नाना प्रकार के मजहब, धर्मो आदि के विभिन्न उपासक, साधक, जो उन्हें अपना गुरू, रहवर मानकर साधना करते हैं, उन्हें अपने अनुभवों के आधार पर कोई नानक, कोई ईसा, कोई अल्लाह तो कोई राम, अथवा कृष्ण का अवतार बताता है। बजरंग बली के भक्त उन्हें हनुमान रूप में, शैव लोग उन्हें शिव रूप में, शक्ति की उपासना करने वालों को वे दुर्गा स्वरूप में अनुभूत होते हैं। माधुर्य भक्ति परायण साधक उन्हें श्री राधे रानी का अवतार बताते है। तो कोई उन्हें नदिया में 500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए राधावतार श्री मन् गौरांग महाप्रभु का ही पुनः अवतार बताता है। इस प्रकार विभिन्न धर्म, मजहब, आदि के विभिन्न साधकों द्वारा भिन्न भिन्न स्वरूपों में अनुभूत होने वाले अद्वितीय श्री कृपालु महाप्रभु ही मेरे प्राण प्रिय गुरुदेव हों।
पापीजन (वे कितने भी बडे पापी क्यों न हों) जो उनकी शरण में चले जाते हैं, उनके लिए वे श्री कृपालु महाप्रभु (आवागमन रूपी संसार से) दिव्य धाम तक पहुंचाने वाली सीढी हैं। इतना ही नहीं, सच्चे हृदय से बिलख बिलख कर प्रायश्चित के आँसू बहाते हुये आर्तनाद कर जो भी पापात्मा एक बार भी उनके चरणों में त्राहि माम पाहि माम पुकारते हुये गिर (झुक) जाता है अर्थात उनकी शरण में आ जाता है, तो श्री कृपालु महाप्रभु उसकी कातर पुकार सहन नहीं कर पाते, विह्वल होकर न केवल उसे गले ही लगा लेते है, बल्कि उसके हाथ बिककर अपने आपको ही उसे समर्पित कर देते हैं।
पतितों को प्यार करने वाले, उनके सच्चे उद्धारक ऐसे सच्चे दीन बन्धु अद्वितीय श्री कृपालु महाप्रभु के इन दिव्य गुणों को जानकर भी जो जीव उनकी शरण ग्रहण नहीं करते, वे मेरी दृष्टि में ऐसे परम दुर्भागी (हतभागी ) हैं जिनके प्रति विधाता बाम (उल्टा) हो गया है। परमहंस जो आत्माराम जैसे दुर्लभ पद पर आसीन होने पर भी श्री कृपालु महाप्रभु की कृपा की कातर दृष्टि से बाट जोहते हैं कि वे कृपालु महाप्रभु हम को भी युगल प्रेम रस मदिरा की कुछ बूंदें पिला दें किन्तु करोडों करोड़ परमहंसो में से किसी एक की यह कामना अत्यन्त कठिनता पूर्वक श्री कृपालु महाप्रभु की कृपा से पूर्ण होती है। परमहंसो को भी दुर्लभ ऐसे श्री कृपालु महाप्रभु , श्री राधाकृष्ण भक्ति रस की चाह रखने वालों के लिये न केवल अत्यन्त सुलभ हैं, वरन श्यामा श्याम के निष्काम प्रेम के उन प्यासों के लिये वे कामधेनु के समान हैं अर्थात उन्हें स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भावावेश आदि का जी भर स्निग्ध दुग्ध रस पान कराने तथा अन्यान्य विलक्षण लीला व सेवा रस प्रदान करने में सक्षम हैं l ऐसे अद्वितीय श्री कृपालु महाप्रभु ही मेरे (प्राणप्रिय) गुरूदेव हैं।
- एक प्रचारक 1998
क्रमश:
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।