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वंशिका 2

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 2

श्यामा जू ने आज प्रियतम की बंसी छिपा ली है। प्रियतम के चले जाने के बाद श्यामा जू अति व्याकुल हो जाती हैँ। कभी उनसे मिलने की उत्कण्ठा कभी मिल्न की स्मृति उनकी व्याकुलता का शमन करती है। कभी कभी तो श्री प्रिया जू की व्याकुलता इतनी बढ़ जाती है कि सखियाँ मंजरियाँ बहुत प्रयत्न से उन्हें इस विरह से बाहर करती हैँ।

    श्यामा जू बांसुरी को अपने हाथों में ले लेती है। बांसुरी से उन्हें जैसे प्रियतम का स्पर्श प्राप्त होता है। बढ़भागिनी बांसुरी तू नित्य प्रियतम के अधरों का स्पर्श करती है। उनके अधरामृत का पान करती है। तुमसे सौभाग्यशाली कौन होगा।

         बांसुरी तो प्रियतम को अतिशय प्रिय है क्योंकि ये उनको सदा उनकी प्रियतमा का नाम सुनाती है। श्री प्रिया जू  बांसुरी को अपने अधरों पर रख लेती हैँ । उस समय उनके हृदय के आनन्द को कौन जान सकता है। एक बार तो बांसुरी को अपने गले से लगा लेती है। मेरे श्यामसुंदर की बांसुरी  । हाय ! मेरे कान्हा की बांसुरी। उसे तो बांसुरी के आलिंगन से ही प्रियतम के आलिंगन का स्पर्श मिलने लगता  है। बहुत समय तक श्री प्रिया जू बांसुरी को आलिंगन देती है। पुनः पुनः चूमती है कभी उसकी नज़र उतारती है और पुनः पुनः प्रियतम को सुख देने वाली बांसुरी पर बलिहारी जाती है।

तुम पर जाऊँ बलिहार वंशी
नित्य पाये तू प्रियतम का प्यार वंशी

नित्य नित्य मोहन तोहे अधरों से लगावे
तेरे बिना बंशी मोहन अधूरा रह जावे
सबमें प्राणों का करती संचार वंशी
तुम पर जाऊँ........

कौन से बंसी तूने पुण्य कमाये है
नित्य मोहन को तेरा संग भाये है
तू करती प्रेम विस्तार वंशी
तुम पर जाऊँ .......

मोहन ने वंशीवारो नाम धराया है
बंसी में भर भर के राधा नाम गाया है
नित्य करे तू प्रेम विस्तार वंशी
तुम पर जाऊं बलिहार वंशी
नित्य पाये तू प्रियतम का प्यार वंशी

क्रमशः
जय जय श्यामाश्याम

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