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वंशिका 5

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 5

यमुना विहार से लौटने का बाद संध्या होने पर श्यामसुन्दर एक वृक्ष के नीचे बैठे हैँ। सभी सखा गइया को देखने दूर जा चुके हैं। वृक्ष के नीचे बैठे हैँ श्यामसुन्दर और उनकी चिर संगिनी वंशी। श्यामसुन्दर अपनी बांसुरी को हाथ में उठा उसकी और निहारने लगते हैँ। वंशी तो जैसे अपने प्रियतम प्राणनाथ के दृष्टिपात करने पर सिहर उठी है। खोखली वंशी में जैसे प्रियतम श्यामसुन्दर का प्रेम भरने लगता है। यही प्रेम राधा नाम की राग रागिनी बनकर चारोँ और बह जाने को लालायित हो रहा है। हो भी क्यों न ये कोई साधारण प्रेम तो है ना। कोटि कोटि ब्रह्माण्ड नायक श्री हरि श्री कृष्ण का प्रेम जो है जिसके माधुर्य में उनका समस्त ऐश्वर्य ढक गया है। ये कोटि कोटि ऐश्वर्य के स्वामी न होकर ब्रजेंद्र नन्दन रसराज श्री श्यामसुन्दर हैँ जो अपनी प्राणप्रिया वृषभानु नंदिनी के संग परम् प्रेम में उन्मत हैँ। यहां श्री राधा महाभाव स्वरूपिणी प्रेम रूपिणी ब्रजेश्वरी है जो समस्त गोपियों की शिरोमणि हैँ और श्यामसुन्दर के संग रमण करने वाली हैँ। इनके प्रेममई विलास की संगी है श्री श्यामसुन्दर की ये वंशिका,जो दिन रात श्याम सुंदर के संग रहती है।

    श्यामसुन्दर वंशिका को हाथों में धारण करते हैँ परन्तु आज राधा नाम का स्वर भरने से पूर्व बांसुरी से बातें आरम्भ कर देते हैं। वंशिके !इस समय श्री श्यामा क्या कर रही होगी जानती हो तुम? बांसुरी तुरन्त ही प्रेम भरी स्वर लहरी में उत्तर देती है श्याम जू श्री राधा तो इस समय आपके हृदय में रमण कर रही हैँ। श्यामसुन्दर उसका उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न होते हैं और तुरन्त ही अपने हृदय पर अपना हाथ रख देते हैँ। श्यामसुन्दर को अपने हृदय की धड़कन में राधा राधा सुनते हैँ। हाँ हाँ वंशिके ! तू सत्य कहती है देख मेरी प्राणप्रिया मेरे हृदय में ही रमण कर रही है। सच कहूँ तो ये मेरी प्राणेश्वरी श्यामा के अद्भुत प्रेम का ही प्रभाव है जो मैं एक क्षण भी उसे अपने से अलग नहीं पाता। उसके अद्वितीय प्रेम ने मुझे ऐसे विभोर किया है कि मुझे हर और श्यामा ही श्यामा दृष्टि गोचर होती है। बांसुरी आज बहुत प्रसन्न हैँ कि श्यामसुन्दर अपनी प्राणेश्वरी के प्रेम का व्याख्यान कर रहे हैँ। वैसे तो श्री श्यामा का प्रेम शब्दों की किसी सीमा में नहीं बन्ध सकता। श्यामसुन्दर के पास भी इतने शब्द नहीं जो श्री श्यामा के प्रेम का वर्णन कर सकें बस कुछ क्षण अपनी चिर संगिनी वंशिका को श्री श्यामा के प्रेम रस सागर में एक डुबकी लगवा रहे हैँ और स्वयम् भी आह्लादित हो रहे हैँ। इस समय वंशिका प्रेमाश्रु प्रवाहित करने लगती है जो मधुर राग रागिनी बनकर हर और इस अद्भुत प्रेम की साक्षी भर रही है। वंशिका अपनी स्वामिनी श्री राधाक गुणगान करने लगती है।

मृदुल भाषिणी राधा ! राधा !!
सौंदर्य राषिणी राधा ! राधा !!

परम् पुनीता राधा ! राधा !!
नित्य नवनीता राधा ! राधा !!

रास विलासिनी राधा ! राधा !!
दिव्य सुवासिनी राधा ! राधा !!

नवल किशोरी राधा ! राधा !!
अति ही भोरी राधा ! राधा !!

कंचनवर्णी राधा ! राधा !!
नित्य सुखकरणी राधा ! राधा !!

सुभग भामिनी राधा ! राधा !!
जगत स्वामिनी राधा ! राधा !!

कृष्ण आनन्दिनी राधा ! राधा !!
आनंद कन्दिनी राधा ! राधा !!  
 
प्रेम मूर्ति राधा ! राधा !!
रस आपूर्ति राधा ! राधा !!

नवल ब्रजेश्वरी राधा ! राधा !!
नित्य रासेश्वरी राधा ! राधा !!

कोमल अंगिनी राधा ! राधा !!
कृष्ण संगिनी राधा ! राधा !!

कृपा वर्षिणी राधा ! राधा !!
परम् हर्षिणी राधा ! राधा !!

सिंधु स्वरूपा राधा ! राधा !!
परम् अनूपा राधा ! राधा !!

परम् हितकारी राधा ! राधा !!
कृष्ण सुखकारी राधा ! राधा !!

निकुंज स्वामिनी राधा ! राधा !!
नवल भामिनी राधा ! राधा !!

रास रासेश्वरी राधा ! राधा !!
स्वयम् परमेश्वरी राधा ! राधा !!

सकल गुणीता राधा ! राधा !!
रसिकिनी पुनीता राधा ! राधा !!

    वंशिका के हृदय में एक ही भाव है कि सदैव अपनी स्वामिनी का नाम उच्चारण कर चारों और उनके प्रेम की मधुर ध्वनि तरंगायित करती रहे,श्री युगल ही तो इसके प्राणधन हैँ और उनका सुख ही इसके जीवन का आधार है

क्रमशः

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