डा० प्रह्लाद नारायण की पत्नी को टी०वी० हो गई थी। एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से बडे दुःख के साथ कहा, तुम्हारा एक्स रे बहुत खराब आया है, अब तुम छः महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह सकती। अकस्मात् उसी दिन श्री महाराज जी उनके घर पर आ गये। उनकी पत्नी ने श्री महाराज जी से रोकर कहा, डा० साहब कह रहे थे कि अब मैं छः महीने से अधिक जिन्दा नहीं रह सकती। इस बात पर श्री महाराज जी बोले, वह नाऊ क्या जाने तुझे कुछ होने वाला नहीं है। महाराज जी ने दवाइयों की ओर एक नजर देखा, फिर उनमें से पीने वाली कुछ दवा स्वयं पी ली और कुछ दवाएं फेंक दी वहां मौजूद एक डॉक्टर बेचारी कहती ही रह गई, यह आप क्या कर रहे हैं। श्री महाराज जी ने कहा, सब दवायें बन्द कर दो।
केवल गंगाजल मँगा कर पीओ। बाद में वे दवाओं के स्थान पर केवल चरणोंदक लेती रहीं और आश्चर्य यह देखने में आया कि थोडे ही दिनों में वे बिल्कुल ठीक हो गई। स्वस्थ होने के बाद एक्सरे लिया गया। वह भी एकदम ठीक निकला। उस दिन से डाॅक्टर प्रहलाद नारायण को श्री महाराज जी पर बडा विश्वास हो गया था।
श्रीमती कलावती भटनागर को श्री महाराज जी अपनी माँ कहते। एक बार बहुत दिनों बाद श्री महाराज जी का उनके घर आना हुआ। कलावती जी ने बहुत उलाहना दिया। श्री महाराज जी ने कहा तुम मेरे साथ बेटे का रिश्ता मानतीं हो यह ठीक है। मुझे फिजिकल बेटा समझना भूल होगी, संसारी रिश्ते और आध्यात्मिक रिश्ते में कुछ तो अन्तर है ही। एक अनपढ़ स्त्री हमसे साधना लिखाने के लिये काॅपी ले आयी। हमने साधना लिख दी। जब भी वह काॅपी हाथ में लेती, अपने भाग्य की सराहना कर वह आंसू बहाती क्योंकि उसने उसका महत्व समझा। दूसरे पढे लिखे ऐसे बहुत लोग हैं जो साधना लिखाते हैं और उसे पढते भी हैं, कहते हैं ठीक है, अच्छा लिखा। यह कहकर उसे अलग रख देते हैं। उन लोगों ने उसका महत्व नहीं समझा। इसलिए जो भी रिश्ता तुमने माना है, उसका महत्व तुम्हें समझना होगा। अपने सौभाग्य के बारे में सोच सोचकर विभोर होना है। किसी से अपना आध्यात्मिक सम्बन्ध मानने पर ऐसा ही होगा।
एक बार कलावती भटनागर महाराज जी के बारे में ऐसी अविश्वसनीय घटना बताती हैं जिस पर सर्वसाधारण कभी भी विश्वास नहीं कर सकता। घटना कुछ इस प्रकार है, एक दिन श्री महाराज जी दोपहर के समय कलावती भटनागर से बोले, मैं दो घंटे के लिए सो रहा हूं। मुझे लक्ष्मण स्वरूप के घर जाना है। दो घंटे बाद श्री महाराज जी उठ कर बैठ गये। कलावती भटनागर ने बाद में इलाहाबाद रह रहे लक्ष्मण स्वरूप को पत्र लिखकर जानकारी की तो वहां से पता चला कि श्री महाराज जी अमुक तारीख को अमुक समय यहां आये थे और अमुक अमुक कार्य करके यहां से प्रस्थान कर गये थे।
इन्हीं के परिवार से जुडी एक और घटना है कि एक दिन महाराज जी ने कलावती भटनागर के लड़के की बहू से बोले। तुम करूणा पूर्वक रो कर कीर्तन किया करो। महाराज जी की इस बात पर बहू ने तर्क किया किसी के हृदय में दुख होगा तो रोना आयेगा। भगवान् के मिलने में रोने की क्या बात है या खुश होने की। इस पर श्री महाराज जी ने फिर समझाया, उसके लिए दुःखी होगी तभी वह मिलेगा।
हमारे प्यारे प्यारे महाराज जी की जय॥
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राधे राधे ।