावों का संग्रह नहीं हो सका, तुम्हारे क्रियाएं राग-द्वेष-रहित, पवित्र नहीं हुई और तुमने दुनिया के सुधार का बीड़ा उठा लिया, तो याद रखो तुमसे दुनिया का सुधार होगा ही नहीं। यह मत समझो कि तुम लोकसेवक हो, लोक सेवा करते हो तो फिर तुम्हारे व्यक्तिगत चरित्र से इसका कोई संबंध नहीं है।  तुम्हारा चरित्र कलुषित या दूषित होगा तो तुम लोकसेवा कर नहीं सकते। लोकसेवा तुम उस सामग्री से ही तो करोगे, जो तुम्हारे पास है।  दुनिया के सामने तुम वही चीज रखोगे, उसको वही पदार्थ दोगे,जो तुम्हारे अंदर है। दुनिया को तुम स्वभाविक ही वही क्रिया से सिखलाओगे, जो तुम करते हो। इससे दुनिया का कल्याण नहीं कभी नहीं होगा। सुनने वाले लाखों है, सुनाने वाले हजारों हैं, समझने वाले सैकड़ों है, परंतु करने वाले कोई विरले ही हैं सच्चे पुरुष वे ही हैं और सच्चा लाभ भी उन्हीं को प्राप्त होता है, जो करते हैं। उपदेश करो अपने लिए, तभी तुम्हारा उपदेश...

*क्रोध से अपना और दूसरों का अनिष्ट ही होता हैं*

क्रोध को भी हम जीतें ।‌ क्रोध अपने से कमजोर पर आता है । हमारा रोष निकलेगा बच्चों पर , नौकरों पर तथा जिनसे हमें हानि की संभावना नहीं है ,उन पर । किंतु जिसके निमित्त से क्रोध निकला हों ; उसकी उस बुराई को तो वह दूर करने से रहा उल्टे वह बुराई एक बार दबकर अन्तश्चेतनामे वापस जाकर गहरी बन जायेगी । अत एव क्रोध से अपना और दूसरों का अनिष्ट ही होता है । सोचें , क्या हमने सबके मंगल का ठेका ले रखा है और हमारे क्रोध करने से ही उसका मंगल हो जायेगा ? उसकी बुराई मिट जायगी ? किंतु यह भ्रम है कि मैं डाॅंट डपटकर किसी को सुधार लूॅंगा । अपने बच्चों पर हम प्यार भरा शासन कर सकते हैं ,पर उसमे क्रोध की गंध भी नहीं आनी चाहिए । हम जान भी नहीं पाते ,उन -उन  अवसरों पर उन बच्चों का नौकरों का सुधार तो होता नहीं , उल्टे हमारी आस्तिकता की नींव भूकंप की भाॅंति हिलने लगती हैं ,जो अभी अभी आगे आने वाली विपत्तियों में हमें और भी खिन्न बना देती है । इस दोष को सर्वांश में जितना शीघ्र से शीघ्र हम कुचल सकें कुचल डाले । नहीं तो उपासना का प्रासाद इस वर्तमान नींव पर निर्मित नहीं हो सकेगा । क्रोध की गंध भी उस उपासना के महल की द...

💖 **शालीग्राम भगवान विष्णु** 💖

शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान विष्णु जी का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं। वैष्णव (हिन्दू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं। शालीग्राम को प्रायः 'शिला' कहा जाता है। शिला शालिग्राम का छोटा नाम है जिसका अर्थ "पत्थर" होता है। शालीग्राम भगवान विष्णु का ही एक प्रसिद्ध नाम है। इस नाम की उत्पत्ति के सबूत नेपाल के एक दूरदराज़ के गाँव से मिलते है जहां विष्णु को शालीग्रामम् के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शालीग्राम को सालग्राम के रूप में जाना जाता है। शालीग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गाँव से भी है जो गंडक नामक नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहां से ये पवित्र पत्थर भी मिलता है। पद्मपुराण के अनुसार - गण्डकी अर्थात नारायणी नदी ...

क्यों और कैसे किये जाते हैं सोलह श्रंगार ?

।। राम ।। भारतीय साहित्य में सोलह शृंगारी (षोडश शृंगार) की यह प्राचीन परंपरा रही हैं। आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था। इनमें से प्राय: सभी शृंगारों के दृश्य हमें रेलिंग या द्वारस्तंभों पर अंकित (उभारे हुए) मिलते हैं। अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश। तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।। मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध। अर्थात् : - अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना। शृंगार का उपक्रम यदि पवित्रता और दिव्यता के दृष्टिकोण से किया जाए तो यह प्रेम और अंहिसा का सहायक बनकर समाज में सोम्यता और शुचिता का वाहक बनता है। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार को जीवन का अहं और अभिन्न अंग माना गया है। आइये देखते हैं क्या होते हैं सोलह शृंगार...

*#ब्रह्मादि_देवताओं_द्वारा_गोलोक_धाम_का_दर्शन*

भगवान विष्णु द्वारा बताये मार्ग का अनुसरण कर देवतागण ब्रह्माण्ड के ऊपरी भाग से करोड़ों योजन ऊपर गोलोकधाम में पहुंचे। गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर है। उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। वहीं तक सृष्टि की अंतिम सीमा है। गोलोकधाम परमात्मा श्रीकृष्ण के समान ही नित्य है। यह भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से निर्मित है। उसका कोई बाह्य आधार नहीं है। अप्राकृत आकाश में स्थित इस श्रेष्ठ धाम को परमात्मा श्रीकृष्ण अपनी योगशक्ति से (बिना आधार के) वायु रूप से धारण करते हैं। उसकी लम्बाई-चौड़ाई तीन करोड़ योजन है। वह सब ओर मण्डलाकार फैला हुआ है। परम महान तेज ही उसका स्वरूप है। प्रलयकाल में वहां केवल श्रीकृष्ण रहते हैं और सृष्टिकाल में वह गोप-गोपियों से भरा रहता है। गोलोक के नीचे पचास करोड़ योजन दूर दक्षिण में वैकुण्ठ और वामभाग में शिवलोक है। वैकुण्ठ व शिवलोक भी गोलोक की तरह नित्य धाम हैं। इन सबकी स्थिति कृत्रिम विश्व से बाहर है, ठीक उसी तरह जैसे आत्मा, आकाश और दिशाएं कृत्रिम जगत से बाहर तथा नित्य हैं। विरजा नदी से घिरा हुआ शतश्रृंग पर्वत गोलोकधाम का परकोटा है। श्रीवृन्द...

श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ीं ये बातें

पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है. ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था. वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए. सबर जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है. जगन्नाथ मंदिर की महीमा देश में ही नहीं विश्म में प्रसिद्ध हैं.  वैसे, इस मंदिर से जुड़ी कुछ ऐसी चमत्कारी बातें हैं जो सभी को आश्चर्यचकित कर देती हैं -  - जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है. - इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है. इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है. - मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं. यह प्रसाद लकड़ी के चुल्हा और मिट्टी की बर्तनों में ही पकाया जाता है. इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है. - मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरों से आ...

गुरुवचनों का संकलन

1. भजन का उत्तम समय सुबह 3 से 6 होता है। 2. 24 घंटे में से 3 घंटों पर आप का हक नही, ये समय गुरु का है। 3. कमाए हुए धन का 10 वा अंश गुरु का है. इसे परमार्थ में लगा देना चाहिए। 4. गुरु आदेश को पालना ही गुरु भक्ति है। गुरु का पहला आदेश भजन का है जो नामदान के समय मिला था। 5. 24 घंटों के जो भी काम, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक करो सब गुरु को समर्पित करके करोगे तो कर्म लागू नही होंगे | अपने उपर ले लोगे तो पांडवों की तरह नरक जाने पड़ेगा, जो हो रहा है उसे गुरु की मोज समझो। 6. 24 घंटे मन में सुमिरन करने से मन और अन्तःकरण साफ़ रहता है. और गुरु की याद भी हमेशा रहेगी. यही तो सुमिरन है। 7. भजन करने वालो को, भजन न करने वाले पागल कहते है मीरा को भी तो लोगो ने प्रेम दीवानी कहा। 8. कही कुछ खाओ तो सोच समझ कर खाओ, क्योंकि जिसका अन्न खाओगे तो मन भी वैसा ही हो जायेगा। मांसाहारी के यहाँ का खा लिए तो फिर मन भजन में नही लगेगा। “जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन, जेसा पीवे पानी वैसी होवे वाणी.” 9. गुरु का आदेश, एक प्रार्थना रोज़ होनी चाहिए। 10. सामूहिक सत्संग ध्यान भजन से लाभ मिलता है. एक कक्षा में होंशियार विद्या...