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♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻

♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻
           
श्री मती दयावती (रायगढ़) के घर उस दिन कुछ अधिक ही झगड़ा हो गया था। रात्रि में उठी तो एक कुएँ के पास जाकर के आत्महत्या करने के उद्देश्य से अपनी कमर में चाकी का पाट बाँधा और कुएं पर पँहुच गयी। वे कूदना ही चाहती थी कि श्री महाराज जी ने उनका हाथ पकड़ लिया। और कहा मानव देह का मोल नहीं समझती क्या ?  दो तीन घंटे तरह तरह से समझाकर उन्हें शान्त कर दिया और वापस भिलाई चले गए। श्री महाराज जी का प्रवचन उन दिनों भिलाई में चल रहा था। एक सत्संगी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने उस स्त्री से कहा ऐसा कैसे हो सकता है उस समय तो महाराज जी प्रवचन दे रहे थे। किसी और सत्संगी को जब ये बात पता चली तो उन्होने पूछताछ के लिए एक आदमी रायगढ़ भेजा। वहाँ जाकर पता चला श्री महाराज जी वहाँ आये थे और दो तीन घंटे पश्चात् ही वापस चले गये।

एक बार लखनऊ के श्री जगदीश प्रसाद ने किन्ही कारणों से साप्ताहिक सत्संग में आना बन्द कर दिया था। श्री महाराज जी ने उनको बुलाया और कहा, जगदीश तुम हमारे पास बहुत दिनों से आते हो किन्तु तुमने कुछ अर्जित नहीं किया। कभी जब आयेंगे और हमें मालूम पड़ेगा कि जगदीश नहीं रहा। तो हमें कितना दुख होगा कि बिना कुछ करे ही चला गया। जगदीश जी रो पड़े। मनगढ़ सत्संग में आये और वहाँ एक माह की अभूतपूर्व साधना की या करायी। फिर श्री महाराज जी की आज्ञा से वृन्दावन रहने लगे।
एक बार महावनी जी की लड़की उर्मिला और ऊषा ने एक दिन सोचा, महाराज जी अक्सर कहते हैं, व्याकुलता पूर्वक पुकारोगी मैं अवश्य आऊँगा। उन्होंने जाँचने की ठानी। कीर्तन के दिन जब सत्संगी इकट्ठा हुए उन्होंने अपना मन्तव्य उन पर प्रकट किया और कीर्तन व्याकुलता पूर्वक करने लगी। दर्शन देना नन्द दुलारे। श्री महाराज जी उस समय इलाहाबाद में थे। श्री महाराज जी ने राम दत्त दुबे को साथ में लिया और प्रतापगढ़ आकर उन लोगों के बीच खडे हो गये। महाराज जी को देखते ही सब लोग उनके चरणों में लिपट गये।
उन दिनों ब्रज बल्लरी जी को भी महाराज जी के दर्शन किये बहुत दिन हो गये थे। बहुत परेशान और व्याकुल थीं। पता उन्हें मालूम नहीं था। एक दिन किसी मैस में वे सुश्री गिरिजा देवी के साथ खाना खाने जा रहीं थी और इसी बात का जिक्र कर रहीं थी कि सामने से श्री महाराज जी की कार आयी। दोनों रूके, चरण छुए, दर्शन किए, उनके साथ कार में बैठी कि ध्यान आया, यह कार तो उनकी नहीं है। कार मे से तुरंत उतर कर दरवाज़ा बंद कर दिया। कार चल दी । महाराज जी की कार का न० 5382 था। श्री महाराज जी और श्री दिगंबर प्रसाद ड्राइवर जाता हुआ दिख रहा था वे दोनों सड़क पर खड़ी रो रही थी। रिक्शे वाला आश्चर्यचकित देख रहा था और श्री महाराज जी उनकी दर्शन की इच्छा को पूरा करके जा चुके थे।
।।हमारे प्यारे प्यारे गुरुवर की जय।।

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