सदना नाम का एक कसाई था, मांस बेचता था, पर उसकी भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी! एक दिन सदना एक नदी के किनारे से जा रहा था, तभी रास्ते में उसे एक पत्थर पड़ा मिल गया! उसे पत्थर अच्छा लगा, उसने सोचा की बड़ा ही अच्छा पत्थर है तो क्यों ना मैँ इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करूं.
सदना उस पत्थर को उठाकर ले आया और मांस तौलने में प्रयोग करने लगा. जब एक किलो मांस तौलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तौलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार सदना चाहे जितना भी मांस तौलता , हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो वह एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता.
एक दिन की बात है , उसकी दुकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले ! ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे, उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत सदना के पास आये और गुस्से में बोले – ये तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम जानते नहीं की जिसे पत्थर समझकर तुम मांस तौलने में प्रयोग कर रहे हो वे शालिग्राम भगवान हैं, इसे मुझे दो! जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला – हे ब्राह्मण देव, मुझे पता नहीं था कि ये भगवान शालिग्राम हैं, मुझे क्षमा कर दीजिये ! और सदना ने शालिग्राम भगवान को ब्राह्मण को दे दिया!
ब्राह्मण शालिग्राम भगवान शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की. जब रात हुई और वह ब्राह्मण सोया तो सपने में भगवान आये और बोले – ब्राह्मण – मुझे तुम जहाँ से लाए हो वहीँ छोड आओं, मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा.
इस पर ब्राह्मण बोला – भगवान ! वो कसाई तो आपको तुला में रखता था और दूसरी ओर मांस तौलता था उस अपवित्र जगह में आप थे. भगवान बोले – ब्राहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तौलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से झूला झूला रहा हो, जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था. हर पल मेरा भजन करता था इसलिए जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था, वो आनंद यहाँ नहीं! इसलिए आप मुझे वही छोड आयें.
तब ब्राह्मण तुरंत उस सदना कसाई के पास गया ओर बोला – सदना, मुझे माफ कर दो. वास्तव में तो तुम ही सच्ची भगवान भक्ति करते हो. ये अपने भगवान को संभालिए.....
प्रेम से बोलिए:- जय जय श्री राधे
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राधे राधे ।