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♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻

बात 1966 की है। जयपुर की रहने वाली द्रौपदी अपना संस्मरण सुनाते हुए कहती हैं, एक बार श्री महाराज जी ने मुझे स्वप्न में दर्शन दिये और कहा द्रौपदी तेरी किताब कहाँ है ? तब द्रौपदी बोली, वह तो हनुमान सेठ ले गये हैं।

श्री महाराज जी ने कहा, उनसे तू पुस्तक माँग कर ले आ। मैं तुझे पढा  दूँगा। द्रौपदी अपनी पुस्तक ले आयी। दूसरी रात्रि में श्री महाराज जी ने राधा जी की बधाई का पद पढाया तथा उसका भावार्थ पढाया।। मँजरी जी से पढ़वाया, उन्होंने पढ कर बताया। फिर और पद भी पढाये। द्रौपदी जिस पद पर उँगली रखती वही पढती जाती। मँजरी जी अँगूठा छाप द्रौपदी का चमत्कार देख रही थी।

🍀गोपाली से एक दिन रुक्मिणी ने श्री महाराज जी के चरण स्पर्श करने को कहा। तब गोपाली ने कहा, मैं पति के अतिरिक्त और किसी के चरण नहीं छूती। इतने में ही महाराज जी सामने आ गये। गोपाली खुद कहती हैं, एक दिन मै पता नहीं कैसे उनके चरणों में गिर गयी और वहीं से मेरा नियम बदल गया था।

🍀श्री मती रमेश दीवान का कहना है, एक दिन जयपुर में मेरी छाती में असह्य दर्द हुआ। अस्पताल में जब मुझे स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था, मुझे स्पष्ट लग रहा था कि श्री महाराज जी मेरे साथ चल रहे हैं। मैनें अपने घर वालों से कहा अगर मर जाऊँ तो साधना भवन को दस हजार रूपया दे देना। बाद में मैं अच्छी हो गयी थी। तब जब गुरूदेव जयपुर आये। एक दिन जब मैं उनके श्री चरणों को स्पर्श करने गयी तो बोले, साधना भवन को दस हजार देने को कहा था अभी दिया नहीं है। मैं आश्चर्य चकित थी।

🍀वाकया मेरठ जनपद का है, मई, 1968 में महाराज जी का मेरठ प्रवचन था। श्री नीलामम्बर दत्त जोशी निवासी हल्द्वानी श्री महाराज जी के जब संपर्क में आये। उन्होंने प्रवचन सुना, अध्यात्म से प्रभावित हुए। इच्छा हुई श्री महाराज जी को अपने घर भोजन कराने की। सोचा, जब महाराज जी स्वयं भोजन के लिए कहेंगे तभी कराउँगा। ऐसा विचार मन में बना लिया। दो तीन दिन पश्चात् ही श्री महाराज जी नीलाम्बर दत्त से बोले हमें भोजन कब कराओगे।

🍀एक बार तीसरी मंजिल पर कीर्तन हो रहा था। श्री महाराज जी भाव में नृत्य कर रहे थे। वे पता नहीं कैसे नीचे गिर गये, सब लोग नीचे की तरफ भागे। देखा श्री महाराज जी जीने से ऊपर आ रहे हैं। कहने लगे, कहां जा रहे हो ! चल कर कीर्तन करो।

🍀एक दिन रामकुमारी जी सो रही थी कि ऊपर से श्री महाराज जी का चित्र गिरा। देखा दिये की लौ से उसकी डोरी जल गयी थी। उस समय उसकी बहन ने देखा कि श्री महाराज जी कमरे से बाहर जा रहे हैं। वे सोच रही थी कि अगर ठीक समय से उनकी आँख न खुली होती तो न जाने क्या अनहोनी हो जाती। कुछ दिन पश्चात् कानपुर की शान्ति मेहरा मिली उन्होने बताया कि उस दिन प्रातः श्री महाराज जी उठे तो उनका सारा शरीर लाल था। पूछने पर बता रहे थे कि आज आग से लड़ना पड़ा। अब राम कुमारी सोच रही थी कि किस प्रकार श्री महाराज जी रक्षा करते हैं।

🌸॥ ऐसे हमारे करूणावतार श्री कृपालु महाप्रभु की जय॥🌸
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