महराज जी के उडिसा प्रवास के दरम्यां उनके गाइड लाइन में एक दैनिक प्रार्थना का उर्दू तर्जुमा लिखी गई थी !( जगद्गुरु साधना शिविर २०१०) पेश है
बेरुखी का है सबब कैसा ये दिलवर जाँ फिशां !
बेइन्तिहां सदमें उठाए और उठाते जा रहे ,
रोश शब कर के गुनाह गुबार दिल में ला रहे |
तेरे आशिक कह रहे हैं उलफ़त से बाज़ू को पसार
तेरा दिलवर कर रहा है कब से तेरा हीं इन्तज़ार
रहबर से ऐसा जानकर भी निसार हम होते नहीं,
तेरी रहमत की नज़र बिन आशना होते नहीं |
ऐसी हालात में तो अब दिलवर फ़क़त ऐसा करो ,
कदमों में अपने बसा, एहसान बस इतना करो |
निजात की चाहत नहीं, ना है ज़न्नत की तलाश ,
तेरी उलफ़त बेगरज की हो रही है हमको प्यास |
अहदे रहमत सोच कर अब तो मुझे पबोस कर ,
इस तरह इस खाके दर को अब न यूँ मायुस कर |
ऐ जाने जाना ! बहुत हो चुका है अब तलक |
मौत से तकलीफ़ दे बेशी पे ज़िन्दगी की झलक |
बिन तेरी चाहत के सनम ये ज़िन्दगी बेकार है ,
जाम उलफ़त की तमन्ना अब फ़क़त दरकार है |
प्रेम भिक्षां देहि , प्रेम भिक्षां देहि , प्रेम भिक्षां देहि |
:- रहमत तेरी या सिज़दा मेरा
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राधे राधे ।