गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज भगवान श्रीराम जी जैसा स्वामी पाकर और उनके गुण समूहों को सुनकर, स्मरण कर आनन्दित रहते थे । जब अपने अवगुणों के तरफ ध्यान जाता था तो मन थोड़ा अधीर हो जाता था । लेकिन दूसरे ही पल जब रघुनाथ जी के गुणों के बारे में सोचते थे तो शरीर रोमांचित हो जाता था । क्योंकि अपनी सारी समस्याओं का समाधान रघुनाथ जी के गुणों में पा जाते थे । जब गोस्वामी जी ने राम जी के गुणों और उनके स्वभाव को भलीभाँति जान लिया तो फिर निश्चिंत होकर रहने लगे । सुख से सोने लगे । क्योंकि उन्हें राम जी पर पूरा विश्वास और भरोसा हो गया था । और रघुनाथ जी किसी के भी विश्वास और भरोसे को कभी नहीं तोड़ते । जिसको भगवान श्रीराम का भरोसा हो, विश्वास हो, वह तो सुख से सोयेगा ही । उसे चिंता करने की जरूरत नहीं होती । उसे बस किसी भी सदकाम के लिए जितना हो सके सदपरिश्रम करके निश्चिंत हो जाना चाहिए । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज स्वयं कहते थे कि मुझ तुलसी दास को आरतपाल, दीनबन्धु सर्वसमर्थ श्रीराम जी का भरोसा है । और इसलिए मैं सुख पूर्वक रहता हूँ । सुख से सोता हूँ । तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीराम अनू...
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