सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कैसों करें कृपा मेरी लाडो श्यामा


राधा दासी बनने के लिये बलवती लालसा हृदय में जगनी चाहिये । गाढ़ी लालसा ही रागभजन की प्राण वस्तु है । तीव्र उत्कंठा के बिना राग भजन का माधुर्य समझ में नही आता है । जैसे विषयी कामी व्यक्ति विषय प्राप्ति के लिये छटपटाता है वैसे रागमार्गी भक्तों को इष्ट प्राप्ति के लिये छटपटाना चाहिये । 
निरन्तर चित् में यह बात रहें मुझे अभीष्ट की सेवा कब मिलेगी ? 
इसलिये अरे मन ! सभी महत चेष्टाएँ दूर कर प्रणय के साथ चल श्री वृन्दावन में प्रेम प्रदान/ दासीत्व देने वाली एक राधा नाम की दिव्य निधि है । तुम शुद्ध प्रेमी भक्त हो , तुम्हारा उद्देश्य राधा दास्य प्राप्ति है । श्री राधारानी उसी प्रेम की अधिष्ठात्री देवी है - स्वयं प्रेमलक्ष्मी है । जिनके दर्शन मात्र से ही बिना साधना के व्रजप्रेम प्राप्त हो जाएगा । वृन्दावन वास करती हुये गुरू प्रदत्त स्वरूप का चिंतन करते हुए बरसाना , रास्स्थली आदि लीला स्थलियों में रोते हुए झाड़ू सेवा करते हुए और मन में नाम जाप करते हुए उनकी चरण रज के कुछ कण छिटक कर तुम पर गिर जायेंगे , तुम्हारा मन स्थिर हो जायेगा और अनायास ही तुम को राधदास्य अवश्य मिल जाएगा । .. जयजय श्यामाश्याम ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...