जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 12
आज वंशिका उन्मादिनी सी हुई जाती है। युगल नाम लेते लेते युगल प्रेम से सराबोर हुई जा रही है। ये प्रेम रस कितना अद्भुत है कि इसका एक छींटा ही उन्मादित कर देता है। अपने युगल का नाम लेने से बड़ा कोई सुख ही नहीं हो रहा इसे। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। आहा ! कितना रसीला है मेरे युगल का नाम एक एक अक्षर से रस झरता है। कभी लगता है श्यामा जू श्यामसुन्दर को पुकार रही है तो कभी अनुभव होता है श्यामसुन्दर श्यामा जू को। युगल की कृपा से ही वंशिका उनके नाम का रस ले रही है।
युगल की सखियों के संग में तो ये ओर उन्मादिनी हुई जाती है। अपने चारों और दृष्टि करती है तो देखती है ये सब प्रेम मई सखियाँ युगल की रस सेवा में मग्न हुई हैँ। उन्हें देख देख आनन्द से प्रेमाश्रु बहाने लगती है। कभी कुछ सखियाँ इसे घेर लेती हैँ तब जितना आनन्द उन्हें इससे युगल का मधुर नाम सुनकर आता है उतना ही इसमे उन्माद भरता जाता है। युगल के प्रेम रस का युगल के नाम का ही ये प्रसाद है कि न तो सुनने वाला कभी तृप्त हुआ है और न कभी कहने वाला। ये वंशिका तो सदैव युगल नाम का गायन ही करेगी। यही तो इसकी प्रेम मई सेवा है । अपने श्री युगल को आनन्द देना ही तो इसके प्राण हैँ।
युगल के प्रेम राज्य श्री वृन्दावन में हर कहीं युगल नाम युगल प्रेम युगल रस की ही वृष्टि हो रही है। उनके दिव्य प्रेम का ही ये प्रताप है जो हर लता पता उनके प्रेम में उन्मत हुई जाती है। धन्य है यहां का एक एक रजकण जो युगल चरणों का स्पर्श प्राप्त करता है। ये वंशिका पुनः पुनः बलिहार जा रही है और गायन करती है।
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय श्री नवलकिशोर
जय जय श्री वृन्दावन
जहाँ रस बरसत चहुँ और
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय अद्भुत प्रेमबेलि
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय युगलवर नितकेलि
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय अष्ट सखीगण
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय राधिकारमण
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय रज महारानी
जय जय श्री वृन्दावन
जय युगल की रजधानी
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय रसिकन के प्राण
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय नित्य प्रेमगान
जय जय श्री वृन्दावन
जय महिमा कोटि अनन्त
जय जय श्री वृन्दावन
जय भक्त रसिकन सन्त
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय प्रेमरस मूल
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय कलिन्दी कूल
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय लता वल्लरी
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय प्रेमरस सों भरी
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय रंग रँगीले दम्पति
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय ब्रज प्रेम सम्पति
जय जय श्री वृन्दावन
जाकि महिमा कही जा जाये
ब्रह्मा विष्णु सुरेश महेश
जाकी कोटि महिमा गाये
जय जय श्री वृन्दावन
दीजौ प्रेम मोहे दान
जय जय श्री वृन्दावन
जय जय प्रेम वाणी गान
यूँ ही सारा जीवन युगल के चरणों में ,उनका गुणगान करने में व्यतीत हो इससे बड़ा और क्या सुख होगा।
क्रमशः
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
राधे राधे ।