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श्री महाराज जी

*हम हार गये आप लोगों से...!*
हमारा जो परपज है कि *तुम लोग भगवान् की ओर चलो, गन्दी भावनायें अन्तःकरण में न लाओ ये हम आशा करते हैं। हमने अपना सारा जीवन तुम लोगों के लिये अर्पित किया है इसलिए कि तुम लोग एक आदर्श शिष्य बनो,* जो भी देखे बाहर वाला या तुम्हारे घर वाला कोई देखे माँ, बाप, कोई अरे कितना बदल गया ये, कितनी नम्रता है इसमें, हाथ जोड कर बात करता है, हर एक से मीठा बोलता है, क्रोध नहीं करता है। अगर क्रोध आ भी जाय तो भीतर उसको समाप्त कर दो। बाहर से वाक्य न बोलो तो वो बात आगे नहीं बढ़ेगी। फिर एक बात तो ये मुझे कहनी है, कि *आप लोग अपना सुधार करें और हमको भी सुख दें।*माया से छुटकारा मिल जाय ये सब उद्देश्य आप लोगों का घर से रहा होगा, और न रहा हो तो ये होना चाहिए।
*मनुष्य देह पाये, भारत में जन्म हो, और गुरु भी मिल जाय, और वो गुरु समझ में आ जाय, सब बात बन जाय और फिर भी हम अपना कल्याण न करें, तो इससे गुरु को दुःख होता है, ये सेवा नहीं है । सेवा का मतलब स्वामी को सुख देना । किसी भी बाप को उसी सन्तान से सुख मिलेगा, जो सन्तान अच्छे आचरण वाली हो, जिसका स्वभाव सरल हो, दीन हो, नम्र हो, मधुर हो, बाप को तभी सुख मिलेगा* और संसारी बाप को भले ही न मिले लेकिन गुरु को तभी सुख मिल सकता है जब शिष्य भगवान की ओर चले, अच्छे गुण उसमें पैदा हों, लेकिन *तुम लोगों के व्यवहार से हमको सुख नहीं मिलता, दुःख मिलता है, ये बात तुम लोग नहीं माइण्ड करते । नहीं सोचते अगर ये बात सोचो तो फिर हमको सुख देने का कार्य करो।* और अगर आप लोग कहेंगे कि हम तो ऐसे ही करते रहेंगे, तो फिर हम ये सेवा वेवा बन्द कर देंगे और आप लोगों से एक दिन कहेंगे कि आप लोग अपने अपने घर जाइये। *हम हार गये आप लोगों से ऐसा समझ लीजिए। प्रयत्न करने के बाद भी यदि सफलता नहीं मिलती तो फिर वो हार मान लेता है, कोई भी टीचर हो क्या करेगा। तुम्हारे अन्दर बैठकर हम काम करें, ये तो होगा नहीं, साधना तो तुमको ही करनी होगी,* कोई भगवान् का अवतार, कोई महापुरुष ऐसा नहीं हुआ, कि जीवों के अन्दर बैठ के उसका कल्याण कर दें, सब जीवों को करना है, उनको राय देंगे मार्ग बतायेंगे  तो भविष्य में आप लोग जितना हो सके मौन रहो कोई कुछ पूछे तो थोड़े में जवाब दो, नम्रता पूर्वक, वो डाँट दे तो चुप हो जाओ, और नोट करो मुझे क्रोध नहीं आया। अब मैं अच्छे दर्जे जा रही हूँ, ये रियलाइज़ करो। क्रोध का जवाब क्रोध पर दो, क्रोध के ऊपर क्रोध करो, किसी के ऊपर क्रोध नहीं। अपने में कमी देखो कि हम क्यों दूसरे में कमी देखते हैं, क्यों क्रोध करते हैं, अपना नुकसान करते हैं। *इससे कितना नुकसान हो रहा है तुम लोगों का सोचो, ऐसे ही नुकसान करते जाओगे एक दिन मर जाओगे और कहोगे कि ओ जगद्गुरु कृपालु जी महाराज हमारे गुरु थे और राधारानी का दरबार भी हमको मिला था, और हमने लापरवाही से अपना भविष्य नहीं बनाया, अपना बिगाड़ा कर लिया* मन में केवल हरि गुरु रहें और कोई न राग का, न द्वेष का सामान न रखो। ये अभ्यास आप लोग करें और *आपका कल्याण हो, हमको भी खुशी मिले।*
*जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज..!*

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