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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भागवत में लिखी ये 10 भयंकर बातें कलयुग में हो रही हैं सच

1.ततश्चानुदिनं धर्मः  सत्यं शौचं क्षमा दया । कालेन बलिना राजन्  नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥   *कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.*   2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः । धर्मन्याय व्यवस्थायां  कारणं बलमेव हि ॥   *कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !*       3.  दाम्पत्येऽभिरुचि  र्हेतुः  मायैव  व्यावहारिके । स्त्रीत्वे  पुंस्त्वे च हि रतिः  विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥    *कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.* *व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.*   4. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् । अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं  पाण्डित्ये चापलं वचः ॥    *घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो ...

प्रशन :- हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे हो , इनदोनों में क्या अंतर है?

।।जय यमुना मैया की।। प्रशन :- हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे हो , इन दोनों में क्या अंतर है? उत्तर :- ' हम तुम्हारे हैं ' यह घृत - स्नेह है। इस स्नेह में साधक प्रियतम में कमी देखने लगता है। अतः इसमें पतन होने की संभावना रहती है। ' तुम हमारे हो ' यह मधु - स्नेह है। इसमें सम्पूर्णतः निष्काम प्रेम होता है। वह केवल देना - देना ही जानता है। तुम अपना बनाओ या न बनाओ , हमने तुम्हें अपना बना लिया। यह भाव उच्च है।

एक राजा का कबीर जी से प्रश्न

गुरु गोविन्द राधे एक राजा ने कबीर  साहिब जी से प्रार्थना की किः "आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।" तो कबीर जी ने कहाः "आप तो हर रोज पंडित जी से कथा करवाते हो, सुनते भी हो...?" "हाँ जी महाराज जी ! कथा तो पंडित जी रोज़ सुनाते हैं, विधि विधान भी बतलाते हैं, लेकिन अभी तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए ,आप ही कृपा करें।" कबीर साहिब जी बोले-"अच्छा मैं कल कथा के वक्त आ जाऊँगा।" अगले दिन कबीर जी वहाँ पहुँच गये, जहाँ राजा पंडित जी से कथा सुन रहा था। राजा उठकर श्रद्धा से खड़ा हो गया, तो कबीरजी बोले --"राजन ! अगर आपको प्रभु का दर्शन करना है तो आपको मेरी हर आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।" "जी महाराज मैं आपका हर हुक्म  मानने को तैयार हूँ जी ! राजन अपने वजीर को हुक्म दो कि वो मेरी हर आज्ञा का पालन करे।" राजा ने वजीर को हुक्म दिया कि कबीर साहिब जी जैसा भी कहें, वैसा ही करना। कबीर जी ने वज़ीर को कहा कि एक खम्भे के साथ राजा को बाँध दो  और दूसरे खम्भे के साथ पंडित जी को बाँध दो। राजा ने तुरंत वजीर को इशारा...

कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन सार

कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन सार ------------------------------------------- १. भगवान, जीव एवं माया तीनों नित्य तत्त्व हैं , किन्तु जीव एवं माया का शासक भगवान हैं । २. जीव आनन्द ही चाहता है, क्योंकि वह आनन्द स्वरूप भगवान का सनातन अंश हैं । ३. आनन्द अनन्त मात्रा का होता है एवं अनन्त काल का होता है । ४. हम दो हमारे दो है , जीव दिव्य एवं सनातन है अतः उसका लक्ष्य दिव्य भगवान हैं । शरीर पंच महाभूत का बना है अतः उसके लिए पंच महाभूत का संसार है । ५. मानव शरीर दुर्लभ है इसी से परम लक्ष्य की प्राप्ति होगी किन्तु यह क्षणभंगुर है, अत: तत्काल साधना करनी होगी । ६. वास्तविक कर्ता केवल मन है अतः मायिक मन को हीं साधना करनी होगी । ७. भक्ति अनेक प्रकार की होती है लेकिन कर्ता केवल एक मन है । ८. स्मरण भक्ति हीं सार है , मन से हरि-गुरू का स्मरण करना साधना है ।  ९. मन से संसार की कामना बनाना हीं दुखों का मूल है । १०. संसारी वस्तुओं का त्याग वास्तविक त्याग नहीं वरण मन की आसक्ति का त्याग ही वास्तविक त्याग है । ११. भगवत्प्राप्ति भगवत्कृपा से हीं संभव है । १२. भगवत्प्राप्ति के ल...

"क्यों दिया माता तुलसी ने भगवान विष्णु का श्राप"

"क्यों दिया माता तुलसी ने भगवान विष्णु का श्राप" शिवमहापुराण के अनुसार पुरातन समय में दैत्यों का राजा दंभ था। वह विष्णुभक्त था। बहुत समय तक जब उसके यहां पुत्र नहीं हुआ तो उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को गुरु बनाकर उनसे श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया और पुष्कर में जाकर घोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया। भगवान विष्णु के वरदान स्वरूप दंभ के यहां पुत्र का जन्म हुआ। (वास्तव में वह श्रीकृष्ण के पार्षदों का अग्रणी सुदामा नामक गोप था, जिसे राधाजी ने असुर योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया था) इसका नाम शंखचूड़ रखा गया। जब शंखचूड़ बड़ा हुआ तो उसने पुष्कर में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। शंखचूड़ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि- मैं देवताओं के लिए अजेय हो जाऊं। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया और कहा कि - तुम बदरीवन जाओ। वहां धर्मध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है, तुम उसके साथ विवाह कर लो। ब्रह्माजी के कहने पर शंखचूड़ बदरीवन गया। वहा...

♻♻हमारे महाराज जी ♻♻ ♻♻♻♻♻♻

 ♻♻हमारे महाराज जी ♻♻      ♻♻♻♻♻♻ श्री महाराज जी तो अपने जन को लेने स्वयं भी चले जाते हैं। सुश्री ब्रज भास्करी देवी की माता संतों को अपने यहां घर में बुलाया करती थी। श्री महाराज जी भी वहाँ पँहुच गये। प्रारंभ में सुश्री ब्रज भास्करी जी (तब किशोरावस्था में) को महाराज जी में कुछ दृष्टिगोचर न हुआ बल्कि उन्होंने श्री महाराज जी को तंग करना प्रारंभ कर दिया, उनको अपने यहाँ रुकने पर विरोध प्रकट करने लगी। बिजली पंखा बन्द कर देती थी। किन्तु श्री महाराज जी को तो अपने जन को ले जाना था वहां से। वहां कई दिनों तक रूकने लगे यहां तक कि बुखार चढा लिया। जैसा कि सामान्य हिन्दू परिवार में होता है यह दुर्गा सप्तशती पाठ, व्रत पूजा उपवास आदि करती थी, दुर्गा जी इनकी इष्ट थीं। किन्तु भक्ति क्या है, इसका आभास तो इन्हें श्री महाराज जी के संपर्क में आने पर ही हुआ। एक बार जब यह बांके बिहारी जी का दर्शन कर रहीं थी तो उन्हें साक्षात् अनुभव हुआ कि श्री महाराज जी व बाँके बिहारी एक ही हैं। इसके बाद विरोध तो लोप ही हो गया l अब तो ये श्री महाराज जी को साक्षात् भगवान् मानने व ज...

वंशिका 12

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 12     आज वंशिका उन्मादिनी सी हुई जाती है। युगल नाम लेते लेते युगल प्रेम से सराबोर हुई जा रही है। ये प्रेम रस कितना अद्भुत है कि इसका एक छींटा ही उन्मादित कर देता है। अपने युगल का नाम लेने से बड़ा कोई सुख ही नहीं हो रहा इसे। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। आहा ! कितना रसीला है मेरे युगल का नाम एक एक अक्षर से रस झरता है। कभी लगता है श्यामा जू श्यामसुन्दर को पुकार रही है तो कभी अनुभव होता है श्यामसुन्दर श्यामा जू को। युगल की कृपा से ही वंशिका उनके नाम का रस ले रही है।     युगल की सखियों के संग में तो ये ओर उन्मादिनी हुई जाती है। अपने चारों और दृष्टि करती है तो देखती है ये सब प्रेम मई सखियाँ युगल की रस सेवा में मग्न हुई हैँ। उन्हें देख देख आनन्द से प्रेमाश्रु बहाने लगती है। कभी कुछ सखियाँ इसे घेर लेती हैँ तब जितना आनन्द उन्हें इससे युगल का मधुर नाम सुनकर आता है उतना ही इसमे उन्माद भरता जाता है। युगल के प्रेम रस का युगल के नाम का ही ये प्रसाद है कि न तो सुनने वाला कभी तृप्त हुआ है और न...

वंशिका 11

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 11 कान्हा आज बहुत खोये से हैं । राधा जू के बिना उनको कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ।उनकी बड़ी विचित्र सी दशा हो रही है। वन में चले जा रहे हैँ । कोई खबर नहीं किध...

वंशिका 10

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 10 श्री प्रिया पुष्प शैया पर लेती हुई है । उनके दोनों कमलनयन मूंदे हुए हैँ। मुख से कुछ शब्द उच्चारण कर रही है। कान्हा कहाँ है  ?वो अब तक नहीं आये | मुझे ...

वंशिका 9

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 9       श्री राधा अत्यंत विरहित स्थिति में हैँ। श्याम सुंदर को आने में विलम्ब हो रहा है इधर श्री प्रिया विरह पीड़ा से अकुलाती जा रही है जैसे देह में प...

वंशिका 1

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 1 वृन्दावन हमारे प्यारे युगल चन्द्र हमारे प्रिया प्रियतम युगल किशोर का प्रेम राज्य है जहां सर्वत्र उनका प्रेम ही आलोकित हो रहा है। यहां का कण कण ,...

वंशिका 2

जय जय श्यामाश्याम वंशिका 2 श्यामा जू ने आज प्रियतम की बंसी छिपा ली है। प्रियतम के चले जाने के बाद श्यामा जू अति व्याकुल हो जाती हैँ। कभी उनसे मिलने की उत्कण्ठा कभी मिल्न की स...