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♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻

एक बार उड़ीसा की दो लड़कियां चन्दा करने निकली थी। रास्ते में एक पोस्टर पढा अस्पताल में खून देने के बारे में। वे अस्पताल गयीं और वहां खून दिया। वहां से जो पैसे मिले थे, चंदे के रूपयों में रखे। चौराहे पर आयी कि ऐक्सिडेंट हो गया। एक लड़की को गहरी चोटे आई थी। बेहोश सड़क पर पड़ी थी। इतने में एक कार आयी। एक लम्बा व्यक्ति कार से उतरा। बेहोश पड़ी लड़की को अपनी कार में रखवाया और अस्पताल जा पहुंचा। डाक्टर आश्चर्य चकित था। अरे यह तो अभी यहाँ से खून देकर गयी थी। आगंतुक के हस्ताक्षर पर इलाज शुरू हो गया बाहर से दवा आदि लाने के पश्चात् आॅपरेशन शुरू हुआ। आगंतुक व साथ की लड़की बाहर प्रतीक्षारत थे। आॅपरेशन सकुशल सम्पन्न होने की जानकारी के पश्चात् आगंतुक वहाँ से चला गया था।। कुछ दिन पश्चात् दूसरी लड़की अपनी उस सहेली को देखने उसके घर गयी। वहां रखी कुछ फोटो में से उस व्यक्ति की फोटो भी उसने वहां देखी। वह चीख पड़ी, अरे मोहिनी यह तो उसी व्यक्ति की फोटो है जिसने तेरी जान बचायी थी तेरा आॅपरेशन कराया था। वो फोटो महाराज जी की थी।
कुछ ऐसा ही एक बार और हुआ कि एक लड़के का एक्सीडेंट हुआ तो एक व्यक्ति उसे अपनी कार में बिठाकर अस्पताल तक ले आया और भर्ती करा दिया, जब डाॅक्टर ने साइन बगैरह सब करा लिए, उसके बाद उनके माँ बाप को उसी व्यक्ति ने फोन करके ये बता दिया कि तुम्हारे लड़के का एक्सीडेंट हुआ है और जब मां बाप आये तो डाॅक्टर ने कहा कि इनके पापा इन्हें एडमिट करा के गये हैं। तो वो बोले पिता तो मैं हूं इनका तो वो साइन देखे गये तो रजिस्टर में साइन थे श्री महाराज जी के (कृपालु) फिर तो सब समझ में आ चुका था।
जबलपुर से जुड़ा एक और प्रसंग है, जबलपुर की डिफेंस फैक्ट्री (कंपनी) में श्री चन्द्रशेखर खरे उस दिन खड़े होकर कुछ काम करा रहे थे कि पास ही की बिजली की केबिल (तार) यकायक फट गयी। ऊपर से नीचे तक पूरा शरीर जल गया। उन्होंने महाराज जी बचाओ कहा और अचेत हो गये। उन्हें मिलिट्री के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। उनकी बात उनके ही मुख से-
जैसे ही केबिल फटा (बर्स्ट हुआ) श्री महाराज जी का रूप मेरे सामने था। दूसरे दिन नौकर मुझे खाना खिला रहा था, श्री महाराज जी आये और कहा गधा, चिन्ता की क्या बात है। जब वे चले गये तब मैं समझा कि वे तो (उन्होंने) दर्शन दिये थे। उस वार्ड में सब लोग भयानक बीमार थे और चिल्ला रहे थे किन्तु मुझे यद्यपि साँस लेने में भी पीड़ा हो रही थी किन्तु मैं राधे राधे कह रहा था। एक सप्ताह पश्चात् महाराज जी का पत्र आया। उसमें लिखा था कि तुम मानों या न मानों मैं हर क्षण साथ हूं। बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जिनको साधारण मानव समझ नहीं सकता। जब उसका प्रैक्टिकल रूप सामने आता है, तब समझ में आता है। विशेष परिस्थितियों में ही विशेष चीजें समझ में आती हैं अपने पुनर्जीवन पर विचार करते हुए इसे श्री राधे को समर्पित कर दो।
।। हमारे श्री महाराज जी चरणों में बारम्बार प्रणाम ।।
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