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सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निष्काम

निष्काम भक्ति कीजिए आप लोग ये चिन्ता ना कीजिए कि हम को सुख नहीं मिलेगा-  " भरहिं निरन्तर होहि न पूरे । तिन्ह के हियंँ तुम्ह कहँ गृह रूरे ( रामायण )  जैसे संसारी मिथ्या विषयों के रस में हम तृप्त होते हैं प्यास बढ़ती जाती है । ऐसे ही स्प्रिचुअल दिव्य प्रेम में भी हमारी प्यास बढ़ती जाती है । और हमारे संसार के प्यासे और परमार्थिक प्यासे रसिक लोग,  इनके बीच में एक सीट है परमहंसों  की,  उनकी प्यास बुझ जाती है । ना संसार की प्यास उनकी रहती है और ना उधर वाली रहती है । वो बीच के क्लास के हैं । यद्यपि उनके यहां सातवीं  भूमिका में ऐसा कहा गया है। अज्ञान पहली भूमिका , भ्रान्ति दूसरी भूमिका,  आवरण तीसरी भूमिका,  परोक्ष ज्ञान चौथी भूमिका,  अपरोक्ष ज्ञान पांचवी भूमिका,  दु:ख निवृत्ति छठी भूमिका, तृप्ति सातवीं भूमिका ।    सातवीं भूमिका पर जब पहुंचते हैं ज्ञानी लोग तो तृप्त हो जाते हैं । अब ना उनकी संसार की कभी कामना पैदा होगी,  प्यास बढ़ेगी और न ब्रह्म के लिए प्यास बढ़ेगी । लेकिन भक्तों के यहांँ ऐसा नहीं । त...

प्रैक्टिकल दो प्रकार का रूपध्यान करना है, किशोरी जी का, ठाकुर जी का।

एक रूपध्यान - वे सामने खड़ी हैं अब हम राधे ! कहने जा रहे हैं। संसार में कोई भिक्षुक तभी तो भीख माँगेगा जब भीख देने वाला सामने खड़ा हो। तो पहले किशोरी जी को खड़ा किया, फिर आप उनकी निष्काम सेविका बनना चाहती हैं, उनका प्रेम चाहती हैं, जो कुछ आपकी कामना है वो सामने खड़ा करके तब तो कहोगे उनसे। इसलिये सामने खड़ी हैं, मैँ देख रहा हूँ, ऐसी भावना बनाओ। ये ये श्रृंगार है, ये उनका स्वरूप है, उनके रोम-रोम से ब्रज रस चू रहा है, उनके शरीर से ऐसी सुगन्ध आ रही है कि परमहंस अपनी समाधि भूल जाता है, ऐसी लाइट निकल रही है, उनके चिदानन्दघन तनु से। ये सब भावना बनाओ सामने खड़ा करके, ये मिलन का रूपध्यान है। दूसरा रूपध्यान- वियोग का। ये ध्यान सर्वश्रेष्ठ है, किशोरी जी खड़ी तो हैं बोल नहीं रही हैं, मैँ इतना अधम हूँ । आप तो पतित पावनी हैं फिर मुझसे, मेरे ऊपर इतनी कृपा और क्योँ नहीं कर रही हैं कि प्रत्यक्ष सामने हमसे बात करें, अपना प्यार दें, अपनी दासी बनावें। ये तड़पन, व्याकुलता, परमव्याकुलता, रहा न जाय जैसे मछली को पानी से अलग कर दो तो पानी के लिये तड़पती है, ऐसा तुम्हारा हो जाय मन का हाल। ये भावना बनाना औ...

२ प्रकार के माया शक्ति :-

१.जीव माया :- जो हमारे ऊपर हावी हैं |  २.गुण माया :- पृथ्वी,जल,तेज,संसार,मन,शरीर सब गुणमयी माया से बनी हैं | जीव माया भी २ प्रकारका होता हैं :- १.आवरात्मिका माया :- ये माया के प्रभाव से जीव अपना स्वरुप भूलता हैं | अपने आपको आत्मा नहीं शरीर मानता हैं | २.विक्षेपात्मिका माया :-ये माया संसार मे attachement कराता हैं | मैं कौन मेरा कौन? दिव्य धारावाहिक प्रवचन-०१२  #निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य_जगद्गुरुत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज |

प्रश्न:- श्री राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिये क्या साधना करनी होगी ?

श्री महाराजजी द्वारा उत्तर :- अरे ! ये ही तो साधना है कि वो बिना कारण के कृपा करती हैं ये फेथ(faith) करो । यही साधना है। जो कीर्तन करते हो तुम यही तो साधना करते हो न। उस कीर्तन का मतलब क्या ? रोकर उनको पुकारो कि तुम कृपा करो। यही साधना है। इसी से अन्तःकरण शुद्ध होता है। मन को शुद्ध करने के लिये साधना होती है। फिर उसके बाद वो कृपा से प्रेम देती हैं। उनका लाभ तो कृपा से मिलता है। तुम्हारा काम तो मन को शुद्ध करना है। और मन शुद्ध करने के लिये उनको पुकारना है।बस यही साधना है। और साधना कोई मूल्य थोड़े ही है कृपा का। साधना तुम करते हो गन्दे मन से और कृपा से तो दिव्य वस्तु मिलेगी। तो तुम्हारा रोना कोई दाम थोड़े ही है। तुम जाओ किसी दुकानदार के आगे रोओ कि हमको कार दे दो पैसा नहीं है हमारे पास। तो वो कहेगा भाग जाओ , पागल है तू । तो उसी प्रकार अगर हम रोवें भी भगवान् के आगे , वो कहें भाग जाओ पहले दाम दो हम जो दे रहे हैं तुमको सामान उसका। तो हमारे पास दाम है ही नहीं क्या देंगे ? वो दिव्य प्रेम है भगवान् का। हमारी इन्द्रियाँ , हमारा मन , हमारी बुद्धि , हमारा शरीर सब गन्दा। हम क्या दे करके वो दिव्...

♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

आत्मीय पत्र  श्री महाराज जी द्वारा साधकों को लिखे गये पत्रों का अंश   आशा है तुम अपने कृपालु को भूले नहीं होंगे। भूल भी नहीं सकते। साहस हो तो भुला कर देखो। वे स्वयं भी तो अपनी याद दिलाते रहते हैं। मैं आज ही प्रयाग आया हूं। वज्र हृदय होते हुये भी मेेै तुम्हें भुला नहीं पाता हूं। तुम भी अपने कृपालु को अपना बनाकर भूल मत जाना। अपनी आत्मा के समान उसे भी अपने साथ सदा रखना। मैं सदा सदा तुम्हारा हूँ।  हमारी इच्छा में इच्छा रखने की बात को जानकर बड़ा हर्ष हुआ। यही तो साधक की कसौटी है।  ............. के यहाँ ठहरने की बात तो परिहास मात्र ही थी। तुमने अतिशय प्यार के कारण दूसरा कुछ समझ लिया और अगर कहीं ठहरेंगे भी तो 2 या 3 दिन को ही होगा। शरद्पूर्णिमा के पूर्व ही आऊँगा। तब प्रोग्राम के बारे में बातें करूँगा।  साधना सामूहिक या व्यक्तिगत दोनों ठीक हैं किन्तु अपने अपने संस्कार के कारण अपने प्रत्यक्ष लाभ पर निर्भर है। भक्त चरित्र भी वही वस्तु है, जिससे लाभ हो वही ठीक है।  किसी सांसारिक व्यक्ति के रूप, शब्द आदि में लगाव करते हुए, ईश्वरीय भाव में आना कठि...

श्री कृपालु जी महराज द्वारा दिय प्रवचन ४ नवम्बर १९८४ -

जितने भी महापुरुष संसार में हुए है उसमें दो प्रकार के क्या तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं| एक महापुरुष वो होते हैं जो अवतार लेकर आये हैं | नित्य सिद्ध अवतारी महापुरुष | जैसे ...

♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

पार्ट 2 इनके साथ हुई श्री महाराज जी से प्रथम दर्शन की लीला एक महिला ने बताया कि स्वामी मुकुंदानन्द जी त्रिदंडी सन्यासी के रूप में बड़ा सा तिलक लगाए, जपमाला फेरते हुये श्री मह...

♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

स्वामी श्री मुकुंदानन्द जी को प्रथम दर्शन श्री महाराज जी का                          श्री प्रेम रस सिद्धांत का प्यार                                 पार्ट 1 भारत वर्ष (पंजाब) के एक विशिष्ट घराने में उत्पन्न श्री मुकुंदानन्द जी को जगत में वह सब कुछ प्राप्त था जिसके लिये हम लालायित रहते हैं l इन्होंने विश्वविख्यात इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (IIT) दिल्ली से बी.टेक. करने के उपरान्त देश के शीर्षस्थ इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (कलकत्ता) से एम०बी०ए० की डिग्री प्राप्त की। श्री स्वामी मुकुंदानन्द जी भी टाटा गु्प में एक एक्जीक्यूटिव के पद पर एक वर्ष तक कार्यरत रहे। परन्तु इनका मन कुछ और पाने को व्याकुल था, मायिक उपलब्धियां इन्हें बाँध नहीं पायीं l इनके संस्कार एवं विवेक ने इन्हें सत्य की खोज के लिये प्रेरित किया और कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि ये सब कुछ त्याग कर इस्कॉन (International Society of Krishna Consciousness) से जुड गय...

भगवान का अवतार

स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण , एक कल्प में एक बार आते हैं।।  कलियुग= 4 लाख 32 हजार वर्ष।  द्वापरयुग= 8 लाख 64 हजार वर्ष।  त्रेतायुग= 12 लाख 96 हजार वर्ष।  सतयुग= 17 लाख 28 हजार वर्ष।।  ---------------------------------  कुल = 43 लाख 20 हजार वर्ष  ---------------------------------  एक मनवन्तर (=43,20,000 वर्ष X 71) X 14 = एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन,इतनी ही बडी रात;  अभी 5000 वर्ष पहले जो द्वापर युग गया है- तब,स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण आये थे ॥ #निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य_जगद्गुरुत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज |

श्री कृपालु जी महराज द्वारा दिय प्रवचन ४ नवम्बर १९८४ -

जितने भी महापुरुष संसार में हुए है उसमें दो प्रकार के क्या तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं| एक महापुरुष वो होते हैं जो अवतार लेकर आये हैं | नित्य सिद्ध अवतारी महापुरुष | जैसे ललिता का अवतार कोई महापुरुष आ जाय , विशाखा का अवतार कोई महापुरुष आ जाय , राधा का अवतार आ जाय , चन्द्रावली का अवतार आ जाय , भरत का अवतार आ जाय, लक्ष्मण का अवतार आ जाय यानी ये जो सिद्ध लोग हैं सदा से सिद्ध , इनको कहते हैं पार्षद परिकर , उनका अवतार लेकर कोई संसार में आवे और अपना नाम चेन्ज कर दे और संसारी बन कर रहे, जैसे गोपियाँ थीं तमाम ब्याह किया , बाल बच्चे भी उनके थे और थीं कौन ? ललिता विशाखा वगैरह ये सब गोलोक की नित्य सिद्ध परिकर हैं  एक तो ये महापुरुष होते हैं |  दुसरे अवतारी महापुरुष एक और होते है वो नित्य सिद्ध तो नही हैं लेकिन जैसे आज आपने भगवत्प्राप्ति कर लिया सन् ८४ में और ८५ में आप मर गये और ८६ में फिर आ गये संसार में | तो आप भी अवतारी हो गये , क्योंकि आपको कुछ करना धरना नहीं है भगवत्प्राप्ति आप कर चुके | अब दुबारा जब संसार में आयेंगे जीव कल्याण के लिये , तो अवतारी कहलायेंगे | ये दुसरे...

📔प्रश्नोत्तरी📔 📒भाग ३📒

प्रश्न ८ :- बीमारी जो होती है , वो भगवत्कृपा कहाँ तक है ? #श्री_महाराजजी_द्वारा_उत्तर :- सुख के माथे सिल परो नाम हृदय से जाय । बलिहारी वा दुःख की पल पल नाम रटाय ।। किसी प्रकार का भी दुःख हो आध्यात्मिक , अाधिभौतिक , आधिदैविक उसमें अहंकार आदि कम हो जाते हैं । तो भगवान् का स्मरण अधिक होता है । इसी को सन्त लोग भगवत्कृपा मान लेते हैं । भगवान् का वाक्य है -- यस्याहमनुगृह्यमि हरिष्ये तद्दनं शनैः ।। ( भाग. १० - ८८ - ८ ) मैं जिस पर कृपा करता हूँ उसका वैभव छीन लेता हूँ -- माँ , बाप , बेटा , स्त्री , पति , धन ; जिसको संसार में लोग दुःख कहते हैं । बाप मर गया दुःखी है , बेटा मर गया दुःखी हैं , धन लुट गया , दीवालिया हो गया दुखी है । जितने भी दुःख हैं ये सब होते तो प्रारब्ध से हैं । कोई भगवान् अपनी ओर से दुःख नहीं देता । आपका बेटा मरा , ये तो उसके प्रारब्ध का विषय है । अपने प्रारब्ध से मरा । कोई भगवान् ने मारा नहीं उसको जबरदस्ती । लेकिन चूँकि उससे भगवान् का स्मरण होता है । इसीलिये उसको भगवत्कृपा माना गया है । और अब कितनी लिमिट की कृपा है ये तो बताना असम्भव है । लेकिन कृपा है अ...

♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

डा० प्रह्लाद नारायण की पत्नी को टी०वी० हो गई थी। एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से बडे दुःख के साथ कहा, तुम्हारा एक्स रे बहुत खराब आया है, अब तुम छः महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह सकती। अकस्मात् उसी दिन श्री महाराज जी उनके घर पर आ गये। उनकी पत्नी ने श्री महाराज जी से रोकर कहा, डा० साहब कह रहे थे कि अब मैं छः महीने से अधिक जिन्दा नहीं रह सकती। इस बात पर श्री महाराज जी बोले, वह नाऊ क्या जाने तुझे कुछ होने वाला नहीं है। महाराज जी ने दवाइयों की ओर एक नजर देखा, फिर उनमें से पीने वाली कुछ दवा स्वयं पी ली और कुछ दवाएं फेंक दी वहां मौजूद एक डॉक्टर बेचारी कहती ही रह गई, यह आप क्या कर रहे हैं। श्री महाराज जी ने कहा, सब दवायें बन्द कर दो। केवल गंगाजल मँगा कर पीओ। बाद में वे दवाओं के स्थान पर केवल चरणोंदक लेती रहीं और आश्चर्य यह देखने में आया कि थोडे ही दिनों में वे बिल्कुल ठीक हो गई। स्वस्थ होने के बाद एक्सरे लिया गया। वह भी एकदम ठीक निकला। उस दिन से डाॅक्टर प्रहलाद नारायण को श्री महाराज जी पर बडा विश्वास हो गया था। श्रीमती कलावती भटनागर को श्री महाराज जी अपनी माँ कहते। एक बार बहुत दिनों बाद श्...

एक महाशय का प्रश्न है कि कैसे जाने हम कहां है?

हमारा कितना उत्थान या पतन हुआ है अपने आप कैसे जाने ? और ए सही है अपने आप कोई नही जान सकता ! इसलिय कि जिस मन में उचाई निचाई होती है उत्थान पतन होता है वो मन अपने खिलाप जजमेंट नही दे ...

!! श्री ध्रुवदासजी जी का जीवन परिचय !!

श्री सेवकजी एवं श्री ध्रुवदासजी राधावल्लभ सम्प्रदाय के आरम्भ के ऐसे दो रसिक महानुभाव हैं, जिन्होंने श्री हिताचार्य की रचनाओं के आधार पर इस सम्प्रदाय के सिद्धान्तों को ...