सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्टूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻

एक बार उड़ीसा की दो लड़कियां चन्दा करने निकली थी। रास्ते में एक पोस्टर पढा अस्पताल में खून देने के बारे में। वे अस्पताल गयीं और वहां खून दिया। वहां से जो पैसे मिले थे, चंदे के रूपयों में रखे। चौराहे पर आयी कि ऐक्सिडेंट हो गया। एक लड़की को गहरी चोटे आई थी। बेहोश सड़क पर पड़ी थी। इतने में एक कार आयी। एक लम्बा व्यक्ति कार से उतरा। बेहोश पड़ी लड़की को अपनी कार में रखवाया और अस्पताल जा पहुंचा। डाक्टर आश्चर्य चकित था। अरे यह तो अभी यहाँ से खून देकर गयी थी। आगंतुक के हस्ताक्षर पर इलाज शुरू हो गया बाहर से दवा आदि लाने के पश्चात् आॅपरेशन शुरू हुआ। आगंतुक व साथ की लड़की बाहर प्रतीक्षारत थे। आॅपरेशन सकुशल सम्पन्न होने की जानकारी के पश्चात् आगंतुक वहाँ से चला गया था।। कुछ दिन पश्चात् दूसरी लड़की अपनी उस सहेली को देखने उसके घर गयी। वहां रखी कुछ फोटो में से उस व्यक्ति की फोटो भी उसने वहां देखी। वह चीख पड़ी, अरे मोहिनी यह तो उसी व्यक्ति की फोटो है जिसने तेरी जान बचायी थी तेरा आॅपरेशन कराया था। वो फोटो महाराज जी की थी। कुछ ऐसा ही एक बार और हुआ कि एक लड़के का एक्सीडेंट हुआ तो एक व्यक्ति उसे अपनी कार में बिठ...

सबसे बड़ा मूर्ख कौन है?

उद्धव ने भगवान से पूछा कि सबसे बड़ा मूर्ख कौन है? तो उन्होंने कालिदास नहीं कहा। उन्होंने कहा, मूर्खोदेहाद्यहं बुद्धिः पन्थाः मन्निगमः स्मृतः। ग्यारहवें स्कन्ध के उन्नीसवें अध्याय का ब्यालीसवाँ श्लोक। सबसे बड़ा मूर्ख वो है जो देखते, सुनते, जानते हुये भी कि हमारे अन्दर कोई है, जिसके कारण हम चल रहे हैं, फिर रहे हैं, देख रहे हैं, सुन रहे हैं, सूँघ रहे हैं, स्पर्श कर रहे हैं, जान रहे हैं, वो चला गया तो कुछ नहीं कर सकते, फिर भी अपने को देह मानते हैं। #जगद्गुरूत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज।

श्रीमद्भागवत, 1/1/2

।।श्रीराम जय राम जय जय राम।। धर्मः प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तासपत्रयोन्मूलनम्। श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वरः  सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात्।।         –श्रीमद्भागवत, 1/1/2 "महामुनि व्यासवेद के द्वारा निर्मित श्रीमद्भागवतमहापुराण में मोक्षपर्यन्त फल से रहित परम धर्म का निरूपण हुआ है। इसमें शुद्धान्त:करण सत्पुरुषों के जाननेयोग्य उस वास्तविक वस्तु परमात्मा का निरूपण हुआ है, जो तीनों तापों का जड़ से नाश करनेवाली और परम कल्याण देनेवाली है, फिर अब और किसी साधन या शास्त्र से क्या प्रयोजन। जिस समय भी पुण्यात्मा पुरुष इसके श्रवण की इच्छा करते हैं, ईश्वर उसी समय अविलम्ब उनके हृदय में आकर विराजमान (बन्दी) हो जाता है ।" प्रोज्झित्कैतवः  ----------------- प्रोज्झित्कैतवः अर्थात् जहाँ कैतव नहीं है अर्थात किसी प्रकार का कपट नहीं है। परन्तु श्रीधराचार्य जी इसकी टीका करते हुए कहते हैं –"प्रशब्देन मोक्षाभिसन्धिरपि निरस्तः' (श्रीधरी टीका. 1/1/2) अर...

भक्ति_के_64_अंग

1. गुरु के चरणों में आश्रय ग्रहण करना  2. उनसे दीक्षा प्राप्त करना  3. गुरु की सेवा  4. सच्चे धर्म की शिक्षा और जिज्ञासा 5. साधुजनों के मार्ग का अनुसरण  6. कृष्ण से प्रीति के लिए भोग विलास का त्याग  7. कृष्ण तीर्थाें में निवास  8. निर्वाह मात्र के लिए वस्तु ग्रहण करना  9. एकादशी उपवास  10. आंवला, पीपल, विप्र और वैष्णव का सम्मान  11. सेवा अपराध और नाम अपराध से दूर रहना  12. अवैष्णव के संग का त्याग  13. अनेक शिष्य न बनाना  14. अनेक ग्रंथों का आंशिक अध्ययन और व्याख्या आदि की कला का वर्जन  15. लाभ और हानि में समबुद्धि  16. शोकादि के वशीभूत न होना  17. अन्य देवताओं की निंदा न सुनना 18. अन्य शास्त्रों की निंदा न सुनना  19. विषय-भोग की चर्चा न सुनना  20. किसी भी प्राणी को शरीर, मन और वाणी से दुख न देना  21. श्रवण  22. कीर्तन  23. स्मरण  24. पूजन  25. वंदन  26. परिचर्चा  27. दास्य...

महराज जी के उडिसा प्रवास के दरम्यां उनके गाइड लाइन में एक दैनिक प्रार्थना का उर्दू तर्जुमा लिखी गई थी !( जगद्गुरु साधना शिविर २०१०) पेश है

हे कृपालु इलाही ! कैसी है दिल सोज़ मेरी दासतां, बेरुखी का है सबब कैसा ये दिलवर जाँ  फिशां ! बेइन्तिहां सदमें उठाए और उठाते  जा रहे , रोश  शब कर के  गुनाह  गुबार     दिल में ला रहे | तेरे आशिक  कह रहे हैं उलफ़त से बाज़ू को पसार तेरा दिलवर कर रहा  है   कब से तेरा हीं  इन्तज़ार रहबर से ऐसा जानकर   भी  निसार हम होते नहीं, तेरी रहमत की नज़र बिन आशना होते  नहीं | ऐसी हालात  में तो  अब दिलवर फ़क़त ऐसा करो , कदमों में अपने  बसा, एहसान बस इतना करो | निजात की चाहत नहीं, ना है ज़न्नत  की तलाश , तेरी उलफ़त बेगरज की हो रही है  हमको प्यास | अहदे रहमत सोच कर अब तो  मुझे  पबोस कर , इस तरह इस खाके  दर को अब न यूँ मायुस कर | ऐ जाने जाना ! बहुत हो चुका है अब    तलक | मौत से तकलीफ़  दे बेशी पे ज़िन्दगी की झलक | बिन तेरी  चाहत के सनम ये ज़िन्दगी  बेकार  है , जाम उलफ़त की त...

महराज जी को ऐ गज़ल पसंद था :-

ऐ श्याम ! मेरे दिल को     एक रोग  लगा देना | हो दर्द तेरा जिसकी      फिर हो न  दवा  देना  | इक दिन वो मिलेंगे ही    बोलेंगे ही    हँसेंगे ही | इस   ख्वाबे-तमन्ना  से  हरगिज़ न जगा देना | हम   तेरे   तसव्वुर में     वेहोश    हैं  पागल  हैं | दिखला के झलक अपनी फिर होश में न ला देना | मिलने की जो है     तुमसे लौ दिल  में लगी बेहद | मिल कर  कहीं  न उसकी  बुनियाद  मिटा देना  | ऐ-यादे- जुदाई    तू इन आँखो     के परदे  पर | हर अश्रु को   दिलवर  की तसवीर   बना  देना |