कानपुर के एक सत्संगी है पचास के लगभग की अवस्था है पिछले 34 वर्षों से सत्संग में हैं, माता, पिता भाई, बहन सभी श्री महाराज जी के शरणागत हैं l इन्होंने विवाह नहीं किया है इन्होंने श्री महाराज जी को बहुत रस बरसाते देखा है l कहते हैं अब तो भीड़ हो गई, अब वह रस कहाँ जो श्री महाराज जी ने पहले बरसाया l लोग सोच सोच कर अचरज करते हैं कि भला वह रस कैसा होगा ? जबकि जो रस श्री महाराज जी आज लुटा रहे हैं वो विलक्षण है l इन्होने भी बहुत अनुभव की बातें बताई पर अभी केवल एक प्रसंग को प्रकाशित किया जा रहा है इन्होंने बताया-
1966, 70 की बात है l श्री महाराज जी मेरे यहाँ ठहरा करते थे उन दिनों श्री महाराज जी हमारे शहर में नहीं थे l परिवार को तो श्री महाराज जी के संकीर्तन का चस्का लगा हुआ था l हम लोगों ने जब सुना कि ''माँ आनंदमयी'' शहर में आई हुई हैं और जे. के. मंदिर प्रांगण मे ठहरी हुई हैं l प्रतिदिन संकीर्तन करवा रही हैं तो हम और हमारा परिवार उनके संकीर्तन में भाग लेने गये l जब हम लोग वहाँ पहुँचे तो संकीर्तन चल रहा था, एक व्यक्ति ढोलक बजा रहा था, माँ आनंदमयी अपने कक्ष में थी l ढोलक बजाने वाला व्यक्ति कुछ थक सा गया और उसने थोड़े समय के लिए ढोलक रख दिया l मेरी छोटी बहन जोकि 14 वर्ष की थी ने ढोलक उठा ली और बजाने लगी l ऐसी अच्छी ढोलक बजाई कि संकीर्तन का रस ही कुछ और हो गया l थोड़ी देर बाद माँ आनंदमयी कक्ष से बाहर आयी और बहन को बड़े प्यार से निहारने लगीं l हम लोग माँ के चरण छूने को उद्यत हुए तो लोगों ने रोक दिया कि माँ पैर नहीं छुआती हैं पर तभी हम लोगों के पास माँ आयीं और अपने पैर आगे कर दिए l हम लोग प्रेम से उनके पैर पड़े l माँ हम सब को अपने कक्ष में लिवा ले आयीं और छोटी बहन से पूछने लगीं कि ''बेटी तुमने इतना अच्छा ढोल बजाना कहाँ से सीखा ?'' हम लोगों ने बताया कि हम लोग कृपालु जी के शिष्य हैं और कृपालु जी हमारे यहाँ प्रायः ठहरते हैं''l श्री महाराज जी का नाम सुनते ही उनकी आँखों से अविरल अश्रुपात होने लगे l उन्होनें बहन को सीने से लगा लिया और कहा कि ''कृपालु जी क्या हैं, मैं जानती हूँ आप लोग उनका पीछा कभी न छोड़ना'' l जिसका नाम सुन माँ आनंदमयी प्रेम विभोर होने लगीं वह भला कौन हो सकता है ये तो हम साधारण मनुष्य क्या जाने।।
#हमारेश्रीकृपालुजीमहाराज
#जयश्रीसीताराम
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राधे राधे ।