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क्या प्रेम को छुपाना चाहिये ?

प्रश्नोत्तरी 
भाग ३

प्रश्न ४९ :- महाराज जी ! क्या प्रेम को छुपाना चाहिये ?
श्री महाराज जी द्वारा उत्तर:-
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रेम को छुपाना चाहिये, छुपाना चाहिये छुपाना चाहिये । ये सिद्धान्त है । और उस पर जो कन्ट्रोल होता है , प्रेम के ऊपर , वो सबसे अधिक धूमायित सात्त्विक भाव पर । उससे कम ज्वलित सात्विक भाव पर , उससे कम दीप्त सात्त्विक भाव पर , किन्तु उद्दीप्त सात्त्विक भाव और सूद्दीप्त सात्त्विक भाव पर कन्ट्रोल नहीं हो सकता , उसमें अाठों सात्त्विक भावों का उद्रेक होता है । तो धूमायित जो है इसमें थोड़ा - सा प्रेम प्रकट होता है अन्तः करण में , शरीर में , रोमांच होता है और खम्भे के समान शरीर स्थिर हो जाता है , ध्यान करते हुये शरीर काँपता है । तो ये दो - तीन सात्त्विक भाव जो प्रारम्भ के हैं इन पर कन्ट्रोल करना चाहिये , और हो सकता है काफी हद तक ।  फिर इसके आगे जो सात्त्विक भाव और हैं उन पर भी कन्ट्रोल किसी मात्रा तक होता है । लेकिन जब अधिक बढ़ जाता है , जैसे - कुकर की गैस , फिर बाहर निकल पड़ती है । ऐसे ही बाहर हो जाता है तो उसकी परवाह नहीं करना है । जानबूझ कर के तो प्रकट नहीं करना है प्रेम को । छुपाना है । लेकिन अगर इतना अधिक बढ़ जाय कि प्रकट हो जाय तो हो जाने दो ।
पुस्तक :- प्रश्नोत्तरी ( भाग ३ )
पृष्ठ संख्या :- १२५ एवं १२६

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

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