भजौ नित राधा नाम उदार।
जाहि श्याम नित रटत रहत हिय भरि उल्लास अपार।।
चौदह भुवन-लोकत्रय-स्वामी अखिल जगत-आधार।
सोइ नित जाके हाथ बिकानो, करत रहत मनुहार।।
जाके दरस हेतु मुनि तरसत जानि सार-कौ-सार।
सुमिरौ सोइ राधा-पद-पंकज निसि-दिन बारंबार।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
‘श्रीराधा’ वास्तव में कोई एक मानवी स्त्री विशेष नहीं हैं। वे भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात् अभिन्न शक्ति हैं। उनकी शक्ति से ही भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला सम्पन्न होती है। श्रीराधा श्रीकृष्णप्रेम की जीती-जागती पुतली हैं। भगवान का आनन्दस्वरूप ही श्रीराधा हैं। जिन श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य और माधुर्य के लिए समस्त जगत लालायित और मोहित है, वे भुवनमोहन-मनमोहन श्रीकृष्ण भी श्रीराधा द्वारा नित्य मोहित रहते हैं। रसरूप श्रीकृष्ण स्वयं श्रीराधा की महिमा बताते हुए कहते हैं–
कहत स्याम निज मुख सदा, हौं चिन्मय परतत्त्व।
पूर्न ग्यानमय, पै न लखि पायौ प्रिया-महत्त्व।।
रहे सदा बरबस लग्यौ राधा मैं मन मोर।
रहौं प्रेम-विह्वल सदा लखि राधा चितचोर।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
अर्थात्–‘मैं चिन्मय परतत्त्व हूँ, मैं पूर्ण ज्ञानस्वरूप हूँ; परन्तु मैं प्रियतमा श्रीराधा के महत्त्व का पता नहीं पा सका। मेरा मन निरन्तर राधा में लगा रहता है। राधा ने मेरे चित्त को चुरा लिया है अत: मैं सदा राधा के प्रेम में विह्वल रहता हूँ।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि श्रीराधा मुझे इतनी अधिक प्रिय है कि–
राधा से भी लगता मुझको अधिक मधुर प्रिय राधा-नाम।
‘राधा’ शब्द कान पड़ते ही खिल उठती हिय-कली तमाम।।
नारायण, शिव, ब्रह्मा, लक्ष्मी, दुर्गा, वाणी मेरे रूप।
प्राण समान सभी प्रिय मेरे, सबका मुझमें भाव अनूप।।
पर राधा प्राणाधिक मेरी अतिशय, प्रिय प्रियजन सिरमौर।
राधा-सा कोई न कहीं है मेरा प्राणाधिक प्रिय और।।
अन्य सभी ये देव, देवियां बसते हैं नित मेरे पास।
प्रिया राधिका का है मेरे वक्ष:स्थल पर नित्य निवास।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधा की महिमा बताते हुए शास्त्र कहते हैं–‘रा’ शब्द के उच्चारणमात्र से ही माधव हृष्ट-पुष्ट हो जाते हैं और ‘धा’ शब्द का उच्चारण होने पर तो वे भक्त के पीछे दौड़ पड़ते हैं।
त्वं मे प्राणाधिका राधे प्रेयसी च वरानने।
यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवम्।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड)
अर्थात्–भगवान श्रीकृष्ण श्रीराधा से कहते हैं–’तुम मेरे लिए प्राणों से भी बढ़कर प्रियतमा हो। जैसी तुम हो, वैसा मैं हूँ; हम दोनों में कोई भेद नहीं है।’
जैसे दूध में धवलता, अग्नि में दाहिकाशक्ति और पृथ्वी में गंध होती है, उसी प्रकार तुममें मैं नित्य व्याप्त हूँ। जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता तथा जैसे सुनार सोने के बिना आभूषण तैयार नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हो सकता। तुम सृष्टि की आधारभूता हो और मैं बीजरूप हूँ। जब मैं तुमसे अलग रहता हूँ, तब लोग मुझे ‘कृष्ण’ (काला-कलूटा) कहते हैं और जब तुम साथ हो जाती हो तब वे ही लोग मुझे ‘श्रीकृष्ण’ (शोभाशाली कृष्ण) कहते हैं। राधा के बिना मैं क्रियाहीन व शक्तिहीन रहता हूँ; पर राधा का संग मिलते ही वह मुझे परम चंचल व लीलापरायण और परम शक्तिशाली बना देती है।
राधा बिना अशोभन नित मैं रहता केवल कोरा कृष्ण।
राधा-संग सुशोभित होकर बन जाता हूँ मैं ‘श्री’कृष्ण।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधा तुम्हीं श्री हो, तुम्हीं सम्पत्ति हो और तुम्हीं आधारस्वरूपिणी हो। मेरा अंग और अंश ही तुम्हारा स्वरूप है। तुम मूलप्रकृति ईश्वरी हो। शक्ति, बुद्धि और ज्ञान में तुम मेरे ही तुल्य हो।
‘श्रीराधा मेरी परम आत्मा हैं, मेरा जीवन है। श्रीराधा से ही प्रेम प्राप्त करके मैं उस प्रेम को अपने प्रेमीभक्तों में बांटता हूँ।’
श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं और श्रीराधा की आत्मा श्रीकृष्ण हैं। आत्मा में ही सदा रमण करने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण ‘आत्माराम’ कहलाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार श्रीराधा से कहा था–’मैं प्रियतम हूँ और तू मेरी प्रियतमा है’–ये कहना केवल किंवदन्तीमात्र है; ‘तू मेरे प्राण है और मैं तेरे प्राण हूँ’–यह कहना भी व्यर्थ है। ‘तू मेरी है और मैं तेरा हूँ’–यह भी कोई महत्वपूर्ण नहीं है। हम दोनों में कभी ‘तू’ और ‘मैं’ का किसी प्रकार भी कोई भेद उचित नहीं है। अर्थात् तू मैं हूँ और मैं तू है। हम दोनों में कोई भेद है ही नहीं।
श्रीराधाजी स्वयं यशोदाजी से कहती हैं–‘रा’ शब्द का अर्थ है–जिनके एक-एक लोमकूप में सम्पूर्ण विश्व भरे हैं, वे महाविष्णु तथा उनके अन्दर निवास करने वाले विश्व के प्राणी और सम्पूर्ण विश्व; एवं ‘धा’ शब्द माता का वाचक है। अत: मैं ही महाविष्णु, विश्व के सम्पूर्ण प्राणी तथा समस्त विश्व की माता ईश्वरी मूलप्रकृति हूँ।
भगवान शिव ने श्रीराधा का स्वरूप व महत्व बताते हुए नारदजी से कहा–’जैसे ब्रह्मस्वरूप श्रीकृष्ण प्रकृति से परे–अतीत हैं, वैसे ही श्रीराधा भी ब्रह्मस्वरूपा, निर्लिप्ता और प्रकृति से अतीत हैं। समय पर उनका आविर्भाव और तिरोभाव होता है। हरि की तरह वे भी अकृत्रिमा, नित्या और सत्यरूपा हैं।’
देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता।
सर्वलक्ष्मीस्वरूपा सा कृष्णाह्लादस्वरूपिणी।।
अर्थात्–श्रीराधा श्रीकृष्ण की आराधना में तन्मय होने के कारण ‘राधिका’ कहलाती हैं। श्रीकृष्णमयी होने से ही वे ‘परा देवता’ हैं। श्रीकृष्ण के आह्लाद का मूर्तिमान स्वरूप होने के कारण ‘ह्लादिनी शक्ति’ हैं। दुर्गा आदि तीनों देवियां उनकी कला का करोड़वां अंश हैं। श्रीराधा साक्षात् महालक्ष्मीरूप हैं और भगवान श्रीकृष्ण साक्षात् नारायण हैं। श्रीराधा दुर्गा हैं और श्रीकृष्ण रुद्र। श्रीकृष्ण इन्द्र हैं तो ये इन्द्राणी हैं। श्रीराधा सावित्री हैं तो श्रीकृष्ण ब्रह्रमा हैं। श्रीकृष्ण यमराज हैं ये उनकी पत्नी धूमोर्णा हैं।
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राधे राधे ।