एक राजा ने कबीर साहिब जी से प्रार्थना की किः "आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।"
तो कबीर जी ने कहाः "आप तो हर रोज पंडित जी से कथा करवाते हो, सुनते भी हो...?"
"हाँ जी महाराज जी ! कथा तो पंडित जी रोज़ सुनाते हैं, विधि विधान भी बतलाते हैं, लेकिन अभी तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए ,आप ही कृपा करें।"
कबीर साहिब जी बोले-"अच्छा मैं कल कथा के वक्त आ जाऊँगा।"
अगले दिन कबीर जी वहाँ पहुँच गये, जहाँ राजा पंडित जी से कथा सुन रहा था।
राजा उठकर श्रद्धा से खड़ा हो गया, तो कबीरजी बोले --"राजन ! अगर आपको प्रभु का दर्शन करना है तो आपको मेरी हर आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।"
"जी महाराज मैं आपका हर हुक्म मानने को तैयार हूँ जी !
राजन अपने वजीर को हुक्म दो कि वो मेरी हर आज्ञा का पालन करे।"
राजा ने वजीर को हुक्म दिया कि कबीर साहिब जी जैसा भी कहें, वैसा ही करना।
कबीर जी ने वज़ीर को कहा कि एक खम्भे के साथ राजा को बाँध दो और दूसरे खम्भे के साथ पंडित जी को बाँध दो।
राजा ने तुरंत वजीर को इशारा किया कि आज्ञा का पालन हो। दोनों को दो खम्भों से बाँध दिया गया।
कबीर जी ने पंडित को कहा-
"देखो, राजा साहब बँधे हुए हैं, उन्हें तुम खोल दो।"
पंडित हैरान हो कर बोला - महाराज ! मैं तो खुद ही बँधा हुआ हूँ। उन्हें कैसे खोल सकता हूँ भला ?"
फिर कबीरजी ने राजा से कहा :
"ये पंडित जी ,तुम्हारे पुरोहित हैं। वे बँधे हुए हैं। उन्हें खोल दो।"
राजा ने बड़ी दीनता से कहा
"महाराज ! मैं भी बँधा हुआ हूँ, भला उन्हें कैसे खोलूँ ?"
तब कबीर साहिब जी ने सबको समझाया :
बँधे को बँधा मिले ,छूटे कौन उपाय।
सेवा कर निर्बन्ध की, पल में लेत छुड़ाय।
'जो पंडित खुद ही कर्मों के बन्धन में फँसा है, जन्म-मरण के बन्धन से छूटा नहीं, भला वो तुम्हें कैसे छुड़ा सकता है ।
अगर तुम सारे बंधनों से छूटना चाहते हो तो किसी ऐसे प्रभु के भक्त के पास जाओ , जो जन्म-मरण के बंधनों से छूट चुका हो ।
केवल एक सन्त सदगुरु ही सारे बन्धनों से आज़ाद होते हैं। वही हमें इस चौरासी के जेलखाने से आज़ाद होने की चाबी देते हैं ।
परमात्मा के महल पर लगा ताला कैसे खुलेगा, इसकी युक्ति भी समझाते हैं ।जो उनका हुक्म मान कर हर समय प्रेम से बन्दग़ी करता है वो सहज ही परमधाम में पँहुच जाता है।
राधे राधे
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राधे राधे ।