निष्काम भक्ति कीजिए आप लोग ये चिन्ता ना कीजिए कि हम को सुख नहीं मिलेगा- " भरहिं निरन्तर होहि न पूरे । तिन्ह के हियंँ तुम्ह कहँ गृह रूरे ( रामायण ) जैसे संसारी मिथ्या विषयों के रस में हम तृप्त होते हैं प्यास बढ़ती जाती है । ऐसे ही स्प्रिचुअल दिव्य प्रेम में भी हमारी प्यास बढ़ती जाती है । और हमारे संसार के प्यासे और परमार्थिक प्यासे रसिक लोग, इनके बीच में एक सीट है परमहंसों की, उनकी प्यास बुझ जाती है । ना संसार की प्यास उनकी रहती है और ना उधर वाली रहती है । वो बीच के क्लास के हैं । यद्यपि उनके यहां सातवीं भूमिका में ऐसा कहा गया है। अज्ञान पहली भूमिका , भ्रान्ति दूसरी भूमिका, आवरण तीसरी भूमिका, परोक्ष ज्ञान चौथी भूमिका, अपरोक्ष ज्ञान पांचवी भूमिका, दु:ख निवृत्ति छठी भूमिका, तृप्ति सातवीं भूमिका । सातवीं भूमिका पर जब पहुंचते हैं ज्ञानी लोग तो तृप्त हो जाते हैं । अब ना उनकी संसार की कभी कामना पैदा होगी, प्यास बढ़ेगी और न ब्रह्म के लिए प्यास बढ़ेगी । लेकिन भक्तों के यहांँ ऐसा नहीं । त...
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