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【सिद्धान्त-रिवाईजेशन # 13】'श्रीराधा प्राकट्योत्सव विशेष - 6/7'(श्रीराधा रानी की 'छठी' की शुभकामनाएं)

【सिद्धान्त-रिवाईजेशन # 13】
'श्रीराधा प्राकट्योत्सव विशेष - 6/7'
(श्रीराधा रानी की 'छठी' की शुभकामनाएं)

♻ श्रीराधा रानी आँसुओं से रीझ जाती हैं, किन्तु उनके लिए आँसू ना आने का क्या कारण है : इसका सबसे बड़ा कारण है 'नामापराध'. अर्थात् भगवान् और उनके भक्तों (गुरु) के विपरीत सोचना, करना. नामापराध जीव की साधना में व्यवधान उत्पन्न कर देता है जिसके फलस्वरूप अनेक प्रयत्न करने पर भी जीव मन लगा नहीं पाता.
♻ नामापराध कितने प्रकार के गिनाए गए हैं : आचार्यों ने प्रमुख रूप से 10 नामापराध बताए हैं. ये हैं -
• साधु/संतनिन्दा
• शिव एवं विष्णु में भेदबुद्धि रखना
• गुरु का अपमान करना
• वेदादि शास्त्रों का अपमान करना
• हरिनाम में अर्थवाद की कल्पना
• भगवन्नाम के बल पर पाप करना
• कर्म धर्म आदि से भगवन्नाम की तुलना करना
• नाम-ग्रहण में असावधानी
• नाम माहात्मय सुनकर भी नाम में रुचि न होना
• हरि के विमुख (नास्तिक) को नामोपदेश करना

♻ हम अनेक प्रकार से साधना कर-करके थक जाते हैं, लेकिन लाभ क्यों नहीं होता है : क्योंकि हम अक्सर यह भूल करते हैं कि मन को नहीं लगाते. प्रथम तो यही निश्चय करना है कि 'मन को ही साधना करना है, शरीर और अन्य इन्द्रियाँ केवल सहायक ही हो सकती हैं'. अतः हमको मन को ही लगाने का सतत् अभ्यास करना चाहिए, एक दिन अवश्य ही धीरे-धीरे मन लगने लगेगा.
♻ हमारा कौन सा ऐसा भ्रम है, जो अवश्य ही टूटेगा : हमारा यह भ्रम कि यह संसार मेरा है, ये रिश्तेदार, धन-दौलत मेरे हैं - यह भ्रम अवश्य ही टूटेगा. मृत्यु होगी, यह भी अटूट सत्य है. सब छूटेगा, यह भी निश्चित है. केवल वही क्षण, वही कर्म साथ रहेगा जिस क्षण को हमने श्रीराधा रानी के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम और उनके भक्तों के स्मरण में लगाया है. वस्तुतवस्तु श्रीराधा ही हमारी सर्वस्व हैं - यही सर्वोच्च सत्य है.
♻ भक्तिपथ पर हमारा मन डगमगाता है, शंका से भर जाता है, भय लगता है, ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए : हमको मन को विश्वास दिलाये रखना चाहिए कि भक्तिमार्ग में अनिश्चितता नहीं है. हमको निर्भय होकर श्रीराधाकृष्ण से प्यार करना है. जिन श्रीकृष्ण ने उस पूतना तक को अपनी माँ की गति दे दी जो कुटिलता से स्तनों में जहर लगाकर उन्हें मारने आयी थी. अनंत असुरों का संहार कर उन्हें अपना लोक दे दिया. जो ग्वाल-गोपों पर अतिशय उदार होकर कंधे चढ़ाते हैं, गोपियों की छाछ पर नाचते हैं, यशोदा जी की ऊँगली पकड़कर चलना सीखते हैं और जो राधिका दीनता के एक आँसू पर श्यामसुन्दर को छोड़कर दौड़ी चली आतीं हैं, अपनी सखी बनाकर नित्य नवायमान श्यामसुन्दर और निज परिकरों की सेवा दे देती हैं - ऐसे परम उदार युगलचंद्र श्री राधाकृष्ण से प्रेम करने के पथ पर चलने में हमको क्या भय, क्या शंका होनी चाहिए..
(साधना में लाभ हेतु)
★ सुश्री गोपिकेश्वरी देवी जी
★ श्री कृपालु भक्तिधारा प्रचार समिति

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